सर्दी का मौसम शुरु हो गया है. किसानों को अपनी फसल की चिंता भी सताने लगी है. क्योंकि, इस मौसम में उगाई गई समय अधिकांश फसलें सर्दियों में पड़ने वाले पाले से प्रभावित होती है. सब्जी और फल इस पाले के प्रति संवेदनशील होते है, जबकि खाद्यान्न फसलें कम प्रभावित होती है. सर्दियों में पाला पड़ने से फसलों को आंशिक या पूर्ण रूप से हानि पहुंचती है. तो वहीं ज्यादा पाला और सर्दी फसलों का शत प्रतिशत नुकसान पहुंचा सकती है.
आमतौर पर दिसम्बर से जनवरी के बीच पाला पड़ने की संभावना होती है. जहां मैदानी क्षेत्रों में उष्ण कटिबंधीय फसलें उगाई जाती है. वहां फसलों की गुणवत्ता तथा उत्पादन में पाले एवं सर्दी का प्रभाव पाया गया है. इसके कारण फलदार पौधों का भी भारी नुकसान होता है. इसके अलावा पौधों के पत्ते सड़ने से बैक्टीरिया जनित बीमारियों का भी प्रकोप अधिक बढ़ने लगता है. पत्तियां, फूल तथा फल सूख जाते है. फलों के ऊपर धब्बे पड़ने लगते है, इससे उनका रूप और स्वाद भी खराब हो जाता है.
पाला क्यों पड़ता है
जब वायुमण्डल का तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस या फिर उससे नीचे चला जाता है और अचानक हवा बंद हो जाती है, तो धरातल के आसपास घास-फूस औऱ पौधों की पत्तियों पर बर्फ की पतली परत जमने लगती है. जिसको पाला कहा जाता है.
पाले से पौधे और फसलों पर क्या प्रभाव पड़ता है
- फसलों का हरा रंग खत्म होने लगता है और पत्तियों का रंग मिटटी के रंग जैसा दिखाई देने लगता है.
- पौधों के पत्ते सड़ने से बैक्टीरिया जनित बीमारियों का प्रकोप अधिक बढ़ जाता है.
- फलदार पौधे पपीता, आम इत्यादि में इसका प्रभाव अधिक पाया गया है.
- पत्ती, फूल और फल सूख जाते है. फल के उपर धब्बे पड़ने लगते है साथ ही उनका स्वाद भी खराब हो जाता है. तो वहीं फसलों, फल व सब्जियों में कीट का प्रकोप भी बढ़ जाता है.
-अधिकतर पौधों के फूलों के गिरने से उत्पादन में कमी हो जाती है. पत्ते, टहनियां तथा तनों के नष्ट होने से पौधों को अधिक बीमारियां लगती है.
- शीत ऋतु वाले पौधे 2 डिग्री सेंटीग्रेड तक का तापमान सहने में सक्षम होते है. इससे कम तापमान होने पर पौधे की बाहर और अन्दर की कोशिकाओं में बर्फ जम जाती है.
न्यूनतम तापमान से कौन-सी फसलों को हानि होती है
- 0 से 1 डिग्री सेटीग्रेड – इस तापमान पर टमाटर, खीरा, स्ट्राबेरी, स्क्वैश, कद्दू, खरबुजा, सेम, काली मिर्च, केला आदि फसलों को हानि होती है.
- 1 से 2 डिग्री सेटीग्रेड – इस तापमान पर आलू, सेब, नाशपाती (पुष्पकाल), चैरी, सेम (पुष्पकाल), फूलगोभी, ब्रोकली, मटर, पालक, मूली और अंगूर आदि फसलों पर असल पड़ता है.
- 2 से 4 डिग्री सेंटीग्रेड – ये तापमान सेब फल व कली, अल्फा अल्फा, खजूर, चुकन्दर, बन्दगोभी और शलजम पर असर पड़ता है.
