वैश्विक कृषि कंपनी कॉर्टेवा एग्रीसाइंस (NYSE: CTVA), ने 13 अक्टूबर, 2020 को बताया कि इसने मक्के की फसल के मशीनीकरण और किसानों को सशक्त बनाने के लिए कई पहल की हैं, जो कार्यान्वयन के पहले वर्ष में पानी के कम उपयोग, खेती की कम लागत और किसानों की आय में वृद्धि करते हुए किसानों की पैदावार बढ़ाने में मदद करती हैं.
डॉ. अरुणा राचाकोंडा, मार्केटिंग डायरेक्टर, कॉर्टेवा एग्रीसाइंस™, दक्षिण एशिया ने कहा, “भारतीय कृषि की पूर्ण क्षमता का उपयोग करने के लिए, किसानों को प्रौद्योगिकी और स्थायित्वपूर्ण प्रणालियों को अपनाने की दिशा में तेजी दिखाने की आवश्यकता है.
इस जरूरत को स्वीकार करते हुए, हम पांच बड़े भारतीय क्षेत्रों में छोटे किसानों को सशक्त बनाने के लिए काम कर रहे हैं, ताकि वे अपनी मक्के की फसल के उत्पादन का मशीनीकरण कर सकें. इसके अलावा, हम किसानों को फसल की उत्पादकता और लाभ बढ़ाने वाली नई कृषि विधियों पर प्रशिक्षण भी प्रदान कर रहे हैं.”
पिछले वर्ष के दौरान मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक और राजस्थान के क्षेत्रों में, कॉर्टेवा ने चयनित किसानों को रियायती मूल्य पर मक्के के बीजों को बोने वाली मशीन का वितरण किया है और उन्हें जलवायु के अनुकूल उच्च-उपज क्षमता / कम-लागत वाली कॉर्न (मक्का) हाइब्रिड तक पहुंच दी है.
यह सीमित क्षेत्रों के लिए उच्च उपज / उच्च लागत वाले संकरों और शेष क्षेत्रों के लिए कम लागत वाले बीजों का उपयोग करने के पारंपरिक क्षेत्रीय अभ्यास की तुलना में मक्का के बीज उत्पादन पर अधिक नियंत्रण प्रदान करता है, जिससे उत्पादकता में कमी आई. कंपनी ने किसानों को खेती की प्रणालियों और बीज बोने वाली मशीन के उपयोग के बारे में भी प्रशिक्षित किया है.
इसके अलावा, उसने सर्वोत्तम प्रणालियों को लागू करने के लिए बीजों व उर्वरकों का प्रदर्शन किया है, सुखाने की सही प्रक्रियाओं को लागू किया है और शीत भंडार इकाईयों के अलावा छंटाई, ग्रेडिंग और पैकेजिंग इकाईयां भी स्थापित की हैं.
खेतों के मशीनीकरण के अलावा, कॉर्टेवा ने 12,000 आदिवासी महिला मक्का किसानों को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है. इसमें कृषि कार्यों का प्रशिक्षण, स्मार्ट फसल उत्पादन तकनीक प्रदान करना और बाजार से जुड़ाव और शुरु से अंत तक मूल्य श्रृंखला बनाने के लिए किसान उत्पादक कंपनियों ’(FPC) का एक पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करना शामिल है.
इन प्रयासों का ही नतीजा है कि इन पांच क्षेत्रों में किसान पहले की तुलना में कम पर्यावरणीय प्रभाव के साथ खरीफ मक्का की बुआई के लिए उपलब्ध संक्षिप्त विकल्प का उपयोग करने में सक्षम हो सके हैं और उनकी आय में भी बहुत अधिक बढ़ोतरी हुई है.
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