भारत को किसानों का देश कहा जाता है. आज देशभर में किसान दिवस मनाया जा रहा है. इतिहास के पन्नों में दर्ज यह दिन कई तरह के उतार चढ़ाव से भरा है. इस दिन को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह की जयंती के रुप में मनाया जाता है. आज किसानों के सर्वमान्य नेता चौधरी चरण सिंह की 117वीं जयंती हैं. जिन्होंने किसानों के हित में काफ़ी काम किया था. साथ ही किसानों से जुड़े कई मुद्दों पर आवाज उठाई. किसान दिवस याद दिलाता है कि किसान देश का अन्नदाता है और उसकी हर एक समस्या को दूर करना पूरे देश का दायित्व है. चौधरी चरण सिंह एक ईमानदार और स्वच्छ छवि के नेता हुआ करते थे. वह राजनीति में भाई—भतीजावाद, जातिवाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ थे. चौधरी चरण सिंह का जितना योगदान किसानों के लिए रहा, उतना ही राजनीति में भी रहा, तो आइए उनके राजनीतिक सफर के बारे में जानते है.
चौधरी चरण सिंह का प्रारम्भिक जीवन
किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर 1902 को हुआ. वह यूपी के मेरठ जिले के नूरपुर गांव में पैदा हुए. उनके पिता एक मध्यम वर्गीय किसान थे. उन्होंने साल 1923 में स्नातक औऱ साल 1925 में स्नातकोत्तर की डिग्री ली. इसके बाद कानून की पढ़ाई करके गाजियाबाद में वकालत शुरु की. सन् 1929 में वह मेरठ आकर रहने लगे और बाद में कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए.
स्वतंत्रता सेनानी बनने का सफर
भारत में आजादी के लिए संघर्ष चल रहा था, तो नौजवान चौधरी चरण सिंह भी कब पीछे रहने वाले थे. वो आजादी के संघर्ष में शामिल हो गए. वह साल 1929 में कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए. साल 1930 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू हुआ. इस आंदोलन में नमक बनाकर कानून तोड़ा गया. उन्होंने गांधी जी का समर्थन दिया और गाजियाबाद में बहने वाली हिण्डन नदी पर नमक बनाया. इस आंदोलन में वह 6 महीने के लिए जेल भी गए. इतना ही नहीं, उन्हें साल 1940 में सत्याग्रह आंदोलन के दौरान भी गिरफ्तार किया गया. साल 1942 में भारत छोड़ो का आगाज हुआ,
जिसमें गांधी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया. इस दौरान चौधरी चरण सिंह ने गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, मवाना, सरथना, बुलन्दशहर के गांवों में गुप्त क्रांतिकारी संगठनों का संचालन किया.
चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक सफर
आजादी के बाद चौधरी चरण सिंह की छवि एक किसान नेता के रुप में उभरी थी. उन्हें उत्तर प्रदेश मन्त्रिमण्डल में स्वायत शासन और स्वास्थ्य विभाग में सचिव का पद दिया गया. चौधरी चरण सिंह ने किसानों के हित में पहला क्रान्तिकारी कदम साल 1953 में उठाया, जब चकबन्दी अधिनियम लागू हुआ. इसी साल उत्तर प्रदेश में भूमि संरक्षण कानून भी पारित कराया. वह चौधरी चरण सिंह ही थी, जिन्होंने कृषि आपूर्ति संस्थानों की योजना, सस्ती खाद, बीज आदि की सुविधा दिलाई.
चौधरी चरण सिंह पहली बार 3 अप्रैल, 1967 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद उन्होंने 17 अप्रैल, 1968 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उनकी पार्टी को मध्यावधि चुनाव में अच्छी सफलता मिली. जिसके बाद उन्हें वह दोबारा 17 फ़रवरी, 1970 को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया. उन्हें केन्द्र सरकार में गृहमंत्री बनने का मौका भी मिला, इस दौरान उन्होंने मंडल आयोग और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की. साल 1979 में उन्हें देश के वित्त मंत्री और उप-प्रधानमंत्री के रूप कार्य किया. तब उन्होंने राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.
चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य भी मिला. वह 28 जुलाई, 1979 को देश के पांचवें प्रधानमंत्री बने. प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने गरीबी मिटाने और नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास किया. उन्होंने देशवासियों को संदेश दिया था कि ‘राष्ट्र तभी सम्पन्न हो सकता है, जब उसके ग्रामीण क्षेत्र की प्रगति होगी और ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति अधिक हो.
चौधरी चरण सिंह का निधन
चौधरी चरण सिंह एक खुली किताब की तरह थे. उन्होंने अपने जीवन में एक ईमानदार नेता बनकर लोगों की सेवा की. उन्होंने अपना राजनीतिक सफर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते हुए गुजारा. चौधरी चरण सिंह एक जुझारू, कर्मठ और किसान नेता थे. जिनका निधन 29 मई, 1987 को हुआ, लेकिन आज भी उनके योगदान को पूरा देश याद करता है और हमेशा करता रहेगा.