केला की खेती किसानों को लिए एक लोकप्रिय और लाभकारी फसल है, जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में उगाई जाती है. इसकी खेती के लिए उपजाऊ, जल निकासी वाली दोमट मिट्टी और 20-35°C तापमान उपयुक्त है. केले की खेती से अच्छा उत्पादन पाने के लिए प्रमुख किस्मों का चयन करना होता है. जैसे कि- ग्रैंड नैन, ग्यारवेंडी और लाल केला शामिल हैं. किसान को इसकी खेती से अच्छी उपज पाने के लिए सिंचाई, जैविक खाद, और कीट नियंत्रण पर ध्यान देना जरूरी होता है.
वही, केले की फसलों की कटाई 12-15 महीनों में होती है. देखा जाए तो बाजार में इसकी अधिक मांग और मुनाफा इसे किसानों के लिए एक आकर्षक विकल्प बनाता है. ऐसे में आइए इसके खेती से जुड़ी अधिक जानकारी के यहां विस्तार से जानते हैं...
सुखी एवं रोग ग्रस्त पत्तियों की कटाई-छटाई
पौधा जैसे-जैसे वृद्धि करता है नीचे की पत्तियों सूखती जाती है. सूखी पत्तियों से फल भी क्षतिग्रस्त होते रहते हैं. सूखी एवं रोग ग्रस्त पत्तियों को तेज चाकू से समय-समय पर काटते रहना चाहिए. इस क्रिया से रोग की सान्ध्रता भी घटती है. रोग का फैलाव घटता है. हवा एवं प्रकाश नीचे तक पहुंचता रहता है, जिससे कीटों की संख्या में भी कमी होती है. अधिकतम उपज के लिए स्वस्थ 13-15 पत्तियों ही पर्याप्त होती है.
मिट्टी चढ़ाना
पौधों पर वर्षा ऋतु के बाद सदैव मिट्टी चढ़ाना चाहिए, क्योंकि पौधों के चारों तरफ की मिट्टी धुल जाती है, तथा पौधों में घौद निकलने से नीचे का सिरा भारी होकर, तेज हवा में पौधा उलट जाता है.
सहारा देना
केला की खेती/kela ki kheti को तेज हवाओं से भी भारी खतरा बना रहता है. लम्बी प्रजातियों में सहारा देना अति आवश्यक है. केले के फलों का गुच्छा (घौद) भारी होने के कारण पौधे नीचे की तरफ झुक जाते है, अगर उनको सहारा नहीं दिया जाता है तो वे उखड़ भी जाते हैं. अतः उनको दो बासों को आपस में बाँधकर कैंची की तरह बना लेते हैं या बेच के विपरीत नायलॉन की रस्सी भी बढ़ते है,जिससे बंच के वजन की वजह से केला का पौधा नहीं गिरता है. बंच (गहर) निकलते समय सहारा देना अति आवश्यक है.
गुच्छों को ढ़कना एवं नर पुष्प की कटाई
पौधों में बंच (गहर) आ जाने पर वे एक तरफ झुक जाते हैं, यदि उनका झुकाव पूर्व या दक्षिण की तरफ होता है, तो फल तेज धूप से खराब हो जाता है. अतः केले के घौद को पौधे की उपर वाली पत्तियों से ढ़क देना चाहिए. गहर का अग्र भाग जो नर पुष्प होता है, बिना फल पैदा किये बढ़ता रहता है. गहर में फल पूर्ण मात्रा में लग जाने के पश्चात् उनको काट कर अलग कर देना चाहिए, जिससे वह भोज्य पदार्थ लेकर फलों की वृद्धि को अवरूद्ध न कर सके तथा इसको बेच कर अतिरिक्त आय प्राप्त किया जा सके, क्योंकि कही-कही पर इसका प्रयोग सब्जी बनाने में किया जाता है. नर पुष्प की कटाई बरसात में करना और आवश्यक है क्योंकि यही बीमारी फैलाने का कारण बनते हैं. कावेन्डीश (बसराई, रोबस्टा) तथा सिल्क (मालभोग) ग्रुप के केलों में गहर को ढ़कना एक सामान्य क्रिया है, क्योंकि इससे केला के फल का रंग और आकर्षक हो जाता है. उष्ण एवं उपोष्ण जलवायु मे फलों को पारदर्षी छिद्रयुक्त पोलीथीन से ढ़कने से 15-20 प्रतिशत उपज में वृद्धि होती है, तथा फल 7-10 दिन पहले परिपक्व हो जाते हैं.
गहर को ढ़कने का सर्बोत्तम समय जब गहर में फल बनने की प्रक्रिया रूक गई हो तथा नर पुष्प को काटने का समय आ गया हों. उपरोक्त लाभ के अलावा ढ़कने के अन्य फायदे है जैसे, स्कैरिंग बीटल नामक कीट फल को गन्दा तथा अनाकर्षक बना देता है ढ़क कर फल को बचा सकते है, तथा सूर्य के प्रकाष के सीधे सम्पर्क में आने की वजह से फलों पर घाव बन जाते हैं जिसमें कोलेटोट्राइकम नामक फँफूद पैदा होता है तथा फल सड़न रोग उत्पन्न हो जाता है.
घौद के आभासी हत्थों को काटकर हटाना
घौद में कुछ अपूर्ण हत्थे होते हैं, जो गुणवत्ता युक्त फल उत्पादन में बाधक होते है. ऐसे अपूर्ण हथ्थों को घौद से अविलम्ब काटकर हटा देना चाहिए ऐसा करने से दुसरे हथ्थों की गुणवक्तायुक्त एवं वजन बढ़ जाती है. उपरोक्त विशेष शस्य क्रियाओं को करने मात्रा में फल के गुणवत्ता में भारी वृद्धि होती है.