Mango Tree Disease: आम (मैंगिफेरा इंडिका) 'फलों का राजा' कहा जाता है. इसकी की खेती पूरे विश्व के उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) और उपोष्णकटिबंधीय (सब ट्रॉपिकल) क्षेत्रों में होती है. उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात मिलकर भारत के आम उत्पादन का 80% से अधिक उत्पादन करते हैं. उत्तर प्रदेश एवं बिहार के अधिकांश आम के बाग 40 वर्ष पुराने हैं, जिसमें तरह तरह की बीमारियां देखी जा रही है, जिससे आम उत्पादक किसान बहुत परेशान है. आजकल आम की खेती करने वाले किसान आम की एक नई समस्या से परेशान है, जिसमे बाग के आम के पेड़ एक एक करके सुखते जा रहे है. ख़स्ता फफूंदी, आम की खेती के लिए यह रोग बहुत बड़े खतरे के रूप में उभर रहा है. यह रोग ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, ब्राजील, भारत, ओमान, पाकिस्तान और स्पेन से रिपोर्ट किया जा चुका है, जिसके लिए वर्टिसिलियम और लासीओडिप्लोडिया, सेराटोसिस्टिस नामक कवक आम में विल्ट रोग के लिए जिम्मेदार सबसे आम कवक जीनस हैं. जिसकी वजह से संवहनी ऊतक के धुंधलापन, कैंकर और विल्टिंग जैसे रोग के लक्षणों की एक विस्तृत श्रृंखला देखी जा सकती हैं.
भारत में आम के मुरझाने की यह बीमारी पहले बहुत कम थी लेकिन पिछले दशक के दौरान यह आम की एक प्रमुख बीमारी के तौर पर उभर रही है, जिसकी वजह से इस बीमारी के तरफ सबका ध्यान आकर्षित हो रहा है.
इस बीमारी की वजह से आम उद्योग को बहुत नुकसान हो रहा है. यह एक महत्वपूर्ण रोग है जो प्रारंभिक संक्रमण के दो महीने के अंदर ही आम के पौधों की अचानक मृत्यु का कारण बन रहा है. यह रोग पहली बार ब्राजील से 1937, 1940 के दौरान रिपोर्ट किया गया था. इसके बाद यह रोग पाकिस्तान, ओमान, चीन और भारत में देखा गया. भारत में, आम का मुरझाना सेराटोसिस्टिस प्रजाति के कारण होता है. वर्ष 2018 में पहली बार यह रोग उत्तर प्रदेश में रिपोर्ट किया गया था. वर्तमान में उत्तर प्रदेश एवं बिहार में आम की फसल के नुकसान के प्रमुख कारणों में से एक आम का मुरझाना बन गया है.
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लक्षण
यह मिट्टी जनित रोगज़नक़ पौधे की जड़ प्रणाली और हवाई भागों दोनों को संक्रमित करता है. यह कवक शुरू में आम के पेड़ों की जड़ों और निचले तने को संक्रमित करता है. रोगज़नक़ दोनों दिशाओं (एक्रोपेटल और बेसिपेटल) में व्यवस्थित रूप से बढ़ता है और अंततः पूरे पेड़ को मार देता है. सेराटोसिस्टिस संक्रमित आम के पेड़ों का तना काला हो जाता है और पौधे के पूरी तरह से मुरझाने से पहले गंभीर गमोसिस हो जाता है. विल्ट संक्रमित पेड़ों की पत्तियों में नेक्रोटिक लक्षण दिखाई देते हैं, इसके बाद पूरी पत्ती परिगलन, टहनियों का सूखना और पूरे पेड़ का मुरझा जाना इत्यादि लक्षण देखे जा सकते हैं, अंततः पेड़ों की मृत्यु हो जाती है. संक्रमित पेड़ों की पत्तियां पेड़ के पूरी तरह से सूखने के बाद भी बहुत दिनों तक टहनियों से जुड़ी रहती हैं. संक्रमित पेड़ के संवहनी ऊतक लाल-भूरे से गहरे भूरे या काले रंग के हो जाते हैं. आम की अचानक मृत्यु की गंभीरता जड़ संक्रमण की सीमा में भिन्नता पर निर्भर करती है. अत्यधिक संक्रमित जड़ों वाले पेड़ अचानक विल्ट के लक्षण दिखाते हैं, लेकिन जब केवल कुछ जड़ें संक्रमित होती हैं, तो पेड़ को सूखने में अधिक समय लगता है. संक्रमित जड़ें सड़ने लगती हैं और दुर्गंध छोड़ती हैं.
रोग चक्र और अनुकूल परिस्थितियां
आम में विल्ट के लिए जिम्मेदार रोगकरक Ceratocystis मुख्य रूप से एक जाइलम रोगज़नक़ है. रोगज़नक़ के माइसेलियम और बीजाणु शुरू में ट्रंक या शाखाओं पर घावों के माध्यम से प्रवेश करते हैं. संक्रमित पौधों का जाइलम गहरा लाल-भूरा या काला हो जाता है. रोगज़नक़ संक्रमित मिट्टी और कीट वैक्टर, आम की छाल बीटल हाइपोक्रिफ़लस मैंगिफ़ेरा द्वारा फैलता है. मिट्टी में, कवक अल्यूरियो-कोनिडिया पैदा करता है, जो प्रतिरोध संरचनाओं के रूप में काम करता है.
अचानक सूखने के रोग (विल्ट) का कैसे करे प्रबंधन?
Cerarocystis नामक फफूंद के कारण होने वाले आम के विल्ट रोग को प्रबंधित करने के लिए अब तक कोई एकीकृत रोग प्रबंधन रणनीति विकसित नहीं की गई है. हालांकि रोग नियंत्रण के लिए नियमित रूप से बाग की सफाई प्रभावी पाई गईं है. इसके अलावा इस रोग के प्रबंधन के लिए आवश्यक है की पेड़ के आस पास पानी नहीं लगने दें. रोको एम नामक फफूंदनाशक की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल कर मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भींगा दे. दस साल या दस से ऊपर के पेड़ की मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भीगने के लिए 20 से 25 लीटर दवा के घोल की आवश्यकता पड़ेगी. लगभग 15 दिन के बाद पुनः इसी घोल, पेड़ के आस पास की मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भींगा दे. इस प्रकार से इस बीमारी से आप अपने आम को सूखने से बचा सकते हैं.