चावल निर्यातकों के लिए राहत भरी खबर है. दरअसल भारत सरकार ने टूटे चावल के निर्यात पर 8 सितंबर तक पाबंदी लगा दी थी. जिसके बाद एक आदेश जारी कर कहा गया कि “प्रतिबंध आदेश लागू होने से पहले जहाज पर टूटे चावल की लोडिंग शुरू हो गई है, जहां शिपिंग बिल दायर किया गया है और जहाजों को पहले ही बर्थ आ गया है और भारत में लंगर डाला गया है”. जिसके बाद टूटे चावलों के निर्यात पर 15 सितंबर तक अनुमति दे दी थी, लेकिन अब सरकार ने टूटे चावल के निर्यात की अवधि बढ़ाकर 30 सितंबर कर दी है.
चावल के निर्यात पर प्रतिबंध कब लगा
आपको बता दें कि 9 सितंबर को, भारत ने तत्काल प्रभाव से टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था. दरअसल, बाजार में चावल की थोक कीमतों को काबू में रखने व घरेलू आपूर्ति को बढ़ाने के लिए टूटे चावल के निर्यात पर बैन लगाया. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अनुमान है कि पिछले साल की तुलना में इस साल खरीफ सीजन में धान की पैदावार 60 लाख टन से 70 लाख टन कम हो सकती है. इसका एक प्रमुख कारण समय से बारिश ना होना है. फिर इसका असर फसल की संभावनाओं के साथ-साथ आने वाले समय में कीमतों पर भी पड़ सकता है.
खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने कहा कि “टूटे चावल की कीमत जो लगभग 15-16 रुपये (प्रति किलो) थी, बढ़कर 22 रुपये हो गई और इसका कुल निर्यात 3 गुना बढ़ गया. नतीजतन, टूटे हुए चावल न तो पोल्ट्री फीड के लिए उपलब्ध थे और न ही इथेनॉल के निर्माण के लिए” बता दें कि टूटे चावल का व्यापक रूप से पोल्ट्री क्षेत्र में चारे के रूप में उपयोग किया जाता है.
चावल बंदगाहों पर अटका
भारत सरकार के चावल के निर्यात पर बैन के बाद लगभग 10 टन चावल कई कार्गो में पिछले एक पखवाड़े से भारतीय बंदरगाहों पर फंसे हुए हैं. जिसके बाद सरकार ने इसके मद्देनजर चावल के निर्यात पर 30 सितंबर कर पाबंदी हटा दी.
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इस सीजन धान का रकबा कम
इस खरीफ सीजन में धान की खेती का रकबा पिछले सीजन की तुलना में लगभग 5-6 फीसदी कम है. आपको बता दें कि खरीफ की फसलें ज्यादातर मानसून-जून और जुलाई के दौरान बोई जाती है, जिसमें धान भी शामिल है. फिर फसल अक्टूबर और नवंबर तक पक जाती है जो कटने को तैयार होती है. बुवाई क्षेत्र में गिरावट का प्राथमिक कारण जून के महीने में मानसून की धीमी प्रगति है.