गाजर घास की वैज्ञानिक नाम पारथेनियम हिस्टोफोरस है. गाजर घास को अन्य नामों से भी जाना जाता है. कांग्रेस घास, सफेद टोपी, गाणी बूटी आदि. यह एस्टीरेसी कुल का पौधा है. इसका मूल स्थान मेक्सिको, मध्य व उत्तरी अमेरिका माना जाता है. यह खरपतवार पूरे ही भारत वर्ष में फैल चुकी है. वैसे तो गाजरघास मुख्यतः शहरों में, खुले स्थानों में, औद्योगिक क्षेत्रों, सड़कों के किनारे, रेलवे लाइनों आदि पर उग जाती है. गाजर घास का पौधा हर प्रकार के वातावरण में उगने की अभूतपूर्व क्षमता रखता है. इसके बीजों में सुषुपप्ता अवस्था नहीं पाई जाती है. अतः नमी होने पर कभी भी अकुंरित हो जाता है. गाजरघास फसलों में नुकसान पहुंचाने के अलावा मनुष्यों और जानवरों को स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाती है. इसकी उपस्थिति के कारण ही स्थानीय वनस्पतियां नहीं उग पाती जिससे जैव विविधता पर प्रभाव पड़ता है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है.
गाजर घास का इतिहास
भारत में सर्वप्रथम यह गाज घास पूना महाराष्ट्र में 1955 में दिखाई दी थी. ऐसा माना जाता है कि हमारे देश में इसका प्रवेश 1955 में अमेरिका से आयात किए गए गेहूं के साथ ही हुआ है. परंतु अल्पकाल में ही यह गाजर घास पूरे देश में एक भीषण प्रकोप की तरह लगभग 35 मिलियन हेक्टयर भूमि पर फैल चुकी है. गाजरघास पूरे वर्ष भर उगता एवं फूलता-फलता रहता है. इस खरपतवार द्वारा खाद्यन्न फसलों में नुकसान पहुंचाने के अलावा मुनष्यों और जानवरों के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाती है. इसकी उपस्थिति के कारण स्थानीय वनस्पतियां नहीं उग पाती जिससे जैव विविधता पर प्रभाव पड़ता है.
गाजर घास की पहचान
गाजरघास एकवर्षीय पौधा है, जिसकी लंबाई लगभग 1.0 से 1.5 मीटर तक हो सकती . इसका तना रोयेंदार और अत्याधिक शाखायुक्त होता है. इसकी पत्तियां गाजर की पत्तियों की तरह ही नजर आती है इस कारण इसे गाजरघास कहते हैजिन पर सुक्ष्म रोयें लगे होते है, पौधे पर छह से 55 पत्तियां पाई जाती है. जमने के एक महीने के बाद फूल आने लगते है. फूल कीमी सफेद रंग के खिलते है. प्रत्येक पौधा लगभग 10 हजार से 25 हजार अत्यंत सूक्ष्म बीज पैदा कर सकता है. बीज के जमाव के लिए 22 से 30 डिग्री तापक्रम इसकी बढ़वार के लिए उपयुक्त है. यह इसको 20 साल तक सुरक्षित रह सकता है.
गाजर घास का नियंत्रण
भारत में इसका फैलाव सिंचित से अधिक असिंचित भूमि में देखा गया है. गाजर घास का प्रसार, फैलाव, एवं वितरण मुख्यतः इसके अति सूक्ष्म बीजों द्वारा हुआ है. शोध से ज्ञात होता है कि एक वर्गमीटर भूमि में गाजरघास लगभग 1 लाख 54 हाजर बीज को उत्पन्न कर सकता है. इसके बीज अत्यंत सूक्ष्म, हल्के पंकदार होते है. साथ ही सड़क और रेल मार्गों पर होने वाले यातायात के कारण भी यह संपूर्ण भारत में आसानी से फैल गई है. मनुष्यों, पशुओं, यंत्रों, वाहनों, हवा और नदी, नालों सिंचाई के पानी के माध्यम से भी गाजरघास के सूक्ष्म बीज एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से पहुंच जाते है.
गाजर घास से हानि
गाजरघास के संक्रमण से से वातावरण व इसकी कालोनी से घास व चारे के उत्पादन को कम करता है. इसके पालन विभिन्न फसलों में पौंधे में बीज बनने पर प्रभाव डालता है. इस गाजरघास के लगातार संपर्क में आने से मनुष्यों में डरमेटाइटिस, एक्जिमा, बुखार, दमा आदि जैसी बीमारियों हो जाती है. पशुओं के लिए यह गाजरघास अत्यधिक विषक्त होता है. इसके खाने से पशुओं में अनेक रोग पैदा हो जाते है.इस खरपतवार के द्वारा खाद्यन्न फसलों के लगभग 40 तक आंकी गई है. पौधे के रासायनिक विशलेषण से पता चलता है कि इसमें सेस्क्यूटरपिन लैकेटोन नामक विषाक्त पदार्थ पाया जाता है जो फसलों के अकुंरण एवं वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है.