नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद करेंगे कृषि जागरण के 'मिलियनेयर फार्मर ऑफ इंडिया अवार्ड्स' के दूसरे संस्करण की जूरी की अध्यक्षता Millets Varieties: बाजरे की इन टॉप 3 किस्मों से मिलती है अच्छी पैदावार, जानें नाम और अन्य विशेषताएं Guar Varieties: किसानों की पहली पसंद बनीं ग्वार की ये 3 किस्में, उपज जानकर आप हो जाएंगे हैरान! आम को लग गई है लू, तो अपनाएं ये उपाय, मिलेंगे बढ़िया ताजा आम एक घंटे में 5 एकड़ खेत की सिंचाई करेगी यह मशीन, समय और लागत दोनों की होगी बचत Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Goat Farming: बकरी की टॉप 5 उन्नत नस्लें, जिनके पालन से होगा बंपर मुनाफा! Mushroom Farming: मशरूम की खेती में इन बातों का रखें ध्यान, 20 गुना तक बढ़ जाएगा प्रॉफिट! Organic Fertilizer: खुद से ही तैयार करें गोबर से बनी जैविक खाद, कम समय में मिलेगा ज्यादा उत्पादन
Updated on: 3 December, 2018 8:08 PM IST
Indian Farms

ऑस्ट्रेलिया की 'वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी' (डब्लूएसयू) भारत में 50 लाख डॉलर का निवेश करने की योजना बना रही है. यह निवेश सिडनी यूनिवर्सिटी और भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों के बीच हुए समझौते का हिस्सा है. निवेश की रकम का इस्तेमाल 2022 तक भारत में किसानों की आय दुगुनी करने के लिए शोध और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए किया जायेगा.

डब्लूएसयू के वाइस चांसलर 'बर्नी ग्लोवर' ने कहा कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले पांच वर्षों के दौरान किसानों की आय दुगुनी करने का लक्ष्य तय किया है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए नए शोध और विकास के तरीके विकसित करने की जरुरत होगी. साथ ही जमीनी स्तर की समस्याओं को सुलझाने की आवश्यकता है.

ऑस्ट्रेलिया की डब्लूएसयू ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद(आईसीएआर) और 13 राजकीय विश्विद्यालयों के साथ एक करार किया है. इसके तहत जलवायु परिवर्तन के चलते होने वाले वैश्विक खाद्य संकट से निपटने के लिए नए और कारगर तरीके विकसित करने का साझा प्रयास किया जाएगा. इसी श्रृंखला में सिडनी यूनिवर्सिटी ने भारत में 5 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का निवेश करने का फैसला किया है. निवेश की राशि को उन तरीकों को विकसित करने पर खर्च किया जाएगा जो लंबी अवधि में किसानों की आमदनी बढ़ाने में मददगार हों.

शोध में फसल सुरक्षा और कृषि से संबंधित अन्य क्षेत्रों जैसे बागवानी आदि पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा. साथ ही इस दिशा में पढ़ाई और सीखने की प्रक्रिया को बढ़ावा देने की दिशा में प्रयास किए जाएंगे.

डब्लूएसयू के कुलपति ग्लोवर ने पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि फसल सुरक्षा के मोर्चे पर भारत और ऑस्ट्रेलिया कई समान चुनौतियों का सामना करते हैं. इसलिए इस दिशा में दोनों देशों के लिए शोध के विषय भी एकसमान ही रहेंगे. साथ ही उन्होंने कहा कि भारत और ऑस्ट्रेलिया में मौसम की प्रक्रिया लगभग एक जैसी है. दोनों ही देशों की वर्षा मानसून पर निर्भर है. इसलिए दोनों देशों के कृषि क्षेत्र की प्रमुख समस्याएं एक जैसी रहती हैं. हालाँकि ग्लोवर ने कहा कि भारत की कुछ अन्य चुनौतियाँ भी हैं जो ऑस्ट्रेलिया से अलग हैं. मसलन - भारत के 90 फीसदी से अधिक किसानों के पास 5 हेक्टेयर से भी कम जमीन है.

किसानों की आय दुगुनी करने के लिए की गई सिफारिशों पर अमल करने के लिए पुणे में काम किया जा रहा है. इसमें उन छोटे किसानों पर फोकस किया जा रहा है जिनके पास एक हेक्टेयर से कम जमीन है और जिनका जीना मुहाल है.

डब्लूएसयू और आईसीएआर किसानों की आय बढ़ाने के लिए मधुमक्खी पालन पर काम कर रहे हैं. खास बात यह है कि इस क्षेत्र में महिलाओं पर भी खासा ध्यान दिया जा रहा है. मधुमक्खियों की कई नस्ल, फसल सुरक्षा में मददगार हैं. डब्लूएसओ, राजकीय विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर कुशल बाजार नीतियां बनाने और साझा प्रयास के तहत कृषि विशेषज्ञों को कृषि और बागवानी के क्षेत्र में शोध के लिए प्रोत्साहित करेगा. आईसीएआर के निदेशक त्रिलोचन सिंह ने पीटीआई को बताया कि डब्लूएसओ के साझा कार्यक्रम के तहत कृषि विशेषज्ञों, छात्रों और वैज्ञानिकों को एक बेहतर और अनुकूल मंच मिलेगा.

इस समझौते में देश के प्रमुख राजकीय विश्वविद्यालय शामिल हैं. हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, कश्मीर, राजस्थान, प.बंगाल, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल की कृषि यूनिवर्सिटी इस करार का हिस्सा हैं.

English Summary: Australian University will work to increase the income of Indian farmers
Published on: 03 December 2018, 08:13 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now