विगत कई माह से राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर कृषि कानूनों के खिलाफ किसान जिस तरह से आंदोलनरत हैं, उससे तो आप भली भांति परिचित होंगे ही. इस कानून को लेकर किसान व केंद्र सरकार के बीच गतिरोध का सिलसिला जारी है. इस गतिरोध का समाधान निकालने के लिए अब तक 11 दौर की वार्ता मुकम्मल हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकल सका है, जिसे ध्यान में रखते हुए इस पूरे मामले को संज्ञान में लेकर तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया था. इस समिति को कोर्ट की तरफ से यह प्रभार सौंपा गया था कि वे कृषि कानून को लेकर जारी इस गतिरोध के समाधान को ध्यान में रखते हुए किसानों से वार्ता करें और समाधान की दिशा में कोई कदम उठाएं.
वहीं, अब समिति ने आज सुप्रीम कोर्ट में कृषि कानूनों को लेकर जारी गतिरोध को ध्यान में रखते हुए कोर्ट में अपनी रिपोर्ट दाखिल की है. यह रिपोर्ट 85 किसान संगठन से वार्ता के बाद तैयार की गई है. माना जा रहा है कि इस रिपोर्ट के जमा होने के बाद केंद्र सरकार की तरफ से किसानों व सरकार के बीच कृषि कानून को लेकर जारी गतिरोध में विराम लगेगा. खैर, अब समिति के इस कदम के बाद अब कोर्ट की तरफ से क्या कुछ फैसला लिया जाता है. यह देखने वाली बात होगी.
समिति को लेकर हुआ था विवाद
यहां हम आपको बताते चलें कि आज जिस समिति ने सुप्रीम कोर्ट में किसानों व केंद्र सरकार के बीच गतिरोध की वजह बने कृषि कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौपी है. कभी इसी समिति को लेकर किसानों के बीच बहस छिड़ थी. सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित किए गए समिति का विरोध किया था गया.
विरोध कर रहे किसानों का कहना था कि इस समिति में हुकूमत परस्त लोगों को शामिल किया गया है, जिनका कृषि कानूनों को लेकर झुकाव है. ऐसी स्थिति में न्यायोचित फैसले की संभावना जताना तो हिमाकत ही होगी, लेकिन अब हम देख चुके हैं कि समिति अपनी पूरी पड़ताल के बाद कोर्ट में अपनी रिपोर्ट दाखिल कर चुका है, तो अब आगे चलकर कोर्ट क्या फैसला देती है और किसानों की क्या प्रतिक्रिया रहती है.
यह तो फिलहाल आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन उससे पहले हम हम आपको बताते चले कि आखिर वे कौन से चेहरे थे, जिन्हें समिति में जगह मिली थी.अनिल धनवट, अशोक गुलाटी और प्रमोद जोशी जैसे लोगों को समिति में शामिल किया गया था, जिनका किसान संगठनों ने विरोध किया था. वहीं, केंद्र व किसान संगठन के बीच अंतिम वार्ता विगत 22 जनवरी पूरी हुई थी.
गौरतलब है कि विगत चार से माह कृषि कानों को लेकर विरोध का सिलसिला जारी है. एक ओर जहां किसान सरकार से इस कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ सरकार ने साफ कह दिया है कि इन कानून को वापस नहीं लिया जाएगा.