पौधशाला में पाले के प्रभाव को कम करने के उपाय
अगर सर्दी के मौसम में फसलों को पाले से बचाना है, तो खेत में धुंआ उत्पन्न करने से पाला कम हो सकता है. इस उपाय से तापमान जमाव तक नहीं पहुंचाता. आग जलाकर ऊपर व नीचे की ठण्डी एवं गर्म हवा को बिना फैलाये मिलाया जा सकता है. यह उपाय 10 मीटर ऊचाई तक कोहरे में उपयोगी रहता है. इसके अलाव पौधों की थोड़े-थोड़े समय के बाद सिंचाई करनी चाहिए. जिन क्षेत्रों में पाला पड़ने की अधिक संभावना होती है. उन क्षेत्रो में नर्सरी वाले पौधे को पाली हाउस के अन्दर लगाना चहिए, ताकि उन्हे उगने के लिए पर्याप्त तापमान मिल सके एवं पाले के प्रभाव से बच सके.
खेत की फसल में पाले के प्रभाव को कम करना
खेत की फसलों को पाले से बचाने के लिए कई उपाय है. जैसे टमाटर की फसल में हर तीसरी पंक्ति के बाद एक साफ पानी का बर्तन रख सकता है, याद रहे कि बर्तन को पौधों से करीब 4 से 5 इंच ऊँचा रखा जाए. इससे ज्यादा पाला पड़ने पर पानी जम जाएगा और उससे निकली ऊष्मा से पौधों का पाले से बचाव हो सकता है. इसके अलावा फसल की छत ऊष्मारोधक बनानी चाहिए, जिससे केवल छत ही ठण्डी होगी और फसल पर कोई प्रभाव नहीं होगा. पौधों के ऊपर प्लास्टिक बैग बांध भी लगा सकता है. यह पौधो तथा फसलों के बीच खरपतवार सूर्य की किरणों को प्ररिवर्तित कर देते है. अगर किसी विशेष दिशा से ओस पड़ने की संभावना हो, तो आवास पटियां लगाकर उसके प्रभाव को कम किया जा सकता है. आवास पटियां दक्षिणी से पश्चिमी दिशा की ओर लगानी चाहिए. कम ओस-अवरोधी पौधो को आवास पटियों में लगाना उपयुक्त हो सकता है. फलदार पौधों को पाने के नुकसान से बचाने के लिए लगभग 100 वाट बिजली का बल्ब के हरे भाग के नीचे लगाएं, तो फलदार पौधो को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है.
आपको बता दें कि ठोस मिट्टी में पाले का असर कम होता है, क्योकिं यह ऊष्मा को मुक्त नहीं होने देती, इसलिए पाला पड़ने की संभावना वाले दिनों में मिट्टी की गुड़ाई या जुताई नहीं करनी चाहिए, क्योंकिं ऐसा करने से मिट्टी मुलायम हो जाती है. इसका तापमान कम हो जाता है. जिन क्षेत्रों में पाले की संभावना अधिक रहती है, वहां चुकन्दर, गाजर, गेहूं, मूली, जौ इत्यादि फसलें उगाने से ओस का प्रभाव कम होता है.
पाले से फसल को बचाने के लिए छिड़काव के उपाय
बारानी क्षेत्र की फसलों में ओस का प्रभाव दिखने पर गंधक के अम्ल का 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें, ताकि पौधे पूरी तरह भीग जाए. इससे ओस से होने वाले नुकसान से बचाव होगा, सात ही पौधे में बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी आएगी. इस उपाय से गेहूं, चना, सरसों, आलू, मटर आदि की फसलों को बचाया जा सकता है. फसलों एवं सब्जियों में फूल आने से पहले 0.03 प्रतिशत साइकोसेल का छिड़काव कर सकते है. बता दें कि ग्लूकोज का मुख्य रूप से गर्मी में प्रयोग किया जाता है, एक किलो ग्लूकोज को 800 से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें.
इसी तरह नाइट्रोजन खाद व अन्य पोषक तत्वो का छिड़काव करके फलदार पौधों को नुकसान से बचाया जा सकता है. पौधों को ओस से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए सूक्ष्म या गौण तत्व जैसे- कापर, मैग्नीशियम, जिंक, मैग्नीज, बोरोन इत्यादि के घोल का छिड़काव करना चाहिए. रसायन जैसे तांबे एवं जस्ते का छिड़काव करने से फलदार पौधों को बचाया जा सकता है. इस तरह फसलों को ओस के कारण होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है.