कपास की फसल को गुलाबी सुंडी ने बड़ी चुनौती दे रखी है. अगर आप किसान है, तो आपको यह जरूर पता होगा कि गुलाबी सुंडी कपास की खेती पर कितना बुरा असर डालती है. यह कीड़ा केवल कपास की फसल में ही लगता है. इस कीड़े ने पूरे भारत के कपास बोने वाले क्षेत्र की नींद उड़ा रखी है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा इस कीड़े का प्रकोप देखने को मिल रहा है. बता दें कि गुलाबी सुंडी कपास की गुणवत्ता को तो खराब करता ही है, साथ ही ये कपास की फसलों के पैदावार को भी 30 प्रतिशत तक कम कर देता है.
हर एक राज्य में गुलाबी सुंडी का प्रभाव
सेवानिवृत्त कृषि उपनिदेशक पी एन शर्मा ने बताया कि आज देश का कोई भी राज्य इस कीड़े के प्रभाव से मुक्त नहीं है. इस कीड़े की रोकथाम के लिए अनुसंधानकर्ता, प्रदेशों के कृषि अधिकारी एवं कृषि विज्ञान केंद्र निरंतर इसके प्रबंधन की व्यवस्था कर रहे हैं.
कपास की दुश्मन गुलाबी सुंडी का प्रबंधन जरूरी
जैसे कि आप सब लोग जानते हैं कि कपास बोने का समय आ चुका है. ऐसे में इसके प्रबंधन के लिए किसानों को सलाह देते हुए पी एन शर्मा ने बताया कि किसान लंबी अवधि का कपास नहीं बोये, बल्कि 140 से 160 दिन में पकने वाली कपास के बीज का ही प्रयोग करें. उन्होंने आगे कहा कि भूल कर भी जिनिंग फैक्ट्री से कपास का बीज खरीद कर नहीं बोये क्योंकि उस बीज में गुलाबी सुंडी रहती है. जिनिंग फैक्ट्री से लाए गए कपास के बीज बोने वाले किसान साथ में गुलाबी सुंडी को भी खेत में प्रवेश करवा रहे हैं.
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पी एन शर्मा ने आगे बताया कि सामान्य किसान एक ही तरह का कीटनाशक प्रयोग में लेता रहता है, इससे कीड़ों में कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है. एक ही प्रकार के कीटनाशकों का प्रयोग न करें, किसानों को अलग-अलग कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए.
कैसे लगाएं गुलाबी सुंडी का पता?
गुलाबी सुंडी फूल एवं डिंडु पर ही अंडे देती है और सुंडी बनते ही कपास के डिंडु में प्रवेश कर जाती है. सेवानिवृत्त कृषि उपनिदेशक पी एन शर्मा ने बताया कि फेरोमेन ट्रैप लगाने से गुलाबी सुंडी की उपस्थिति का पता चलता है. फेरोमेन ट्रेप से नारी सुंडी की गंध आती है. नर इस गंध की ओर आकर्षित होकर जाल में फंस जाता है. नर की संख्या जब कम होगी तो आगे प्रजनन चक्र गड़बड़ा जाएगा. साथ ही किसानों को मालूम पड़ जाएगा कि सुंडी का प्रकोप हो रहा है तो वह कीटनाशकों का प्रयोग सही समय पर कर सकेगा.
गांवों में बुवाई एक समय में करें
एक ही गांव में अलग-अलग अंतराल में बोई गई फसल में गुलाबी सुंडी को लंबे समय तक जीवित रहने का साधन मिल जाएगा. ऐसे में जहां तक संभव हो कपास की बुवाई एक साथ ही करें. गुलाबी सुंडी का प्रबंधन फसल कटने के बाद तक करना होता है.
भीलवाड़ा जिले की तरह इस वर्ष CITI CDRA ने सहभागी कपास विकास परियोजना का विस्तार चित्तौड़गढ़ जिले तक कर दिया है.
पुरुषोत्तम शर्मा