कृषि और खाद्य सुरक्षा का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के पार्टियों के सम्मेलन सीओपी की मेज पर आखिरकार आ ही गया. मिस्र-इजिप्ट के शरम-अल-शेख में 6 नवंबर से शुरू हुए 27वें सीओपी में पहली बार जलवायु परिवर्तन के कृषि और खाद्य सुरक्षा पर पड़ रहे प्रभावों पर विस्तार से चर्चा हुई. सम्मेलन की अध्यक्षता संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन, सीजीआईएआर और द रॉकफेलर फाउंडेशन द्वारा की गई.
यह सम्मेलन ऐसे समय पर आयोजित किया गया है जिस समय भारत में गेहूं की फसल लू से प्रभावित हुई, पाकिस्तान और चीन में भयंकर बाढ़ और सूखा, यूरोप और अमेरिका में सूखे के हालात देखे गए हैं. यह पुख्ता सबूत हैं कि मौसम के इस भयंकर रूप से खाद्य और कृषि उत्पादन कैसे खतरे में है. 3.5 अरब किसानों और कृषि उत्पादकों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों ने 7 नवंबर को वैश्विक लीडर्स को एक पत्र लिखा है.
‘कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा शिकार’
इस पत्र में चेतावनी दी गई है कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा खतरे में है. जब तक सरकारें छोटे पैमाने पर खाद्य उत्पादन बढ़ाने के लिए वित्तीय सहायता नहीं देतीं तब तक कृषि क्षेत्र में बदलाव की कल्पना कोरे कागज के समान है. खेती-किसानी जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा शिकार है. हालांकि ये सभी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के एक तिहाई से अधिक के लिए भी जिम्मेदार है. यूएनएफसीसीसी के तहत कृषि और खाद्य सुरक्षा पर एक मात्र कार्यक्रम कृषि पर कोरोनिविया (केजेडब्ल्यूए) था. इसका आयोजन 2017 में बॉन, जर्मनी में किया गया था.
संयुक्त राष्ट्र के संगठन एफएओ ने एक बयान में कहा कि 27वें सीओपी एजेंडा में खाद्य और कृषि संगठन खेती-किसानी पर जलवायु परिवर्तन के भयंकर प्रभावों को वैश्विक नेताओं के समक्ष रखेगा.
‘भारत भ्रम में था कि चावल और गेहूं के उत्पादन की कमी देश में नहीं होगी’
कृषि नीति की शोधकर्ता और आर्कस पॉलिसी रिसर्च की निदेशक श्वेता सैनी ने कहा है कि पिछले एक साल के दौरान ही हमने दुनिया भर में फसल उत्पादन की कमी के असर को महसूस किया है. दुनिया भ्रम में थी कि खेतीबाड़ी के संसाधन ज्यों के त्यों बने रहेंगे, इस पर जलवायु परिवर्तन का कोई असर नहीं पड़ेगा. भारत में हमने सोचा था कि हमें चावल और गेहूं की कमी नहीं होगी. हालांकि इस वर्ष के उत्पादन के आंकड़े और रबी सीजन में बुवाई के कुल आंकड़ों में कमी इस बात का सबूत है कि दुनिया के सामने जलवायु परिवर्तन खाद्य संकट पैदा कर रहा है.
खाद्य योजना प्रबंधक निकोल पिटा ने कहा कि हमें खाने, खेती करने और भोजन वितरित करने के तरीकों में पूरी तरह से बदलाव करना होगा. कृषि के औद्योगिक मॉडल जो कृषि रसायनों और मोनोकल्चर फसल पर निर्भर हैं. ये जलवायु परिवर्तन के खिलाफ मुहिम को विफल कर रहे हैं. फसलों पर रसायनों के प्रयोग से मृदा की सेहत बिगड़ रही है. जलवायु परिवर्तन के लिए कौन सी कृषि जिम्मेदार है, इसकी पहचान करनी होगी.
