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Updated on: 21 November, 2019 12:00 AM IST

विश्वभर में केले को एक लोकप्रिय फल के रूप में जाना जाता है. दुनिया के लगभग हर देश में इसे चाव से खाया जाता है. हालांकि इसकी खेती और इसके खाने के मौसम अलग-अलग हैं. इसकी खेती की बात करें तो केले की 300 से भी अधिक किस्में पहचान में आ चुकी है. हालांकि भारत में 15 से 20 क़िस्मों को ही प्रमुखता से खेती के लिए उपयोग में लाया जाता है.

केले की है दो प्रजातियां

केले को हम दो प्रजातियों में बांट सकते हैं. पहला वो किस्म जिसे फल के रूप में खाया जाता है. जबकि दूसरा वे जो शाकभाजी के रूप में खाया जाता है.

केले की उन्नत किस्में

पहले वर्ग में उगाई जाने वाली उन्नत किस्मे जैसे पूवन, चम्पा, अमृत सागर, बसराई ड्वार्फ, सफ़ेद बेलची, लाल बेलची, हरी छाल, मालभोग, मोहनभोग और रोबस्टा आदि प्रमुख है.  इसी प्रकार शाकभाजी के लिए उगाई जाने वाली उन्नतशील प्रजातियों में मंथन, हजारा, अमृतमान, चम्पा, काबुली, कैम्पियरगंज तथा रामकेला प्रमुख है.

उन्नतशील किस्में

ड्वार्फ केवेन्डिसः

स्थानिय भाषाओं में इस केले को भुसावली, बसराई, मारिसस, काबुली, सिन्दुरानी आदि नाम से भी जाना जाता है. भारत में ये बहुत लोकप्रिय है. इसका पौधा छोटा होता है, जबकि फल बड़े आकार के होते हैं. खाने में इसका गूदा मुलायम और मीठा प्रतीत होता है.

रोबस्टाः

इस किस्म को बाम्बेग्रीन और  हरीछाल के नाम से भी जाना जाता है. इसकी खेती के लिए मुख्य तौर पर पश्चिमी दीप समूह के क्षेत्र प्रसिध्द हैं. इस केले के पौघें ऊंचाई में 3 से 4 मीटर लंबें हो सकते हैं. जबकि इनका तना माध्यम मोटाई और गाढ़े हरे रंग का होता है. इनमें हरे रंग के फल विकसित होते हैं. औसतन हर गुच्छे का वजन 25 से 30 के लगभग होता है. फल पीले रंग के होते हैं.

English Summary: varieties of banana in india rate place and suitable climate and weather
Published on: 21 November 2019, 06:11 IST

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