भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR), नई दिल्ली में आज धान की पराली प्रबंधन पर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें देश के कई किसान भाइयों ने भाग लिया और अपने विचारों को व्यक्त किया. बता दें कि इस कार्यक्रम की शुरूआत एक सफल किसान चौधरी सुखबीर सिंह ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पगड़ी पहनाकर सम्मानित किया और फिर इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया.
इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि धान की पराली को लेकर दिल्ली और इसके आस-पास के क्षेत्रों में चर्चा होती है, जब सीजन आता है, तो सभी लोग चिंता प्रकट करते हैं और फिर जैसे ही सीजन खत्म हुआ सब लोग अपने-अपने काम में वापस से लग जाते हैं. देखा जाए तो अब तो दूसरी परिस्थिति और भी खड़ी हो गई है कि पराली का उत्पन्न होना और उसे बाद में आग लगा देना. इससे जो भूमि को नुकसान है उसपर चर्चा कम हो रही है, बल्कि राजनीति पर चर्चा अधिक की जा रही है. अगर पराली जलाने से नुकसान होता है, तो सबको खुले मन से इसे स्वीकार करना चाहिए. इसके नुकसान से बचने के लिए हमें सही उपाय करने चाहिए. ताकि हमारी मिट्टी भी अच्छी रहे, पर्यावरण भी अच्छा रहे और साथ ही किसानों को भी इससे फायदा पहुंचे.
वायु प्रदूषण की समस्या भारत के हर एक हिस्से में बढ़ती जा रही
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, हमारे देश में प्रतिवर्ष लगभग 550 लाख टन फसल अवशेषों का उत्पादन होता है, फसल अवशेषों का उत्पादन उत्तर प्रदेश (60 मिलियन टन) में सबसे अधिक है, इसके बाद पंजाब (51 मिलियन टन) महाराष्ट्र (46 मिलियन टन) और हरियाणा (22 मिलियन टन) का स्थान आता है. भारत में सभी फसलों के अवशेषों में अनाज वाले फसल अवशेष (352 मिलियन टन) उत्पन्न होते हैं. जिसमें चावल, गेहूं, मक्का, बाजरा का योगदान 70% है, जबकि अकेले धान की पराली का योगदान 34% है. वायु प्रदूषण की समस्या लगभग भारत के हर एक हिस्से में बढ़ती जा रही है. पराली और दीवाली के पटाखे जलाने से प्रदूषण की समस्या और भी बढ़ जाती है.
धान की कटाई और दीपावली के समय यह समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिलती है. इसका मुख्य कारण पंजाब और हरियाणा में किसानों के द्वारा जलाई जाने वाली पराली होती है. पराली के धुएं से दिन के समय में भी धुंध छा जाती है. अक्टूबर और नवम्बर के महीनों में हवा की गति बहुत कम हो जाती है. जिसके कारण यह धुंआ और भी खतरनाक हो जाता है. इससे निकलने वाला हानिकारक धुआं केवल स्वास्थ्य के लिए ही खतरनाक नहीं बल्कि यह कोरोना जैसे महामारी में और भी अधिक खतरनाक हो जाता है. इसीलिए किसान खेत में लगी हुई पराली को काटने की बजाय उनमें आग लगा देते हैं. जिससे खेत जल्दी से खाली हो जाए और और वह उस जमीन पर गेहूं या अन्य किसी फसल के उत्पादन के लिए बुआई. कर सके. किसान जल्दी से जल्दी अपने खेत को खाली कर दूसरी फसल लगाना चाहता है. इन सब समस्याओं को देखते हए किसानों को पराली न जलाने के लिए केंद्र सरकार ही नहीं राज्य सरकार भी अपने-अपने स्तर पर कई इंतजाम करती रहती है.
कृषि मशीन के जरिए किसान पराली का सही इस्तेमाल करें
किसान अपने खेत से पुआल निकालने के लिए मशीन बेलर का इस्तेमाल कर सकते हैं . इसे आप गांठे बना सकते हैं. यदि आप पुआल को नहीं हटाते हैं, तो आपको धान के भूसा प्रबंधन का विकल्प चुनना होगा. इसमें किसान अपनी पराली को आसान तरीके से नष्ट कर सकते है. हैप्पी सीडर एक मशीन है, जिसका डिजाइन सिर्फ खड़े धान की बुआई करने के लिए ही किया गया है, जो किसानों के लिए बेहद ही सुविधाजनक है. पूसा डीकंपोजर कैप्सूल भारतीय कृषि अनुसंधान दवारा विकसित एक ऐसी घोल है. जिससे फसलों के अवशेष या पराली को गलाकर खाद बना दिया जाता है.
आपको बता दें, डीकंपोजर के 4 कैप्सूल, थोड़ी गुड़ और चने का आटा मिलाकर लगभग 10-12 दिन में 25 लीटर घोल तैयार किया जा सकता है. इस घोल की इतनी मात्रा से एक हेक्टेयर भूमि की पराली को नष्ट किया जा सकता है. धान की पराली को खेत में ही सड़ाने गलाने के लिए पूसा डीकंपोजर का प्रयोग बाकी तरीको की तुलना में सबसे सस्ता एवं आसान है. भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा प्रभावी माइक्रोबियल कंसोर्टियम अर्थात् पूसा डीकंपोजर अब पाउडर आधारित फॉर्मूलेशन के तौर पर भी विकसित किया गया है. एक पैकेट केवल 1 एकड़ के लिए पर्याप्त है जिसको 200 लीटर पानी में घोलकर तुरंत छिडकाव किया जा सकता है. इससे किसानों को पराली जलाने से छुटकारा मिल जाता है और इसके इस्तेमाल से फसल अवशेष खाद में तब्दील हो जाते हैं. इसका उपयोग करने से पर्यावरण को किसी भी प्रकार की हानि भी नहीं होती है.
बता दें कि इसका उपयोग किसान अपने खेत में धान की पुआल कटाई के बाद करते हैं. मिट्टी को उपजाऊ और बेहतर रखने के लिए किसान के लिए यह स्थाई समाधान है. गत तीन वर्षों में पूसा डीकंपोजर प्रयोग/प्रदर्शन औसतन उत्तर प्रदेश में 26 लाख एकड़, नई दिल्ली 10000 हजार एकड़, पंजाब 5 लाख एकड़, हरियाणा 3.5 लाख एकड़ में किया गया है और इसके बहुत ही अच्छे परिणाम सामने आए हैं.
इस डीकंपोजर से आप भूसे को भी गला सकते हैं. बता दें कि इसका उपयोग किसान अपने खेत में धान की पुआल कटाई के बाद करते हैं. मिट्टी को उपजाऊ और बेहतर रखने के लिए किसान के लिए यह स्थाई समाधान है.