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Updated on: 31 December, 2022 12:38 PM IST
महिला की स्थायी टिकाऊ कृषि से बढ़ी आजीविका

राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के आनंदपुरी ब्लॉक के गांव पुछियावाडा की 31 वर्षीय महिला लिलादेवी खाट अपने जनजातिय क्षेत्र के  कृषकों गावों मे एक बेजोड अनुकरणीय उपयुक्त उदाहरण अपने कार्य से अन्य लोगो के सामने रखा है. 3 बेटों की मां लिलादेवी एक किसान परिवार से आती हैं. उसने बचपन से ही अपने माता-पिता को खेतों में काम करते देखा है और कभी-कभी उनके साथ भी जाती थी.

लिलादेवी का जीवन तब बदलना शुरू हुआ जब वो वाग्धारा गठित सक्षम महिला समूह में शामिल हुई और अध्यक्ष पद पर आशिन होकर महिला अधिकार और भूमि स्वामित्व पर काम करना शुरू कियाजहां वह महिला किसान प्रेरक भी बन गईं. जिसके एक हिस्से में उन्होंने भूमि अधिकारों और स्थायी कृषि के पहलुओं पर वाग्धारा से प्रशिक्षण प्राप्त किया.  लिलादेवी का काम महिला किसानों को उनके पंचायत के अधिकारों और टिकाऊ जैविक शाश्वत स्थायी कृषि के बारे में शिक्षित करना था.

शुरुआत में लिलादेवी ने अपने गांवों की महिला किसानों से बातचीत शुरू की. अपनी बातचीत के दौरानउन्होंने महसूस किया कि भले ही वह उन्हें टिकाऊ कृषि का अभ्यास करने के लिए मनाने की पूरी कोशिश कर रही थींलेकिन कुछ चीजें इन महिलाओं को इसे अपनाने से रोक रही थीं. आत्मनिरीक्षण करने परलिलादेवी समझ गईं कि उनकी अनिच्छा इसलिए थी क्योंकि उनके पास कोई रोल मॉडल नहीं थाजिससे वे संबंधित हो सकें.

इसलिए जिस तरह एक नेता रास्ता दिखाता हैउसी तरह लिलादेवी ने कदम बढ़ाने का फैसला किया और तय किया कि अगर उन्हें दूसरों को समझाना है तो उन्हें उदाहरण के साथ नेतृत्व करना होगा.

लिलादेवी की शादी एक किसान पंकज खाट से हुई हैजो अपने परिवार के साथ लगभग 4 बीघा ज़मीन पर खेती करते थे. उन्होंने उनके साथ टिकाऊ जैविक कृषि के लाभों के बारे में चर्चा की और साझा किया कि लंबे समय में यह कैसे फायदेमंद है. लेकिन घर के पुरुष नहीं माने. भले ही उनके पति लिलाबेन के समर्थक थेलेकिन परिवार के दबाव के कारण वह बहुत कम कर पाए. इस घटना ने लिलादेवी को यह समझने में मदद की कि एक महिला के लिए  उनके अधिकार कितने महत्वपूर्ण है. पुरुषों और महिलाओं दोनों के समान मात्रा में काम करने के बावजूदनिर्णय लेने में महिलाओं की बहुत कम भूमिका होती 

लिलादेवी ने उम्मीद नहीं खोई और अपनी भूमि में टिकाऊ जैविक स्थायी कृषि शुरू करने के अपने सपने को पूरा करना जारी रखा और बहुत प्रयासों के बाद आखिरकार उन्होंने उन्हें अपनी जमीन के एक छोटे से हिस्से में स्थायी कृषि शुरू करने के लिए राजी कर लिया.  लिलादेवी को प्रयोग के लिए 1 बीघा जमीन दी गई.

लिलादेवी ने श्री पद्धति से खेती शुरू की और सबसे पहले 1 बीघा जमीन में गेहूं बोया. उन्होंने गाय के गोबर को खाद के रूप में और दशपर्णीनिमास्त्र को जैव कीटनाशक के रूप में इस्तेमाल किया जो उनके घर में 2 बैल, 3 भैंस और 25 बकरियां उनकी आजीविका सृजन कर रही हैं. पहले वर्ष (2019 ) में  उत्पादन कम थाजिसे वह जानती थीं कि आमतौर पर ऐसा तब होता है जब हम सिंथेटिक रासायनिक खेती से प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ते हैं. लेकिन उपज का स्वाद वास्तव में अच्छा था.

कृषी मे खर्चा कम होने और उपज के स्वाद ने पंकज खाट को खुले तौर पर उनका समर्थन करने के लिए मजबूर किया. 

कुछ वर्षों के बादउन्होंने 3 बीघा जमीन में मक्कातुवर की स्वदेशी किस्मों और घरेलू उपयोग के लिए हरी सब्जियों बैगनटमाटरलैकीभिंडीप्याज की खेती करने वाली टिकाऊ सच्ची खेती कृषि करना शुरू कर दिया. लिलादेवी हमेशा केवल स्थानीय किस्मों के बीजों का उपयोग कियाजिन्हें उन्होंने अपनी फसलों से संरक्षित किया था.

लिलादेवी को टिकाऊ कृषि करते और अच्छी उपज प्राप्त करते देख अन्य महिला किसानों ने भी उनकी बात माननी शुरू कर दी. उनके लिएलिलादेवी ने एक सफल मॉडल पेश किया कि कैसे टिकाऊ कृषि से लाभ हो सकता है.

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लिलादेवी ने अब तक 5 गांवों की 140 से अधिक महिला किसानों को प्रेरित किया है और उन्हें टिकाऊ कृषि के अनुकूल बनाने में मदद की है. उन्होंने इन गांवों में स्थानीय फसल किस्मों के बीज बैंक भी शुरू करने का प्रयास किया हैं.

लिलादेवी कहती हैं, '' जैविक खेती अपनाने से और परिवार ने  सहयोग करने से फायदा हुआ है. पती पंकज खाट ने उनका आत्मविश्वास बढ़ाया और उन्हें फैसलों में अपनी बात कहने का मौका मिला. पुरुषों और महिलाओं दोनों के समान मात्रा में काम करने के बावजूदनिर्णय लेने में महिलाओं की बहुत कम भूमिका होती हैजो बहुत ही अनुचित है. लिलादेवी की मंशा आगे और ज्यादा महिलाओं को सक्षम करने की हैं.

रिपोर्ट- विकास मेश्राम, कार्यक्रम अधिकारी, वाग्धारा

English Summary: How the mother of 3 children became a successful farmer? Now giving training to other women
Published on: 31 December 2022, 12:46 PM IST

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