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Updated on: 9 October, 2019 6:22 PM IST

पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने सूबे में सबसे ज्यादा पराली जलाने वाले 2200 गांवों की तलाश की है जहां हर साल औसतन 100 हेक्टेयर में पराली जलाई जाती है.इन सभी 2200 गांवों में भी सबसे ज्यादा अमृतसर, मोगा और संगरूर में पराली जलाई जाती है. यहां पर पीपीसीबी ने अब इन सभी गांवों के किसानों को पराली जलाने से होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक करने के लिए अलग-अलग यूनिवर्सिटीज के लिए करीब 1.20 लाख स्टूयडेंट के करीब 6 हजार ग्रुप को तैयार किया है. सभी स्टूडेंट इन गांवों में जाकर पराली जलाने से होने वाले नुकसान और बचे हुए अवशेषों को किस तरह से प्रयोग करें इन सभी के बारे में किसानों को जागरूक करने का कार्य करेंगे. इस जागरूकता मुहिम के सार्थक परिणाम सामने आएंगे. क्योंकि वर्ष 2017 में 18 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में पराली जलाई गई थी. वही जागरूक किए गए किसान

इस बार 210 हजार टन निकलेगी पराली                                               

यहां पर सेंक्रेटरी कहते है कि सूबे में 30 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है. इससे कुल 210 लाख टन पराली पैदा होगी. यहां पर 1 टन पराली को जलाने से 3 किलो कार्बन कण, 60 किलो कार्बन मोनोऑक्साइड, 1500 किलो कार्बनडाईऑक्साइड और दो किलो सल्फर ऑक्साइड को फैलाते है. इससे त्वचा, सांस व कैंसर की बीमारियां बढ़ जाती है.

कृषि यंत्रों पर सरकार देती सब्सिडी

यहां पर किसानों से अपील की गई है कि वे धान के अवशेषों को जलाने के बजाय पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग करें. फसल अवशेष प्रबंधन को हटाएं. यहां कृषि विभाग द्वारा फसल अवशेष के निपटान व भूमि उर्वरा शाक्ति को बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रकार के कृषि यंत्रों जैसे कि स्ट्रा रिपर, सट्रा बेलर, रिपर बांइडर और जीरो ड्रिल, हैप्पी सीडर, मल्चर, रिवासिर्बल प्लो, स्ट्रा चैपर और स्ट्रा श्रेशडर का प्रयोग करने के लिए किसानों को जागरूक किया जा रहा है. इन कृषि यंत्रों पर सरकार के जरे भारी सब्सिडी दी जाती है, कृषि यंत्रों के इन प्रयोग से किसान फसल अवशेषों का सही से प्रबंधन करके फसलों  के अवशेष का प्रयोग कर सकते है.

English Summary: Children will be taught the qualities to save from stubble, farmers of this state will be aware
Published on: 09 October 2019, 06:28 PM IST

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