भूमि की मिटटी का निर्माण चट्टानों के छोटे महीन कड़ों, खनिज, जैविक पदार्थ वैक्टीरिया आदि का मिश्रण होता है. यह मिश्रण फसलों को उपजाऊ बनाने में बहुत महत्वपूर्ण काम करती है. अलग – अलग जगह मिटटी के कई रूप होते हैं, जैसे रेतीली मिटटी, जरजर मिटटी, पथरीली मिट्टी. इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के बागमती नदी के पास की रेतीली मिटटी इन दिनों किसानों के लिए सफल उपजाऊ साबित हो रही है.
बता दें कप राज्य के किसान रेतीली मिटटी (Sandy soil) पर तरबूज, खीरा एवं लौकी की खेती (Cultivation of Watermelon, Cucumber and Gourd) की तैयारी शुरू कर दी है. वहीँ दूसरी और राज्य के शिवहर के किसान भी अपना रुझान रेतीली मिटटी पर खेती की ओर बढ़ा रहे हैं.
दरअसल, पिपराही और पुरनहिया के इलाकों में हर साल आती बाढ़ ने किसानों की फसलों को बहुत नुकसान पहुँचाया है. ऐसे में किसानों ने अब उस इलाके में खेती की उम्मीद ही छोड़ दी थी.
लेकिन साल 2000 के आसपास यूपी से आए किसानों के समूह ने रेत की जमीन को लीज पर लेकर यहां तरबूज की खेती शुरू की. इसकी पैदावार अच्छी हुई, जिससे जिले के किसान प्रेरित हो कर अब रेलती मिटटी में उत्पादन की अच्छी उम्मीद रखने लगे हैं. किसान भाई अन्य तरह की फसलों का उत्पादन कर रहे हैं.
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बाढ़ जैसे ही आती है तो वो अपने साथ मिटटी में पाए जाने वाले सूक्ष्म पोषक तत्व और दोमट को ले जाती है, और पानी के घटने के बाद, ये पोषक तत्व खेतों में जमा हो जाते हैं, जहाँ वे मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता में सुधार करते हैं.
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तटबंध ने न केवल उर्वरता बल्कि मछली पालन को भी प्रभावित किया. हम बाढ़ के मौसम में खाइयों में मछली पकड़ते थे. अब, तटबंध के बाद, हमने वह अवसर खो दिया है.