शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक अल्ट्रासोनिक सेंसर-आधारित स्वचालित स्प्रेइंग सिस्टम विकसित किया है. इससे बागानों में पेस्टीसाइड का इस्तेमाल कम करने में मदद मिलेगी. यह स्प्रेयर अल्ट्रासोनिक ध्वनि सिग्नल भेजकर काम करता है. इसे ट्रैक्टर पर रखकर इस्तेमाल किया जाता है. इसके इस्तेमाल के लिए ट्रैक्टर को एक बगीचे में चारों ओर घुमाया जाता है जिससे स्प्रेयर सक्रिय हो जाता है. सबसे खास बात यह है कि यह सिर्फ पेड़ पर ही स्प्रे करता है और खाली जगहों पर खुद ही बंद हो जाता है. इससे खाली जमीन रसायनों के बेमतलब प्रयोग से बच जाती है और साथ ही कीटनाशक बर्बाद भी नहीं होते. महाराष्ट्र में राहुरी में अनार के बगीचे के शोध फार्म में स्प्रेयर का परीक्षण किया गया है.
जर्नल करंट साइंस में प्रकाशित इस शोध में शोधकर्ताओं ने बताया है कि यह स्प्रेयर कीटनाशकों के उपयोग में 26 प्रतिशत की बचत करने में सक्षम था. साथ ही फल के संक्रमण को रोकने में 95.64 फीसदी तक कारगर सिद्ध हुआ. स्प्रेयर में अल्ट्रासोनिक सेंसर, एक माइक्रोकंट्रोलर बोर्ड, सोलोनॉइड वाल्व, एक तरफा वाल्व, एक निश्चित विस्थापन पंप, एक दबाव गेज और एक राहत वाल्व होता है. इसमें 200 लीटर क्षमता का स्टोरेज टैंक है और इसे 12 वी बैटरी द्वारा संचालित किया जाता है.
बगीचों में किसान आमतौर पर मैनुअल स्प्रेइंग या निरंतर छिड़काव की पद्धति प्रयुक्त करते हैं. हालांकि, इन दोनों में ही गंभीर त्रुटियां हैं. मैनुअल स्प्रेइंग में, एक व्यक्ति को स्प्रेयर लेना पड़ता है और इससे स्वास्थ्य के खतरे होते हैं. निरंतर संचालन तकनीकों में, कीटनाशक लगातार छिड़काव किया जाता है. इसके परिणामस्वरूप जरुरत से अधिक रसायनों को छिड़का जाता है. दूसरी ओर सेंसर-आधारित स्प्रेयर, केवल पौधों पर कीटनाशक छिड़कने में सक्षम है.
शोधकर्मियों ने कहा कि यह तकनीक परंपरागत छिड़काव की परिपाटी में बदलाव करेगी. नतीजतन किसानों के स्वास्थ्य और संसाधनों की बर्बादी को रोकने में मदद मिलेगी. गौरतलब है कि बागानों में पौधों पर कीटनाशकों का प्रयोग आमतौर पर मुश्किल होता है क्योंकि पौधों की जटिल संरचना और उनके अंतर में विविधता एक बड़ी चुनौती होती है.छिड़काव के दौरान, कीटनाशक का एक बड़ा हिस्सा पत्तियों और फलों के अलावा हवा या मिट्टी के माध्यम से पर्यावरण में प्रवेश करता है, जिससे पर्यावरण दूषित होता है. ऐसे में यह स्प्रेयर किसानों के लिए क्रांतिकारी साबित हो सकता है.
रोहिताश चौधरी, कृषि जागरण