भारत सरकार के गौ– विज्ञान अनुसंधान केंद्र देवलापार, नागपुर के सुनील मानसिंहका विगत कई वर्षों से गौ-आधारित जैविक खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. अपनी इस पहल से उन्होंने जैविक खेती के क्षेत्र में कई बड़ी उपलब्धियां भी हासिल की हैं. उन्होंने यह साबित किया है कि रासायनिक उर्वरक आधारित खेती की तुलना में जैविक खेती से अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है और मिट्टी की उर्वरता में सुधार करने में गौ-आधारित जैविक खेती बहुत लाभदायक है. मानसिंहका पंचगव्य (गोबर खाद, केचुआ खाद, अमृत पानी, कामधेनु कीट नियंत्रक और गोबर गैस) से होने वाले लाभ और जैविक खेती पर विस्तृत जानकारी भी अकसर देते रहते हैं. मानसिंहका फिलहाल सीएसआईआर, आईसीएआर, आईसीएमआर और अलग-अलग यूनिवर्सिटी और केंद्रों से संबंधित देश के लगभग 40 प्रमुख अनुसंधान संस्थानों के साथ गौ-विज्ञान अनुसन्धान केंद्र की अनुसंधान गतिविधियों का समन्वय कर रहे हैं, जिन्हें "खादी और ग्रामोद्योग आयोग के क्षेत्रीय पायलट केंद्र" के रूप में नामित किया गया है.
गौरतलब है कि गौ-आधारित जैविक खेती करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारें गौ-आधारित जैविक खेती करने वाले किसानों को कई तरह की योजनाओं व परियोजनाओं के जरिए प्रोत्साहित कर रही हैं. मौजूदा वक्त में गौ-आधारित खेती किसानों के लिए कारगर है या नहीं. इस मिथक को दूर करने के लिए सुनील मानसिंहका आज कृषि जागरण के फेसबुक पेज पर 4:30 पर लाइव हुए और ‘गौ-आधारित टिकाऊ खेती मिथक नहीं’ पर विस्तृत रूप से प्रकाश डालें. पेश है कुछ प्रमुख अंश…
हमने गौ मूत्र अर्क का अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट कराया है.
किसान घर पर स्वयं जैविक खाद का निर्माण कर सकते है.
गौ मूत्र शरीर के लिए बेहद लाभदायक.
भारतीय देशी गोवंश विदेशों में काफी है.
गोवंश को बचाना पड़ेगा.
गाय हमारी माता के समान है.
पश्चमी सभ्यता को रोकना पड़ेगा.
स्थानीय गोवंश को बढ़ावा देना पड़ेगा.
गौ को सिर्फ दुग्ध के लिए ही नहीं बल्कि आय का भी साधन बना सकते हैं.
गोवंश भारत की दिशा सुधार सकता है.
आगामी समय भारतीय शिक्षा का है.
लोगों को कर्मयोगी बनने की जरूरत है.
गोवंश के हर एक नस्ल की सुरक्षा करना हमारा कर्तव्य है.
एकल विद्यालय के सदस्य एक लाख गांवों में कार्यरत हैं.
गौमूत्र कई बीमारियों में कारगर साबित हो रहा है.
लोग क्षणिक नहीं भविष्यगत लाभ देखें.
गौ से संबन्धित लोगों को प्रशिक्षण देनी की जरूरत है.