बिहार के हाल में हुए आर्थिक सर्वेक्षण (2022-23) के मुताबिक़ राज्य में दो सालों में भू जल स्तर में भारी गिरावट देखने को मिली है. भू जल स्तर के नीचे जाने के साथ-साथ राज्य में पानी की गुणवत्ता भी ख़राब हुई है. ऐसे हालात में आने वाले वक़्त में सूबे में पीने के पानी की किल्लत, कृषि कार्य और दूसरे काम प्रभावित हो सकते हैं.
गिरते भू जल स्तर से किसानों को भू परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. प्री-मॉनसून भूजल स्तर के आंकलन में सारण, औरंगाबाद, गोपालगंज, सीवान, सीतामढ़ी, पश्चिमी चंपारण, खगड़िया, शिवहर, सुपौल, सहरसा, पूर्णिया, मधेपुरा, किशनगंज, कटिहार, अररिया में भूजल स्तर में गिरावट दर्ज हुई है.
2020 में औरंगाबाद में प्री-मॉनसून भूजल स्तर 10.59 मीटर था जो 2021 में घटकर 10.97 मी. रह गया है. गोपालगंज में 2020 में 4.10 मीटर से घटकर 2021 में 5.35 मीटर, सुपौल में 2020 में 3.39 मीटर से घटकर 2021 में 4.93 मीटर, सीवान में 2020 में 4.66 मीटर से घटकर 2021 में 5.4 मीटर रह गया है. इसी तरह दूसरे ज़िलों के भू जल स्तर में भी गिरावट देखी गई है. प्रदेश के लिए यह चिंता का सबब बना हुआ है. प्रदेश के 29 ज़िलों के 30207 वॉर्डों में भूमिगत जल की गुणवत्ता में गिरावट देखी गई है.
गिरते भूजल स्तर को लेकर बिहार सरकार का कहना है कि इस पूरे मामले की जांच चल रही है और समस्याओं को दूर करने की कोशिशें जारी हैं.
ग़ौरतलब है कि देश के कई प्रदेशों में भूजल स्तर का गिरना चिंता का कारण बना हुआ. हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में हालात बदतर हैं. अब बिहार में भी यही समस्या है. अगर समय रहते ज़रूरी एहतियात नहीं बरते गए तो संभव है कि भविष्य में लोगों को पीने के पानी की कमी होने लगे. भूजल स्तर के गिरने से कृषि कार्य भी प्रभावित होंगे और बाक़ी घरेलू काम भी.
ये भी पढ़ेंः भूजल को लेकर IIT की शोध में बड़ा खुलासा, इस फसल के दुष्प्रभाव से बिगड़ी स्थिति