नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चर सांइसेज (एनएएएस) और एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चर सांइसेज ट्रस्ट (टीईएएस) के वैज्ञानिकों ने कहा है कि आनुवांशिक रूप से संशोधित जीएम सरसों की खेती इसी रबी सीजन में शुरू करने के लिए हमारी तैयारी पूरी हैं. आने वाले 10-15 दिनों में 100 से अधिक स्थानों पर जीएम सरसों के बीज उत्पादन के लिए बुवाई की जाएगी. इस कार्य योजना का संचालन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) करेगा.
वैज्ञानिकों की दोनों संस्थाओं ने यह भी स्पष्ट किया है कि अत्यंत आनुवांशिकी इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने सरसों की हाइब्रिड की पर्यावरण रिलीज को मंजूरी दे दी है. हाइब्रिड का पेटेंट वैज्ञानिक दीपक पेंटल के पास है. यह पर्याप्त प्रमाण है कि बिना किसी देरी के अब इस उन्नतशील किस्म की बुवाई की जा सकती है. हालांकि वैज्ञानिकों ने यह भी स्पष्ट किया कि पर्यावरण रिलीज की मंजूरी ‘पर्यावरण और वन मंत्रालय’ ने नहीं बल्कि जीईएसी ने दी है.
अगले तीन सालों में किसान जीएम सरसों का कर सकेंगे व्यावसायिक उपयोग
एनएएएस के अध्यक्ष टी. महापात्रा ने कहा है कि वर्तमान में जीएम-डीएमएच-11 सरसों के लगभग 11 किलो बीज उपलब्ध हैं. इसमें से 2 किलोग्राम बीज का भरतपुर के आईसीएआर के रेपसीड और सरसों निदेशालय अध्ययन कर रहा है. चालू रबी सीजन में सरसों की बुवाई का समय अगले 10-15 दिनों में समाप्त हो जाएगा. इसलिए हमने स्थानों का चयन कर लिया है और बुवाई के लिए तैयारिया तेज कर रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि अगर हालात सामान्य रहे तो अगले तीन सालों में जीएम सरसों किसानों के व्यावसायिक उपयोग के लिए उपलब्ध हो जाएगी.
जीएम हाइब्रिड शहद उत्पादन के लिए नहीं है खतरनाकः एनएएएस
जीएम सरसों के लाभों पर, टीएस महापात्रा और आरएस परोदा ने कहा कि आईसीएआर भरतपुर की देखरेख में आठ स्थानों पर तीन वर्षों तक जीएम सरसों की उपज का अध्ययन किया गया, सामान्य सरसों के मुकाबले इसकी उपज में 28 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है. एनएएएस के सचिव के.सी. बंसल ने कहा कि इससे न तो मधुमक्खियों को खतरा है न ही परागकण को, फैलाई जा रही सूचनाएं भ्रामक हैं.