भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक और कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग (डीएआरई) के सचिव डॉ. एमएल जाट ने आज दिल्ली में विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के उपसचिव/ निदेशक स्तर के अधिकारियों के लिए 'राष्ट्रीय कर्मयोगी - व्यापक जन सेवा कार्यक्रम' के अंतर्गत आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन किया. प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए डॉ. जाट ने जोर देकर कहा कि "जन सेवा ही प्रभु सेवा" के गहन महत्व पर जोर दिया और कहा कि यह केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि सार्वजनिक सेवा के सार को समेटने वाला एक मार्गदर्शक सिद्धांत है. उन्होंने अधिकारियों से इस दर्शन को आत्मसात करने का आग्रह किया ताकि 2047 तक एक विकसित भारत का लक्ष्य प्राप्त हो सके.
उन्होंने कहा "कृषि के विकास के बिना विकसित भारत को हासिल करना संभव नहीं हैं. विकसित भारत के सभी चारों स्तंभ आंतरिक रूप से कृषि से जुड़े हुए हैं. हमें इस क्षेत्र में योगदान देने का सौभाग्य प्राप्त है, जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकसित भारत के विजन को प्रत्यक्ष रूप से समर्थन देता है."
महानिदेशक महोदय ने संगठनों के भीतर सम्मान, साझा विजन और सामूहिक कार्य को बढ़ावा देने के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि कर्मयोगी बनने की शुरुआत दूसरों के प्रति सम्मान विकसित करने और समाज व राष्ट्र के साथ सच्चा संबंध स्थापित करने से होती है. उन्होंने आगे कहा, "सच्चा कर्मयोगी भीतर से उभरता है. यह केवल व्याख्यानों से नहीं आता, बल्कि अपने काम में आनंद का अनुभव करने से आता है. जब तक हम अपने काम का आनंद नहीं लेते, तब तक हम सच्चे कर्मयोगी नहीं बन सकते."
इस अवसर पर बोलते हुए आईसीएआर के उप महानिदेशक (कृषि शिक्षा) डॉ. आरसी अग्रवाल ने बताया कि आईसीएआर/डेयर को इस कार्यक्रम के तहत शीर्ष प्रदर्शन करने वाली संस्था के रूप में मान्यता दी गई है. उन्होंने जोर देकर कहा कि किसी भी प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए ज्ञान, कौशल विकास और प्रेरणा महत्वपूर्ण हैं, लेकिन सार्थक परिणामों के लिए अंतर्वैयत्तिक संबंधों को बढ़ावा देना भी उतना ही आवश्यक है. इससे पहले आईसीएआर के सहायक महानिदेशक (एचआरडी) डॉ. एसके शर्मा ने स्वागत भाषण दिया और इस कार्यक्रम के उद्देश्यों और उपलब्धियों को रेखांकित किया.
क्षमता निर्माण आयोग (सीबीसी) द्वारा 12 सितंबर 2024 को शुरू किए गए राष्ट्रीय कर्मयोगी - व्यापक जन सेवा कार्यक्रम का उद्देश्य अधिकारियों के बीच उद्देश्य की भावना (स्वधर्म) को मजबूत करना है. इस पहल का उद्देश्य उनकी पेशेवर भूमिकाओं में सेवाभाव के मूल्यों को फिर से जागृत करना, नागरिक-केंद्रित सेवा वितरण को बढ़ाना, अंतर-विभागीय सहयोग को बढ़ावा देना और अधिकारियों के कार्य से जुड़ी संतुष्टि की भावना में सुधार करना है.