वनों के सहारे अपनी जीविका को चलाने का काम कर रहे छत्तीसगढ़ के आदिवासियों ने अपने आर्थिक हालात को सुधारने के लिए काली मिर्च की खेती करने का कार्य शुरू किया है. आदिवासी काली मिर्च की खेती के साथ-साथ उनको संरक्षित करने का भी प्रयास करेंगी. यहां छत्तीसगढ़ के जिला मुख्यालय कोंडागांव में समाज सेवी हरिसिंह सिदार ने वहां के ग्रामीण आदिवासी परिवारों को काली मिर्च की खेती के लिए प्रेरणा दी है. जिले में पचास हजार से ज्यादा पेड़ों को काली मिर्च लगाने के लिए चिन्हित किया गया है. खास बात यह है कि यहां पर रहने वाले प्रत्येक परिवार के हिस्से में कुल 700 पेड़ आए है. उन्होंने इन सभी के इर्द गिर्द काली मिर्च की पौध को लगाने का काम किया है जिनकी लाताएं काफी पेड़ों से लिपटी होती है, सभी परिवार खुद ही इनकी देखरेख और सुरक्षा के काम को करने में ले हुए है और साथ ही ऐसा करके वह काफी मुनाफा भी कमा रहे है.
अन्य ग्रामीण भी लगा रहे है पौधे
शुरूआत में केवल महिलाएं ही इन पेड़ों की रखवाली का काम किया करती थी लेकिन बाद में पुरूष भी साथ होते है. उन्होंने कहा कि लंजोड़ा के बाद बालोंड, कांटागांव, भीरागांव, गारे, जुंगानी आदि 50 गांवों के लोग भी काली मिर्च की खेती को लगाने की तैयारी कर रहे है. इसके लिए उद्यानिकी विभाग ने दो लाख पौधे तैयार करने फैसला लिया है. यहां के स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि पहले यहां पर पेड़ों की अवैध कटाई की जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं हो पाता है. आज सभी ग्रामीण इसकी सुरक्षा करने का कार्य कर रहे है जिससे जंगल समृद्ध हो रहे है..
अच्छी खासी आमदनी देगा फल
यहां कृषि वैज्ञानिक डॉ कृष्णपाल सिंह कहते है कि काली मिर्च में करीब चार साल में करीब चार साल में फल आना शुरू हो गया था. यहां पर 30 से 35 साल तक लगातार फल मिलता रहता है, शुरूआत में यह तीन से चार किलो तक फल देता है, जो बढ़कर 12 से 15 किलो तक पहुंच जाता है, उन्होंने कहा कि 500 रूपए प्रतिकिलो की दर से भी काली मिर्च बेची जाएगी, तो इससे प्रति परिवार बढ़िया आमदनी होगी.
मिलेगा सामुदायिक वन अधिकार
ग्रामीणों के उत्साह को देखकर उनको सामूहिक वन अधिकार भी प्रदान किया जाएगा. उदायनिकी विभाग को काली मिर्च के पौधे तैयार करने को कहा गया है. साथ ही उद्यानिकी विभाग को काली मिर्च के पौधे को तैयार करने को कहा गया है. इसमें फल आते ही ग्रामीणों को जंगल में अदरक, अरबी, केऊकंद आदि लगाने के बीज प्रदान किया गया है जिससे बेहतर आमदनी होती रहे. साथ ही वनों में मौजूद पत्तों से कंपोस्ट खाद भी तैयार हो रही है.