साल के जिन 5 महीनों में मोगरा किसान हंसते-गाते थे, आज उन महीनों में आंसू बहा रहे हैं. पूरे साल भर की मेहनत के बाद मोगरे की बंपर पैदावार हुई है, लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से इसकी कहीं मांग नहीं है. अप्रैल माह से लेकर अभी तक मोगरा किसानों को लाखों रूपयों का नुकसान हो चुका है. अगर जल्दी ही हालात सही नहीं हुए तो वो बर्बादी की कगार पर पहुंच जाएंगें.
लॉकडाउन ने छीन ली मोगरे की महक
मोगरे की महक के बिना किसी तरह का कार्यक्रम संपन्न नहीं होता है, इसकी मांग को देखते हुए बड़े स्तर पर भारत में इसकी खेती की जाती है. सभी मंदिर परिसर एवं धार्मिक कार्यों में इसकी उपयोगिता है. लेकिन इस बार मोगरा खेतों में ही सड़ रहा है. कोरोना के कारण देशभर में सभी तरह के आयोजनों पर प्रतिबंध है. लगभग सभी धार्मिक क्रियाकलापों पर भी रोक लगा हुआ है, जिस कारण बाजार से इसकी रोनक गायब है.
गुलाब से भी महंगा है मोगरा
लोकप्रियता के मामले में भले ही गुलाब को अधिक महत्व दिया जाता हो, लेकिन व्यापार की दृष्टि से मोगरे के फूल किसानों के लिए अधिक फायदेमंद हैं. जी हां, मोगरा गुलाब से भी अधिक महंगा बिकता है. गुलाब जहां 50 रुपए किलो के आस-पास बिकता है, वहीं मोगरे की कीमत 200 से 300 रुपये प्रति किलो हो सकती है.
इवेंट्स ऑर्गनाइजर्स को भी हो रहा है नुकसान
लॉकडाउन की वजह से इवेंट्स ऑर्गनाइजर्स और डेकोरेटर्स भी नुकसान में चल रहे हैं. अधिकतर ऑर्गनाइजर्स ने किसानों से एडवांस ऑर्डर्स ले रखे थे. अब लॉकडाउन में आयोजनों पर प्रतिबंध के कारण वो किसानों को बकाया नहीं दे पा रहे. अधिकतर समझौतों का स्वरूप मौखिक ही है, इसलिए किसान भी कानूनी लड़ाई लड़ने में असहाय है.
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