आज शायद ही कोई ऐसी सब्ज़ी हो जिसमें रसायनों का इस्तेमाल न होता हो. हर सब्ज़ी, फल या खेत में उगने वाली वस्तु पर रसायनों, कीटनाशकों और तो और इंजेक्शन का प्रयोग हो रहा है. शायद इसीलिए दिनोंदिन हमारा शरीर कमज़ोर हो रहा है क्योंकि शरीर में पोषक तत्वों के बजाय ज़हर डाला जा रहा है. अब इसे किसानों की गलती कहें या कंपनियों का स्वार्थ, मगर यह खतरनाक है और भविष्य में इसके परिणाम भयावह हैं.
ये भी पढ़ें - इस तकनीक से लौकी की एक बेल से 800 लौकियां लीजिए
जैविक और इंजेक्शन लौकी में कैसे करें अंतर
जैविक लौकी - जैविक लौकी को पहचानना बेहद आसान है क्योंकि जैविक लौकी न तो बहुत लंबी होती है, न तो हरी और न ही अधिक मोटी. जैविक रुप से तैयार लौकी अधिक समय तक चल सकती है अर्थात वह जल्दी खराब नहीं होती. जैविक रुप से तैयार लौकी में कसाव बरकरार रहता है यानि यह लौकी ढीली नहीं पड़ती. जैविक रुप से तैयार लौकी के बीज बहुत छोटे-छोटे होते हैं. जैविक लौकी की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि यह लौकी कटाई में बेहद कुरमुरी और करारी होती है.
इंजेक्ट लौकी - रसायन या इंजेक्शन से तैयार की गई लौकी आकार में बड़ी और मोटी होती है. इसे आप कटाई के वक्त भी आसानी से पहचान सकते हैं क्योंकि ये कटने में बेहद नरम होती है और इसके बीज अक्सर बड़े आकार के होते हैं. इंजेक्ट की गई लौकी दो दिन में ही सड़ने या खराब होने लगती है. इसमें अजीब रंग जैसे - लाल, पीला, नीला रंग उभरने लगता है. इसके अलावा इंजेक्शन युक्त लौकी लंबाई में भी और लौकियों के मुकाबले बड़ी होती है. इन सब के बावजूद भी यही इंजेक्ट लौकी बाज़ार में प्रचलित है और धड़ल्ले से बिक रही है.
कुछ किसानों को इस लौकी से मुनाफा भी हुआ है, शायद इसीलिए कुछ किसान लोगों की जिंदगियों से खेलने में भी पीछे नहीं हट रहे हैं लेकिन यह लौकी हम सबको धीरे-धीरे मौत के मुंह में धकेल रही है.