कम लागत और कम मेहनत में अच्छा पैसा कमाना चाहते हैं तो आपके लिए बटेर पालन एक अच्छा व्यवसाय साबित हो सकता है. इसके लिए अधिक जगह की भी जरूरत नहीं पड़ती है. ध्यान रहे कि मुर्गी पालन, और बतख पालन के बाद व्यावसायिक तौर पर तीसरे स्थान पर बटेर पालन का काम आता है.
ऐसे आया भारत में बटेर (This is how quail came to India)
भारत में जापानी बटेर को 70 के दशक में अमेरिका से लाया गया था. इसके लिए मुख्य तौर पर पिंजड़े और बिछावन की जरूरत पड़ती है. इसके रहने की जगह हवादार और रोशनीदार होनी चाहिए और उसमें पानी की व्यवस्था भी होनी चाहिए.
ध्यान रहे कि बटेर अधिक गर्म वाले जगह पर भी रह सकता है. एक व्यस्क बटेर के विकास के लिए उसे 200 वर्ग सेमी जगह में रखना चाहिए. सूर्य की सीधी रोशनी इनके लिए खतरनाक है, इसलिए इन्हें सूर्य की सीधी रोशनी से बचाएं. हालांकि इसके चूज़ों को पहले दो सप्ताह तक प्रकाश की जरूरत होती है.
बटेर का भोजन (Quail meal)
बटेर को भोजन उचित मात्रा में मिलना चाहिए. उचित आहार से ही इनका विकास हो पाएगा और इनसे अच्छा मांस प्राप्त होगा. बटेर के चूजों को करीब 6 से 8 प्रतिशत शीरे का घोल 3 से 4 दिनों के अंतर पर देना चाहिए.
बटेर की लिंग पहचान (Quail gender identity)
बटेर पालकों को इसके लिंग का ज्ञान होना जरूरी है. इसलिए अगर आप बटेर पालने का मन बना रहे हैं तो हम इसके लिंग की पहचान के लिए आपको कुछ आसान बातें बता रहे हैं.
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नर के गर्दन के नीचे के पंखों का रंग लाल, भूरा या धूसर हो सकता है. जबकि मादा की गर्दन के नीचे के पंखों का रंग हल्का लाल या काला धब्बेदार हो सकता है. भार की तुलना करके भी लिंग की पहचान की जा सकती है. मादा बटेरों के शरीर का भार नर बटेर से 15 से 20 प्रतिशत अधिक होता है.