पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने खनन और खनिज (विकास एवं विनियम) अधिनिययम 1957 में संशोधन कर कुम्हारों को मिट्टी के बर्तन आदि बनाने के लिये मिट्टी के खनन और बारिश में आयी बाढ़ के कारण खेतों में जमा होने वाली बालू को हटाने के लिये किसानों को अब पर्यावरण नियमों के तहत मंजूरी लेने की बाध्यता को खत्म कर दिया गया है.
इस तरह की अन्य गतिविधियों के लिये पर्यावरण मंजूरी लेने से अब छूट दे दी है. उल्लेखनीय है कि मौजूदा व्यवस्था में खनन संबंधी इस तरह की तमाम गतिविधियों के लिये पर्यावरण मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना अपेक्षित है.
मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार कुम्हारों को मिट्टी के बर्तन आदि बनाने के लिये बिना मशीनों का इस्तेमाल किये हाथ से मिट्टी या बालू की उनकी प्रथाओं के अनुसार निकासी (मैनुअल खनन) के लिए भी अब पर्यावरण मंजूरी लेना जरूरी नहीं होगा.
इस में मिट्टी के खपरैल (मिट्टी की टाइल) बनाने के लिये साधारण मिट्टी या बालू के गैर मशीनी खनन को भी शामिल किया गया है. मंत्रालय ने इन नियमों में संशोधन को जरूरी बताते हुये दलील दी कि इस प्रकार की आजीविका से जुड़ी पारंपरिक गतिविधियों से संबद्ध समुदायों ने ऐसी गैरजरूरी मंजूरी लेने की अनिवार्यता को खत्म करने का अनुरोध किया था.
प्रतिवेदनों पर विचार विमर्श के बाद नियमों में बदलाव किया गया है. इसमें अंतरज्वारीय क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों की हाथ से चूना पत्थर के खनन में पर्यावरण मंजूरी को हटाने की मांग भी शामिल थी. अधिसूचना में किसानों को हर साल बारिश जनित बाढ़ के कारण खेतों में आयी बालू को हटाने के लिये खनन नियमों के तहत पर्यावरण मंजूरी लेने की जरूरत को भी समाप्त कर दिया गया है.
ग्राम पंचायत की जमीन से बालू या मिट्टी के व्यक्तिगत उपयोग या गांव में सामुदायिक कार्य के लिये पूर्व प्रचलित प्रथाओं के अनुसार खनन को भी पर्यावरण मंजूरी के दायरे से बाहर कर दिया गया है.
संशोधित नियमों के तहत अब गांव के तालाब या अन्य जलस्रोत से गाद हटाने और मनरेगा सहित तमाम सरकारी योजनाओं द्वारा प्रायोजित ग्रामीण सड़क, तालाब या बांध बनाने के लिये, सड़क और पाइपलाइन बिछाने जैसे कामों में मिट्टी की निकासी और आपदा प्रबंधन के तहत जलस्रोतों से गाद निकालने के कार्यों को भी पर्यावरण मंजूरी की बाध्यता से मुक्त किया गया है.
ग्रामीण क्षेत्रों के लिये सिंचाई और पेयजल के लिये कुंओं की खुदाई और ऐसी इमारतों, जिनके निर्माण के लिये पर्यावरीण अनापत्ति अपेक्षित नहीं है, की नींव खोदने से पहले अब पर्यावरण मंजूरी लेना जरूरी नहीं होगा.