जैविक खेती को बढावा देने हेतु तमाम प्रयास किए जा रहे हैं. सरकार भी जैविक खेती के प्रति जागरूक कर रही है. मगर एक राज्य ऐसा भी है, जहां किसान जैविक खाद की प्रति रूचि नहीं दिखा रहे हैं. दरअसल, हम बिहार के सुपौल जिले की बात कर रहे हैं. यहां किसान जैविक खाद (Organic Fertilizers) का प्रयोग नहीं कर रहे हैं.
यहां तक कि किसानों की जैविक खाद (Organic Fertilizers) (वर्मी कंपोस्ट) के प्रति अरूचि का नतीजा है कि जिले में एक मात्र किसान जैविक खेती (Organic Farming) करता था, लेकिन अब उस किसान ने भी इसका इस्तेमाल लगभग बंद कर दिया है. इसमें वो किसान भी शामिल हैं, जिन्होंने जैविक खाद बनाने के लिए पिट भी तैयार की थी.
बता दें कि अब अधिकतर किसान रासायनिक खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं. हालांकि, राज्य सरकार ने जैविक खाद (Organic Fertilizers) के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए जैविक खाद (Organic Fertilizers) प्रोत्साहन योजना शुरू की थी. इस योजना के तहत साल 2018 में वीरपुर अनुमंडल के बसंतपुर प्रखंड के पिपरानी नाग गांव का चयन किया गया. इसके बाद कृषि विभाग द्वारा करीब 200 यूनिट पिट बनवाकर वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन शुरू कराया गया. यहां तक कि कृषि विभाग के अधिकारी इसे जैविक ग्राम की बड़ी उपलब्धि बताने लगे, लेकिन महज 3 साल में स्थिति पूरी उलट हो गई है.
मौजूदा वक्त में कृषि विभाग का कहना है कि चुने गए किसानों में से करीब 50 प्रतिशत किसानों ने जैविक खाद (Organic Fertilizers) का उत्पादन बंद कर दिया है. वहीं, गांव के किसानों का कहना है कि करीब सभी जगह जैविक खाद का उत्पादन बंद कर दिया गया है.
योजना बंद होने से विभाग भी सुस्त
कृषि विभाग पिपराही नाग को जैविक ग्राम घोषित करने के बाद पूरे जिले में इस योजना को लागू करने के लिए सक्रिय हुआ. कई जगह सेमिनार और जागरूकता अभियान भी चलाया गया. इस बीच सरकार द्वारा साल 2019 में जैविक खाद प्रोत्साहन योजना बंद कर दी. इसके बाद कृषि विभाग भी सुस्त पड़ गया. वहीं, किसानों ने भी जैविक खेती में अरूचि दिखाना शुरू कर दिया. इससे जैविक ग्राम बनाने का उद्देश्य असफल हो गया.
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4 से 5 हजार रुपए मिला था अनुदान
इस योजना के तहत जैविक खाद के उत्पाद के लिए एक पिट बनाने पर 4 से 5 हजार रुपए का अनुदान दिया जाता था. एक साल में 75 घनफीट वाले एक पिट से करीब 45 क्विंटल जैविक खाद (Organic Fertilizers) का उत्पादन होता है. इस तरह 3 महीने पर 15 क्विंटल जैविक खाद तैयार होती है. अगर ठंड का मौसम है, तो खाद बनने की प्रक्रिया काफी धीमी होती है.
जैविक खाद को लेकर किसान नहीं हैं जागरूक
माना जा रहा है कि किसान जैविक खाद के इस्तेमाल को लेकर जागरूक नहीं हैं. ऐसे में किसानों को समझना होगा कि रासायनिक खाद की तुलना में वर्मी कम्पोस्ट पर खर्च कम होता है. इसके साथ ही फसल का उत्पादन अधिक मिलता है. फिलहाल जैविक ग्राम पिपराही नाग की स्थिति को लेकर जांच कराई जाएगी. इसके बाद किसानों को जैविक खाद बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा.