भा.कृ.अनु.प.- केन्द्रीय पटसन एवं समवर्गीय रेशा अनुसंधान संस्थान (क्राइजैफ), बैरकपुर ने पटसन सड़न अनुसंधान में एक नया आयाम जोड़ा है. संस्थान के वैज्ञानिकों के सम्मिलित प्रयास से तूफान में क्षतिग्रस्त जूट के पौधे स्वस्थ होकर खेत में फिर से लहलहाने लगे हैं. यह क्राइजैफ, बैरकपुर की एक बड़ी उपलब्धि है. यह बताना प्रासंगिक होगा कि भारत दुनिया में कच्चे पटसन और पटसन के सामान का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो वैश्विक उत्पादन में लगभग 60% का योगदान देता है और खेती, व्यापार और उद्योग में लगभग 5 मिलियन लोगों को आजीविका सहायता प्रदान करता है. हालांकि, घरेलू बाजार पटसन क्षेत्र के लिए मुख्य आधार बना हुआ है, देर से हीसही, निर्यात बाजार में हमारी हिस्सेदारी भी बढ़ती हुई दिख रही है. आज इस बहुमुखी प्राकृतिक रेशे की जैव-विघटनशील प्रवृत्ति और पारिस्थितिक रूप से मित्रवत प्रकृति के कारण पटसन निर्मित मूल्य वर्द्धित सामग्रियों के निर्यात के माध्यम से प्रति वर्ष हमारा देश लगभग 2200 करोड़ रुपये अर्जित करता है. हालांकि, उच्च मूल्यवान विविध उत्पादों के लिए उपयुक्त होने के लिए, पटसन रेशे की गुणवत्ता को बेहतर करने की आवश्यकता है.
भा.कृ.अनु.प.-केन्द्रीय पटसन एवं समवर्गीय रेशा अनुसंधान संस्थान (क्राइजैफ), बैरकपुर के निदेशक डॉगौरांग कर ने बताया कि रेशे की गुणवत्ता,पटसन किस्मों की आनुवंशिक पृष्ठभूमि के अलावा, काफी हद तक किसानों द्वारा अपनाई गई सड़न प्रक्रिया पर निर्भर करती है. यह एक नकदी फसल है जिससे किसानों को तो लाभ मिलता ही है और जूट उद्योग में लाखों लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है. सिर्फ पश्चिम बंगाल में जूट उद्योग पर लगभग पांच लाख लोगों की आजीविका टिकी है. जूट मिलों की आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद अभी भी यह सबसे अधिक रोजगार देने वाला उद्यम बना हुआ है.
इस वर्ष बुवाई की अवधि से ही शुरू, कोरोना रोग के प्रकोप के कारण शुरू में पटसन की खेती में एक झटका लगा. इसके पश्चात अमफन चक्रवात ने मई, 2020 के तीसरे सप्ताह में पटसन की खड़ी फसल पर कहर बरपाया.कोविड-19 के प्रकोप और अमफन चक्रवात के बावजूद, भा.कृ.अनु.प.-केन्द्रीय पटसन एवं समवर्गीय रेशा अनुसंधान संस्थान, बैरकपुर, भारतीय पटसन निगम और राष्ट्रीय पटसन बोर्ड जैसे हितधारकों के प्रयासों के कारण पटसन उगाने वाले राज्यों के बड़े क्षेत्रफल में फसलखड़ी हो पायी है.
इस संदर्भ में, डॉ कर ने उल्लेख किया कि हाल ही में भाकृअनुप-केन्द्रीय पटसन एवं समवर्गीय रेशा अनुसंधान संस्थान, बैरकपुर के वैज्ञानिकों द्वारा पटसन सड़न अनुसंधान के क्षेत्र में एक नयी सफलता हासिल की गई है, जिसमें उच्च थ्रूपुट जीनोम अनुक्रमण द्वारा पटसन सड़न में सहायक जीवाणु के जीनोम अनुक्रम (Genome Sequencing) को डिकोड किया है. गहन जीनोमिक विश्लेषण में बेसिलस की तीन अलग-अलग प्रजातियों ने कंसोर्टियम उपभेदों का गठन किया. जीनोम अनुक्रमण भी पुष्टि करता है कि ये जीवाणु केवल पेक्टिन, हेमिसेलुलोज और अन्य गैर-सेल्युलोसिक सामग्री को नष्ट कर देता हैऔर रेशा प्रदान करता है जो बिलकुल भी हानिकारक नहीं है . जीवाणु उपभेद भी गैर विषैले होते हैं और इस प्रकार के सड़न प्रक्रिया के पश्चात पानी को फिर से सिंचाई के उद्देश्य के लिए सफलतापूर्वक उपयोग किया जा सकता है. अनुक्रम डेटा एन.आई.एच., (यू.एस.ए.) के नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (NCBI) डेटाबेस को प्रस्तुत किया गया है.
भा.कृ.अनु.प.-केन्द्रीय पटसन एवं समवर्गीय रेशा अनुसंधान संस्थान, बैरकपुर द्वारा विकसित “क्राइजैफ सोना” नामक माइक्रोबियल कंसोर्टिअम में इन रेटिंग जीवाणु को पहले से ही अपनाया गया था. इसकी लोकप्रियता के कारण, पिछले तीन वर्षों में, देश के विभिन्न पटसन उत्पादक राज्यों में 50,000 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने वाले 3.6 लाख किसानों को 7 करोड़ रुपये का “क्राइजैफ सोना” (1428 मीट्रिक टन) बेचा गया. किसानों को पटसन रेशे की गुणवत्ता में सुधार करने और बेहतर सड़न तकनी क के माध्यम से इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाने के लिए इस उत्पाद का उपयोग करना चाहिए. “क्राइजैफ सोना” के प्रयोगसे रेशे की गुणवत्ता में 2-3 श्रेणी का सुधार होता है, सड़न की अवधि को 6-7 दिन कम करता है और पानी की आवश्यकता को भी 75% तक कम करता है.
संस्थान के निदेशक महोदय ने वैज्ञानिकों की टीम को बधाई देते हुए, कहा कि इस तरह की सफलता सबसे पहले पटसन में है और यह विश्वास है कि इन सफलता के निष्कर्षों से वैज्ञानिकों को बेहतर माइक्रोबियल रेटिंग फॉर्म्युलेशन में और सुधार करने में मदद मिलेगी. पेक्टिन, हेमिसेलुलोज और अन्य गैर-सेल्युलोसिक सामग्री को नष्ट करने के लिए जीन को बढ़ाया जा सकता है ताकि रेटिंग सक्षमता बढ़ाई जा सके और कम से कम पानी के उपयोग के साथ रेटिंग अवधि को कम किया जा सके. इस प्रकार, यह सफलता उच्च गुणवत्ता वाले पटसन रेशे का उत्पादन करने की सुविधा प्रदान करेगी जिससे कृषक समुदायों को बाजार में उच्च आय प्रदान करवाएगी.
जीनोम अनुक्रम अनुसंधान के निष्कर्ष हाल ही में नेचर (NATURE) प्रकाशन समूह कि उच्च प्रभावशाली पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स (Scientific Reports) में प्रकाशित हुआ है. यह क्राइजैफ की बड़ी उपलब्धि है और इसका श्रेय संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों को जाता है.