हमें प्राकृतिक और जैविक खेती के पारंपरिक तरीकों को अपनाना होगा. जलवायु परिवर्तन की गंभीर चुनौतियों से निपटने के लिए हमें कृषि विज्ञान पर आधारित सुगम और विविध खाद्य और कृषि प्रणालियों के निर्माण करने की आवश्यकता है.
ग्रीन वाशिंग और औद्योगिक कृषि
आर्कस पॉलिसी रिसर्च की निदेशक श्वेता सैनी के अनुसार इस समय सबसे बड़ी वैश्विक चुनौती खाद्य सुरक्षा को स्थिर रखना है. चर्चाओं और चिंताओं का दौर गुजर चुका है अब समय जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एकजुट होकर काम करने का है.
पिटा ने 27वें सीओपी में वैश्विक समुदाय को औद्योगिक कृषि पद्धितियों को ग्रीनवाशिंग इस्तेमाल न करने की सलाह दी है. उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा प्रणाली में सुधार के दावे करने के लिए ‘बजवर्ड्स’ का प्रयोग किया जा रहा है. लेकिन इनमें एक राय और परिवर्तनकारी दृष्टि का अभाव है. भाषण की इस शैली का प्रयोग औद्योगिक कृषि व्यवसाय को बनाए रखने के लिए किया जा रहा है.
"ग्लोबल लीडर्स द्वारा ‘प्रकृति आधारित समाधान’ शब्द का प्रयोग दिशाहीन"
आईपीएस-फूड द्वारा 27 अक्टूबर को प्रकाशित स्मोक्स एंड मिरर नामक एक रिपोर्ट ने 2021 के संयुक्त राष्ट्र खाद्य शिखर सम्मेलन, सीओपी-26 में नेताओं के भाषणों का विश्लेषण किया.
उन्होंने पाया कि कृषि-खाद्य निगम और अंतरराष्ट्रीय परोपकारी संगठन और कुछ विकसित देशों की सरकारें ‘प्रकृति आधारित समाधान’ शब्द का उपयोग खाद्य प्रणाली स्थिरता एजेंडा को हाइजैक करने के लिए कर रही हैं, इसे कार्बन ऑफसेटिंग योजनाओं के साथ जोड़ रही हैं जो भूमि प्रतिस्पर्धा, जलवायु और बड़ी कृषि व्यवसाय को मजबूत करता है. प्रकृति के लिए परोपकारी शब्दों की आड़ में, ये औद्योगिक मोनोकल्चर खेती को बढ़ावा, प्रदूषणकारी कमजोर प्रणाली को कायम रख रहे हैं.
‘प्रचार और प्रथाओं की आड़ में फल-फूल रहा है अप्रमाणित रसायनिक उद्योग’
कृषि और व्यापार नीति-यूरोप संस्थान की निदेशक शेफाली शर्मा ने कहा कि, उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के नेतृत्व वाले जलवायु और कृषि नवाचार मिशन (एआईएम4सी) की आलोचना उसके द्वारा बड़े व्यवासायों के पक्ष में फैसले लेने और अनिश्चित तकनीकी सुधारों को बढ़ावा देकर की गई है. इस मिशन को सीओपी-26 में लांच किया गया था.
स्मार्ट खेती के लिए एआईएम4सी द्वारा अप्रमाणित तकनीक सुधार, कृषि रसायनों, उर्वरक और कीटनाशकों के अधिक उपयोग को बढ़ावा मिला है. ये सभी प्रचार और प्रथाएं जिन्हें हम जानते हैं कि ये अलग-अलग उत्पादन नहीं कर रहे हैं बल्कि भूमि और पानी को प्रदूषित कर रहे हैं.
इस बोलते हैं ग्रीनवाशिंग और बजवर्ड्स
जब किसी उत्पाद, सेवा, प्रौद्योगिकी या कंपनी के अभ्यास के पर्यावरणीय लाभों के बारे में एक निराधार और भ्रामक दावा किया जाता है तो इसे ग्रीनवाशिंग या हरित धुलाई कहा जाता है. बजवर्ड्स शब्दजाल का एक स्वरूप होता है जो कि विशेष व्यक्ति द्वारा किसी विशेष संदर्भ में फैशनेबल होता है.