जहां देश के लोग अभी कोरोना महामारी से उभरे भी नहीं है. वहीं बिहार सरकार ने 300 पंचायत कृषि कार्यालय बंद करने का निर्णय लिया है. उनके इस निर्णय पर बिहार के कृषि मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह ने भी अपनी मंजुरी दे दी है.
हालांकि अभी तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस प्रस्ताव पर अपनी कोई टिप्पणी जाहिर नहीं की है. 300 कृषि कार्यालय को बंद करने के लिए बस सीएम नीतीश कुमार के निर्णय की प्रतिक्षा की जा रही है.
बिहार सरकार का कहना है कि राज्य में शहरीकरण को बढ़ाने और नगर निकाय क्षेत्र विस्तार करने बाद यह निर्णय लिया गया है.
हालांकि अभी राज्य में कृषि समन्वयकों और किसान सलाहकारों की सेवा सरकार जारी रहेगी. इस विषय में कृषि विभाग ने कहा है कि जिन 300 कृषि कार्यालय को बंद करना का निर्णय लिया गया है, उन सभी क्षेत्रों पर अभी खेती हो रही है. ऐसे में सभी सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए सरकार की कृषि समन्वयकों और किसान सलाहकारों की सेवाएं जारी रहेगी. जिससे लोगों को किसी भी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा.
कार्यालय के लिए होने वाले खर्च में बचत (Savings on office expenses)
आपको बता दे कि पंचायत कृषि कार्यालय बंद करने के निर्णय से सरकार के खर्च में काफी बचत होगी. क्योंकि सरकार के द्वारा पंचायत कृषि कार्यालय के संचालन के लिए हर महीने 2 हजार रुपए दिए जाते है. जिसमें 1 हजार रुपए किराया और 1 हजार रुपए आकस्मिकता (कंटीजेंसी) के लिए होते है. देखा जाए तो अधिकतम कृषि कार्यालय सरकारी भवन में ही होते हैं. लेकिन जिन स्थानों पर कोई सरकारी कार्यालय नहीं है वहां पर सरकार पंचायत कृषि कार्यालय के लिए 1 हजार रुपए देती है.
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पंचायत कृषि कार्यालयों में पैनी मानीटरिंग (Penny Monitoring in Panchayat Agriculture Offices)
खाद की कालाबाजारी और भ्रष्टाचार की शिकायतें लगातार कृषि पंचायतों को मिल रही है. भ्रष्टाचारी के चलते भोजपुर के जिले में दो कृषि समन्वयकों को भी निलंबित किया जा चुका है. कृषि विभाग के द्वारा पंचायत कृषि कार्यालयों में पैनी मॉनिटरिंग रखी जा रही है.
जिसके चलते दो जिला कृषि अधिकारियों को हटाया गया है. इसके अलावा कृषि विभाग कई भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई कर रही हैं. जिससे की कृषि क्षेत्र में चल रही धांधली को रोका जाए.