हिंदी भाषा (Hindi Language) को लेकर हाल ही में अमित शाह का बयान आया है जिसको लेकर बवाल मचा हुआ है. दरअसल, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) ने कहा कि हिंदी को अंग्रेजी के विकल्प के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए न कि स्थानीय भाषाओं के लिए इस्तेमाल करें (Hindi should be accepted as an alternative to English and not used for local languages). बता दें कि उन्होंने नई दिल्ली में संसदीय राजभाषा समिति की 37वीं बैठक के दौरान यह टिप्पणी की है.
प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्री ने समिति को सुझाव दिया कि यह हिंदी शब्दकोश का संशोधन (Revision of Hindi Dictionary) करने का समय है. उन्होंने यहां तक कहा कि केंद्रीय कैबिनेट का 70 फीसदी एजेंडा अब हिंदी में तैयार हो गया है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी "9वीं कक्षा तक के छात्रों के लिए हिंदी का प्रारंभिक ज्ञान" (Basic knowledge of Hindi for students up to class 9th) और "हिंदी शिक्षण परीक्षाओं पर अधिक ध्यान" (More focus on Hindi teaching exams) की आवश्यकता पर बल दिया है.
हिंदी भाषा क्यों है जरूरी (Why is Hindi language important)
उन्होंने आगे कहा कि "राजभाषा को देश की एकता का एक महत्वपूर्ण अंग बनाने का समय आ गया है. जब अन्य भाषा बोलने वाले राज्यों के लोग आपस में संवाद करते हैं, तो यह भारत की भाषा में होना चाहिए.
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा, "जब तक हम अन्य स्थानीय भाषाओं के शब्दों को स्वीकार करके हिंदी को लचीला नहीं बनाते, तब तक इसका प्रचार नहीं किया जाएगा."
विपक्ष की प्रतिक्रिया (Opposition's reaction)
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए, कांग्रेस नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने एक ट्वीट में कहा, "एक कन्नड़ के रूप में, मैं @HMOIndia @AmitShah की आधिकारिक भाषा और संचार के माध्यम पर टिप्पणी के लिए कड़ी निंदा करता हूं. हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा नहीं है. और हम इसे कभी नहीं होने देंगे."
टीएमसी के प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा, "हम हिंदी का सम्मान करते हैं लेकिन हम हिंदी थोपने का विरोध कर रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी का इस्तेमाल किया जाता है, भाषा के मुद्दे पर सरकार को यथास्थिति बनाए रखनी चाहिए.
इस मुद्दे पर बोलते हुए, शिवसेना नेता मनीषा कायंडे ने कहा, "अमित शाह ने जो कहा है, उसमें क्षेत्रीय भाषाओं और पार्टियों के मूल्य को कम करने का एक एजेंडा लगता है."