हिमाचल प्रदेश की प्राकृतिक खेती व्यवस्था ना केवल देश में प्रचलित हैं, बल्कि पूरे विश्व में आज इसकी चर्चा हो रही है. देशवासियों के लिए ही नहीं, बल्कि विदेशियों के लिए भी हिमाचल में की जा रही खेती की प्रक्रिया सीखने का विषय बनती जा रही है.
फ्रांस के एवरॉन से आई कैरोल डूरंड ने कहा कि अगर हमें प्राकृतिक तरीके से अपना जीवनयापन यानि जीवन को चलाना है, तो गैर-रासायनिक खेती (organic farming ) एक बढ़िया विकल्प है. इसमें किसी भी तरह का कोई केमिकल उपयोग में नहीं लिया जाता है. घरेलू कचरे या प्राकृतिक रूप से तैयार किये गए खाद का इस्तेमाल इस फार्मिंग में किया जा रहा है.
डूरंड हिमाचल प्रदेश में राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना (पीके3वाई) के तहत कम लागत वाली प्राकृतिक कृषि तकनीक की जानकारी लेने और इसे सिखने आई है.
डूरंड का कहना है कि इस तरह की खेती इंसानों से लेकर पर्यावरण तक के लिए बहुत लाभदायक होता है. इसमें किसी तरह का कोई केमिकल या छिड़काव नहीं किया जाता है. यह योजना पिछले तीन वर्षों से चलाई जा रही है. पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित सुभाष पालेकर द्वारा तैयार की गई इस तकनीक को राज्य में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती (एसपीएनएफ) तकनीक का नाम दिया गया है और यह इसी नाम से जाना जाता है.
राज्य से मिली जानकारी के अनुसार राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई (एसपीआईयू), पीके3वाई द्वारा आयोजित प्रशिक्षण के बाद इस तकनीक को 1,33,056 किसानों ने या तो आधे मन से या पूरी तरह से अपनाया है. इसके तहत 7,609 हेक्टेयर पर इस तकनीक द्वारा खेती की जा रही है.
सरकार दे रही है बढ़ावा, ई-कॉमर्स से जुड़ रहे लोग
हिमाचल प्रदेश सरकार जैविक और आर्गेनिक फार्मिंग को काफी बढ़ावा दे रही है. हाल ही में एक फैसला लिया गया, जिसके तहत राज्य के जैविक फल कारोबारी और स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं अपने उत्पादों को अब अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स वेबासइटों पर बेच सकेंगी. उन्हें बड़ा बाजार उपलब्ध कराने और किसानों की आय को बढ़ाने के उदेश्य से राज्य सरकार यह योजना लेकर आई है.
ई-कॉमर्स मंचों के जरिये बेचे जाने वाले सामानों में हाथ से बने शॉल, स्वेटर, कालीन, जैविक शहद, फल, सूखे मेवे, मसाले, अचार और औषधीय जड़ी-बूटियां जैसे उत्पाद शामिल हैं. ई-कॉमर्स मंच पहाड़ी राज्य के दूरदराज या बर्फीले इलाकों में रहने वाले छोटे कारीगरों को अपने जैविक, प्राकृतिक और हाथ से बने सामानों को पेश करने और उन्हें देशभर के खरीदारों से जोड़ने में सक्षम बनाएगा.
इसके अलावा, राज्य सरकार प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर 100 हिम ईरा दुकानें खोलेगी. अभी तक स्वयं सहायता समूह अपने सामान की बिक्री स्थानीय स्तर पर ही साप्ताहिक बाजार, मेले और प्रदर्शनियों के माध्यम से कर रहे थे. लेकिन ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म मुहैया कराने की सरकार की योजना से अब ये देश भर में अपने सामान की बिक्री कर सकेंगे और इन्हें उचित दाम भी मिलेगा.
पहाड़ी इलाकों पर मिलने वाली वस्तुएं ज्यादातर वही तक सिमट कर रह जाती थे. यातायात की कमी और ऊचाइयों की वजह से वो हर किसी तक नहीं पहुंच पता था. जैसे की शॉल, पहाड़ी टोपी इत्यादि. लेकिन अब ई- कॉमर्स प्लेटफार्म के माध्यम से अब ये हर किसी तक आसानी से पहुंच सकता है. और कारीगरों से लेकर किसानों को इसका सही फायदा भी आने वाले दिनों में जरूर मिलेगा. अगर देखा जाए तो आज भी ई -कॉमर्स की मदद से ये सब अपनी कलकारी को हर जगह भेजकर मनाफ़ा कमा रहे है. ऐसे में सरकार ने अपनी तरफ से ये कदम उठाकर उन्हें और भी मजबूत और आत्मनिर्भर बनाया है.