भारत में करीब 14 मिलियन से अधिक की आबादी अपनी आजीविका के लिए ताजे पानी की मछलियों पर निर्भर है. लेकिन इस समय उनकी आजीविका पर बड़ा संकट मंडरा रहा है. दरअसल दुनिया भर में ताजे पानी की मछलियां तेजी से विलुप्त हो रही है. आंकडो पर गौर करें तो पिछले 60 वर्षों में मीठे पानी की प्रवासी मछलियों की आबादी में लगभग 70 प्रतिशत कमी आई है.
इस बारे में ‘द वर्ल्डस फॉरगॉटन फिशेस’ की रिपोर्ट कहती है कि अगर जैवविविधता को संरक्षण प्रदान नहीं किया गया तो भारत में बड़े स्तर पर मछली पालक बेरोजगारी के कगार पर आ जाएंगें. इस संगठन का मानना है कि मछलियों की कम होती आबादी का कारण बढता हुआ प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन है. इसके साथ ही रिपोर्ट कहती है कि पिछले 40 दशकों के दौरान ताजे पानी के मछलियों का शिकार जरूरत से ज्यादा हुआ है.
क्यों है चिंता की बात
गौरतलब है कि 2008 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में मत्स्य पालन का योगदान 1 प्रतिशत से भी अधिक था. भारत में मत्स्य पालन से लाखों लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जूड़े हैं. लेकिन इस समय जिस तरह से मीठे पानी के स्रोत प्रदूषित होते जा रहे हैं या बिना सोचे समझे उनके जल का दोहन हो रहा है, उस वजह से नदियों और झीलों का जल सूखता जा रहा है.
सूखते जा रहे हैं जल संसाधन
इसके अलावा जगह-जगह हाइड्रोपावर के निर्माण और लगातार हो रहे रेत खनन की वजह से जलीय जीवों पर संकट मंडरा रहा है. इसके साथ ही भारत में लगातार दो दशकों से कमज़ोर मानसून के कारण 330 मिलियन लोग सूखे की समस्या से प्रभावित हुए हैं. इसका प्रभाव नदियों और जल संसाधनों पर भी पड़ा है. उदाहरण के तौर गंगा को ही ले लीजिए, अभी पिछले साल ही उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में इस नदी का जल सूख गया था. जिसके कारण मछली पालकों की आजीविका खतरे में आ गई थी.
हालात की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वाराणसी, प्रयागराज, कानपुर और दूसरी कई जगहों पर गंगा नदी का जलस्तर न्यूनतम बिंदु तक पहुंच गया था और वहां डुबकी लगाने लायक पानी भी नहीं बचा था.