कृषि कार्य (Agriculture) से जुड़े लोगों के लिए ये बहुत बड़ी ख़बर है. जानवरों और मनुष्यों (Animals and Human) की सेहत से जुड़े ख़तरों के मद्देनज़र हर्बिसाइड ग्लाइफ़ोसेट पर बैन लगा दिया है. अब इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा. सरकार ने इसके लिए नोटिफ़िकेशन जारी किया है.
सरकारी पक्ष-
सरकार का कहना है कि इस केमिलकल (Glyphosate) के कई तरह के दुष्प्रभाव और ख़तरे सामने आ रहे थे. 25 अक्टूबर 2022 को जारी सरकारी नोटिफ़िकेशन (Notification) में कहा गया है कि, ग्लाइसोफ़ेट का इस्तेमाल अब कीट नियंत्रक ऑपरेटर्स (PCO) के अलावा कोई भी व्यक्ति इस केमिकल (Chemical) का इस्तेमामल अब नहीं करेगा. ग्लाइसोफ़ेट का इस्तेमाल प्रतिबंधित है. सरकार के आदेश में कंपनियों को ग्लाइसोफ़ट केमिकल के इस्तेमाल और उसके उत्पादन के लिए जारी किए गए रजिस्ट्रेशन सर्टिफ़िकेट को वापस देने के लिए कहा गया है जिससे लेबर पर बड़े अक्षरों में चेतावनी को शामिल किया जा सके.
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ख़रपतवार नियंत्रक के रूप में होता है इस्तेमाल-
खेती-किसानी से जुड़े लोग ग्लाइसोफ़ेट केमिल का इस्तेमाल खरपतवार नियंत्रण करने के लिए लम्बे समय से करते आ रहे हैं. बात मौजूदा वक़्त की करें तो यूरोपीय संघ (European Union) के कई देशों और अमेरिका (United States of America) समेत विश्वभर के 160 से ज़्यादा देशों में ग्लाइसोफ़ेट केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है. खरपतवार नियंत्रण के लिए दुनियाभर के ज़्यादातर किसान 40 सालों से ज़्यादा समय से ग्लाइसोफ़ेट केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है.
प्रतिबंध का विरोध-
उद्योग संगठन एग्रो-कमिकल फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया (ACFI) ने ग्लोबल रिसर्च का हवाला देते हुए इसके प्रतिबंध का विरोध किया है. संगठन की दलील है कि ग्लाइसोफ़ेट आधारित फॉर्म्यूलेशन बहुत ही सुरक्षित है और दुनियाभर में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. एसीएफ़आई ने ग्लोबल रिसर्च (Global Research) का हवाला देते हुए ग्लाइसोफ़ेट के बैन का विरोध किया. संगठन के महानिदेश कल्याण गोस्वामी ने कहा कि इंडिया और दुनियाभर में ग्लाइसोफ़ेट का टेस्ट और सत्यापन किया गया है. उन्होंने पीसीओ के ज़रिए इस केमिकल के इस्तेमाल का तर्कहीन बताया. उनका कहना है कि, ग्रामीण क्षेत्रों में पीसीओ की कोई मौजूदगी नहीं है. कल्याण गोस्वामी आगे कहते हैं कि कीट नियंत्रक ऑपर्टर्स के ज़रिए ग्लाइसोफ़ेट के इस्तेमाल को सीमित कर देने से किसानों को असुविधा होगी साथ ही खेती की लागत भी बढ़ेगी.