विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में कृषि यंत्रों की खरीद-परोख्त के लिए एक बड़ा बाजार तंत्र विकसित हो सकता है. देश में सटीक खेतीबाड़ी, किसानों के लिए श्रम और धन की बचत की बढ़ती आवश्यकताओं के लिए ट्रैक्टर के अलावा अन्य कृषि यंत्रों की जरूरत है. कृषि उपकरण, जैसे की लेजर लेवलर, रोटावेटर, रीपर, धान ट्रांसप्लांटर और हार्वेस्टर, कपास हार्वेस्टर किसानों के बीच लोकप्रियता बटोर रहे हैं.
भारत को एक ट्रैक्टरीकृत बाजार बनाया गया है न कि यंत्रीकृत. विश्व स्तर पर ट्रैक्टर उद्योग, कुल उद्योग (ट्रैक्टर+ कृषि मशीनरी) का केवल 38 प्रतिशत है. जबकि भारत में यह कुल उद्योग का लगभग 80 प्रतिशत है.
एम और एम लिमिटेड (स्वराज डिवीजन) के सीईओ हरीश चव्हाण का कहना है कि भारतीय ट्रैक्टर बाजार लगभग 39000 करोड़ रुपये का है, जो कि वैश्विक उद्योग का 10 प्रतिशत है. इसके विपरीत, भारत में कृषि मशीनरी का बाजार लगभग 7000 करोड़ रुपये है, यह वैश्विक कृषि यंत्र उद्योग का केवल 1 प्रतिशत है.
खेती किसानी में मशीनीकरण परिश्रम और समय बचाता है, साथ ही कृषि दक्षता को भी बढ़ाता है. धान की रोपाई, कपास की कटाई, गन्ने की कटाई, फसल अवशेष प्रबंधन की शुरुआत और जरूरी उपकरणों के इस्तेमाल से जल संरक्षण जैसे कृषि कार्यों में यंत्रों का प्रयोग किया जा सकता है. हालांकि पिछले तीन दशकों में खेती-किसानी के लिए कृषि यंत्रों के उपयोग में तेजी आई है.
हालांकि मौजूदा समय में किसानों के पास भूमि के घटते आकार और बिखरे हुए खेतों के कारण कृषि यंत्र बाजार को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. जो बड़े पैमाने पर कृषि मशीनीकरण और किसानों के लिए इन्हें खरीदने के सामर्थ्य के दायरे को सीमित करता है.
इस समस्या पर कृषि मशीनरी और उपकरण निर्माताओं का विचार है कि कृषि यंत्र उद्योग को उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं को तैयार करना चाहिए. ‘बेस्ट इन क्लास’ उत्पादों को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में वितरित करने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है. इससे देश में कृषि यंत्रों को अपनाने में किसानों को नया नजरिया मिलेगा है.