देशभर में खाद को लेकर किसान और सरकारों के बीच एक बार फिर तनाव शुरू हो गया है. जहां कृषि कानून बिल वापसी को लेकर किसानों और सरकार के बीच दूरियां कम हुई थीं, तो वहीं समय पर खाद की कमी और काला बाज़ारी ने किसानों की परेशानी बढ़ा दी हैं.
केंद्र सरकार ने खादों के मूल्य में बढ़ोतरी कर हिमाचल प्रदेश के लाखों किसानों और बागवानी कर रहे किसानों को एक बार फिर झटका दिया है. दरअसल, यहां महज 15 दिनों में दाम बढ़ गए हैं. नए दाम की अधिसूचना हिमफेड के पास पहुंच गई है. इसके बाद हिमफेड मंडी-कुल्लू के प्रभारी किशन भारद्वाज ने बताया कि नए दाम के अनुसार 12:32:16 खाद 285 रुपये तक महंगी मिलेगी. यानि जीएसटी के साथ 1470 रुपये प्रति बोरी मिलेगी. पहले इसका दाम 1185 रुपये प्रति बोरी था. 15:15:15 खाद भी 170 रुपये महंगी मिलेगी. यह खाद 1350 रुपये में जीएसटी के साथ मिलेगी.
पुराने दामों पर अगर नज़र डालें, तो इसका पुराना दाम 1180 रुपये था. म्यूरेट ऑफ पोटाश के दाम में भी 190 रुपये का उछाल आया है. वहीं, 850 रुपये में मिलने वाली इस खाद के लिए अब 1040 रुपये चुकाने होंगे. कुल्लू फल उत्पादक मंडल के प्रधान प्रेम शर्मा ने बताया कि उर्वरकों के दाम बढ़ने से किसानों-बागवानों की परेशानी बढ़ गई है.
उल्लेखनीय है कि अब किसानों को फसल को तैयार करने के लिए ज्यादा खर्च उठाना पड़ेगा. 12:32:16 व 15:15:15 खाद का इस्तेमाल गेहूं की बुवाई व सेब के लिए किया जाता है. देश में इस वक़्त रबी सीजन है. इस समय मुख्य तौर पर गेहूं और सरसों की बुवाई की जाती है और दोनों ही फसलों के लिए खाद की आवश्यकता होती है.
ऐसे में खाद का ना होना किसानों को परेशान कर रहा है.वहीं, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों का कहना है कि खाद की कहीं से कोई कमी नहीं है. कुछ लोग मिलकर ये अफवाह उड़ा रहे है. इसके साथ ही केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से किसान भाइयों से अपील करते हुए कहा कि अफवाहों पर ध्यान ना दें और बीज़ एवं खाद भंडार से जाकर खाद उचित मूल्य पर खरीदें.
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फिर क्यों हैं किसान परेशान ?
अब सवाल ये उठता है कि अगर सरकार का ये कहना है कि खाद की कोई कमी नहीं है, फिर किसानों को परेशानी क्यों और किस बात की हो रही है. बुवाई का समय बीतता जा रहा है, लेकिन फिर भी कई किसान ऐसे हैं, जो समय पर बुवाई करने में असफल रहे हैं.
कई किसानों ने तो बिना खाद ही बुवाई कर डाली. अब उन्हें चिंता इस बात की है कि क्या फसल के पैदावार अच्छे होंगे. या फिर उन्हें नुक्सान का सामना करना पड़ेगा. एक तरफ सरकार अपने बयानों पर अडिग है, तो वहीँ दूसरी तरफ किसान अपने हालातों से लगातार लड़ रहा है.