संसार और संसार की व्यवस्था पर बात करें तो हर चीज़ एक दूसरे पर निर्भर होती आई है. जैसे इंसान को जीवित रहने के लिए कई चीज़ों पर आश्रित होना पड़ता है उसी प्रकार हर कोई एक दूसरे पर निर्भर है. इन सबसे हट कर अगर रोजगारों की भी बात करें तो उसमे भी निर्भरता होती है.
आज के बदलते समय में छोटा से छोटा रोजगार किसानों को अच्छा मुनाफा दिलाता आ रहा है. ऐसे में पशुपालन जैसे रोजगार से अच्छी आय को देखते हुए अब लोग उनके लिए चारे की फसलों पर ध्यान देने लगे हैं. पशुपालन की बढ़ती मांग ने चारे की मांग को भी बाजारों में बढ़ा दिया है.
चारे की बात करें तो सिर्फ जई और बरसीम ही नहीं, बल्कि कुछ और फसलें भी हैं, जिनके जरिए पशुओं से अच्छा दूध प्राप्त किया जा सकता है. ऐसे में एक नाम है दशरथ घास (डेसमेन्थस) का यह बहुवर्षीय दलहनी चारा फसल है. इसकी उपज हर वर्ष 30 से 50 टन प्रति हेक्टेयर चारा लिया जा सकता है. चारे का पर्याप्त मात्रा में होना काफी जरुरी है.
जब तक पशुओं को पर्याप्त मात्रा में चारा नहीं मिलेगा तब तक पशु का स्वस्थ रहना मुश्किल है. ऐसी अवस्था में चारा फसल की मांग में काफी बढ़ोतरी आई है. फसलों की उपज पर अगर बात करें तो कृषि वैज्ञानिकों कहते हैं की साल भर में इसकी छह बार कटाई की जा सकती है. आमतौर पर सूखाग्रस्त रहने वाले क्षेत्रों के यह उपयुक्त फसल है.
इसलिए यह महाराष्ट्र के किसानों के लिए चारा फसल एक अच्छा विकल्प है. क्योंकि यहां कई क्षेत्रों में सूखा रहता है. महाराष्ट्र में रहने वाले किसान आधुनिक तकनीकों की मदद से इस तरह की खेती के तरीकों को सिख रहे हैं और उसका इस्तेमाल कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. वो कहते हैं कि यह 5 साल तक चलती है और इससे पशुओं की सेहत अच्छी रहती है. इसलिए अब उन्होंने मेथी घास उगाना बंद कर दिया है, क्योंकि उसकी उम्र तीन साल ही है.
अधिक मात्रा में पाया जाता है प्रोटीन
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक इस घास की यह खासियत है कि इसमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन की उपलब्धता होती है, जिसके कारण दलहनी चारा फसलें पशुधन उत्पादन की एक अति महत्वपूर्ण इकाई है. यहां तक की अगर व्यावसायिक डेयरी उत्पादन की बात करें, तो उसमें भी जहां हरी घासें व अन्य चारा फसलें जैसे कि हाइब्रिड नेपियर बाजरा तथा ज्वार मुख्य पशु आहार के रूप में उपयोग में लाई जाती हैं. लेकिन दशरथ घास इनमें खास है.
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चारा फसलों की मुख्य प्रजातियां
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक चारा फसलें खनिज तत्वों जैसे कि कैल्शियम और फॉस्फोरस की मात्रा भी अधिक पाई जाती हैं. विशेषज्ञों द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार संसार में विभिन्न चारा घासों की 620 और दलहनी फसलों की 650 प्रजातियां पाई जाती हैं. लेकिन इनमें सिर्फ 40 घासों और 30 दलहनी फसलों को ही उचित रूप में चारे हेतु उपयोग में लाया जाता है. कुछ वर्षों में दशरथ घास एक महत्वपूर्ण और पौष्टिक दलहनी चारे के रूप में उभरी है. जिसके बाद बाजारों में और किसानों के बिच इसकी मांग और भी बढ़ गयी है.
उन्नत किस्में
पशुपालन से जुड़े विशेषज्ञ बताते हैं कि इसकी पौष्टिकता और गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए अन्य देशों में जैसे आस्ट्रेलिया तथा अमेरिका में इसकी कई उन्नतशील प्रजातियां विकसित की जा चुकी हैं. बढ़ती मांग को देखते हुए ये अंदाजा लगाना गलत नहीं होगा कि आने वाले दिनों में इसकी मांग और इसकी उपज में बढ़ोतरी होगी.