मौसम के बदलते करवट का असर कृषि क्षेत्र में संकट के बादल दिखाई दे रहे हैं क्यूंकि मॉनसून के आने में देरी होने की वजह से इसका सीधा असर कृषि पर ही पड़ता है और कृषि से जुड़ी सबसे मुख्य क्षेत्र पशुपालकों के ऊपर भी पड़ रहा है, और कुछ राज्यों में दूध कंपनियों ने अपने दूध के मूल्य भी बढ़ा दिए हैं जिससे आम जनता पर भी इसका असर पड़ रहा है. कई पशुपालकों ने मानसून की ऐसी मार देखते हुए भविष्य में चारे के उपलब्धता पर संकट जताया है पिछले कुछ सालों की बात करें तो चारे के मूल्य में भी 15 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है क्योंकि जिस प्रकार से मानसून का अंदेशा है ऐसे में हरे या सूखे चारे की उपलब्धता भविष्य में बहुत बड़ा संकट बन सकता है.
दुग्ध का उत्पादन एवं विपणनन करने वाली सभी कम्पनियोँ ने इस पर गहरी चिंता जताते हुए बताया की अगर मानसून समय पर नहीं आया तो सूखे या हरे चारे की उपलब्धता पर भारी संकट आ सकता है और इसका सीधा असर दुग्ध के उत्पादन पर पड़ता है क्यूंकि पशुओं को उचित मात्रा के अनुसार अगर चारा नहीं उपलब्ध किया गया तो दुग्ध उत्पादन में बड़ा संकट आ सकता है जैसा की चारे में तेल रहित चावल की भूसी 61 फीसदी, राइस पॉलिस फाइन 22 फीसदी, गुड़ 82 फीसदी और मक्का 63 फीसदी महंगे हुए हैं।
इससे पशु आहार की कीमतों में 15 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। जीसीएमएमएफ ने कहा, 'इसी तरह हरे चारे के दाम इस बार गर्मियों में 100 फीसदी तक बढ़ गए हैं। दूध उत्पादन की लागत में बढ़ोतरी को ध्यान में रखते हुए गुजरात की सभी सदस्य दूध यूनियनों ने पिछले कुछ महीनों के दौरान दूध की खरीद के दाम प्रति किलोग्राम फैट 30 से 50 रुपये बढ़ाए हैं। इससे हमारे दूध उत्पादकों को नए पशु लाने और दूध उत्पादन बनाए रखने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। ऐसे कुछ स्कीमों से पशुपालकों को लाभ दिया जायेगा साथ समय पर मानसून के आने से ही चारे पर्याप्त उपलब्धता से ही पशुओं के लिए संकट के बादल छंट सकते हैं जैसा की दक्षिण भारत की बात करें तो मॉनसून की शुरुआत हो गई है तो उम्मीद है की भारत के अन्य राज्यों में भी मानसून अपना असर जल्दी दिखाए.