बड़ी आजीब स्थिति है. एक तरफ जहां महामारी को काबू में करने के लिए सरकार पर राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का दबाव है, तो वहीं कुछ किसानों संगठनों का कहना है कि सरकार आम जनता को महज बेहाल करने के लिए लॉकडाउन लगा रही है. जहां सरकार का कहना है कि महामारी की चेन को तोड़ने के लिए लॉकडाउन जरूरी है, तो वहीं किसान संगठनों का कहना है कि हम सरकार के इस फरमान को नहीं मानेंगे, तो क्या सरकार शौकियां तौर पर इस लॉकडाउन को लगा रही है. लॉकडाउन तो इसलिए लगाया जा रहा है, ताकि बेकाबू हो चुकी स्थिति को काबू में किया जा सके. बीते दिनों खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने बयान में कहा था कि हम तो खुद नहीं चाहते कि लॉकडाउन लगाएं. हम तो चाहते हैं कि जल्द से जल्द स्थिति दुरूस्त हो और लोग अपने काम-धंधों पर लौटे. स्थिति पहले की तरह सामान्य हो जाए. इतना ही नहीं, लगातार बीते कई दिनों से कई राज्य सरकारें, संगठन समेत सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार से देशव्यापी लॉकडाउन लगाने को कह रही है, मगर सरकार ने इसकी जिम्मेदारी राज्यों को दे रखी है. उधर, इससे पहले योगी सरकार ने प्रदेश के पांच बड़े शहरों में लॉकडाउन लगाने से मना कर दिया था, मगर जब हालात बेकाबू हुए, तब जाकर प्रदेश सरकार लॉकडाउन जैसा कठोर कदम उठाने पर बाध्य हुई.
किसानों संगठनों का बड़ा ऐलान
यहां हम आपको बताते चले कि पंजाब के 31 किसान संगठनों ने लॉकडाउन का विरोध किया है. किसान संगठनों ने ऐलान किया है कि आगामी 8 मई को वे खुद बाजारों में जाकर दुकानों को खुलवाएंगे और सभी को काम धंधों पर लौटने के लिए कहेंगे, जबकि आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि व्यापारियों की संस्थान कैट ने खुद केंद्र सरकार समेत राज्य सरकारों से महामारी को काबू में करने के लिए लॉकडाउन लगाने की मांग कर चुकी है. ऐसे में किसान संगठनों द्वारा दिए गए इस बयान से आप कितने सहमत होते हैं. यह तो आप ही बता सकते हैं.
यहां तक की कल तक लॉकडाउन का विरोध करने वाले राहुल गांधी ने भी खुद केंद्र सरकार को लॉकडाउन लगाने का सुझाव दिया है. अब ऐसे में किसान संगठनों की तरफ दिए जाने वाला यह बयान कि सरकार महज आम जनता को परेशान करने के लिए, आम जनता को बेहाल करने के लिए, आम जनता को कमजोर करने के लिए, आम जनता की स्थिति आर्थिक स्थिति को दुरूह करने के लिए लॉकडाउन लगा रही है, यह कहां तक उचित है. इसका अंदाजा आप सहज ही लगा सकते हैं.
इतना ही नहीं, बुधवार को हुई बैठक में किसानों ने फैसला किया है कि वे आगामी 10 और 11 मई को दिल्ली की सीमा पर धरना देंगे, जबकि सरकार कोरोना महामारी को देखते हुए किसानों को पहले ही घर जाने के लिए कह चुकी है, लेकिन किसान हैं कि मानने को तैयार ही नहीं हैं. वहीं, बैठक में शामिल हुए किसानों ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार कह रही है कि कोरोना महामारी हमारे आंदोलन की वजह से बेकाबू हुआ है, बल्कि यह सरासर झूठ है. हम यहां आंदोलन के दौरान पूरी एहतियात बरते हैं. सोशल डिस्टेंसिंग समेत सारे नियमों का पालन कर रहे हैं, जिससे की बेकाबू हो चुके कोरोना को काबू किया जा सके.
किसानों का कहना है कि सरकार अपनी नाकामियों का ठीकरा पर हम पर फोड़ रही है. अस्पताल में लगातार मरीज ऑक्सीज़न के अभाव में दम तोड़ते जा रहे हैं, मगर सरकार मूकदर्शक बनकर इन ह्रदय विदारक स्थिति को देख रही है. विदित हो कि इससे पहले भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के खिलाफ महामारी के दौरान हरियाणा में कार्यक्रम आयोजित करने के जुर्म में एफआईआर दर्ज की गई थी. उन पर आरोप था कि उन्होंने महामारी के दौरान जारी किए गए दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है. उनके ऊपर कई धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी, जबकि टिकैत का कहना था कि यह एफआईआर गलत है.
हमने कार्यक्रम के दौरान सभी स्वास्थ्य दिशानिर्देशों का पालन किया था. टिकैत का कहना है कि यह सब कुछ सरकार हमारे आंदोलन को कुचलने के लिए कर रही है, मगर हमारा आंदोलन यथावत जारी रहेगा. सरकार कितनी भी कोशिशें कर ले, हमारे आंदोलन को खत्म नहीं कर सकती है. खैर, यह तो किसानों के मसले की बात रही, लेकिन अगर भारत में महामारी के वर्तमान स्थिति की बात करें, तो यह अब भयावहता के सारे पैमानों को पार कर चुकी है.
कैसी है कोरोना से भारत की स्थिति
गंभीर हो चुके हालातों का अंदाजा आप महज इसी से लगा सकते हैं कि अब भारत में कोरोना की तीसरी लहर के आने की संभावना जताई जा रही है. अब कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लोग इतनी बुरी तरह टूट चुके हैं, तो आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि कोरोना की तीसरी लहर अगर आती है, तो स्थिति कैसी होगी.