मक्का खरीफ ऋतु की प्रमुख फसल है, परन्तु जहां सिंचाई के पर्याप्त साधन हों तो वहां पर इसे रबी तथा खरीफ की अगेती फसल के रुप में लिया जा सकता है. यह फसल कार्बोहाइड्रेटस का बहुत अच्छा स्त्रोत है. इसके अलावा इसमें विटामिन ए, बी1, बी2, नियासिन तथा अन्य पोषक तत्त्व होते है.
मक्का बेबी कार्न, आटा, भुने भुट्टों, अर्धपके व भुने दानों, कार्नफ्लैक्स आदि अनेक तरीकों से खाया जाता है. मक्का के विभिन्न उपयोगों को देखते हुए इसकी उपज बढ़ाना जरूरी है. परन्तु इसके सफल उत्पादन में कई प्रकार की अड़चने जैसे कीट व बीमारियां आदि आडे आ जाती है.
कीट फसल की पैदावार व गुणवत्ता को कम कर देते है. इसलिए यदि इन कीटों का समय पर नियंत्रण कर लिया जाये तो नुकसान को काफी कम किया जा सकता है.
मक्का में लगाने वाले कीटों का विवरण व प्रबंधन इस प्रकार से है (The description and management of pests applied in maize are as follows)
1) तना छेदक (Stem borer)
यह मक्की का सबसे अधिक हानिकारक कीट हैं फसल को नुकसान सुंडियों द्वारा होता है. इसकी सूण्डियां 20-25 मि.मी. लम्बी और गन्दे से स्लेटी सफेद रंग की होती है. जिसका सिर काला होता है और चार लम्बी भूरे रंग की लाइन होती है. इसकी सूंडिया तनों में सुराख करके पौधों को खा जाती है.
जिससे छोटी फसल में पौधों की गोभ सूख जाती हैं बड़े पौधों में ये बीच के पत्तों पर सुराख बना देती है. इस कीट के आक्रमण से पौधें कमजोर हो जाते है, और पैदावार बहुत कम हो जाती है. इस कीट का प्रकोप जून से सितम्बर माह में ज्यादा होता है.
रोकथाम
मक्का की फसल लेने के बाद, बचे हुए अवशेषों, खरपतवार और दूसरे पौधें को नष्ट कर देना चाहिए.
ग्रसित हुए पौधें को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए.
इस कीट की रोकथाम के लिए फसल उगने के 10वंे दिन से शुरू करके 10 दिन के अन्तराल पर 4 छिड़काव इस नीचे दिये गए ढंग से करने चाहिए.
पहला छिड़काव 200 ग्राम कार्बेरिल (सेविन) 50 घु. पा. को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से फसल उगने के 10 दिन बाद करें.
दूसरा छिड़काव 300 ग्राम कार्बेरिल 50 घु. पा. को 300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से फसल उगने के 20 दिन बाद करें.
तीसरा छिड़काव फसल उगने के 30 दिन बाद 400 ग्राम कार्बेरिल 50 घु. पा. को 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ करें.
चैथा छिड़काव उगने के 40 दिन बाद तीसरे छिड़काव की तरह ही करें.
2) चूरड़ा (Thrips)
ये भूरे रंग के कीट होते है जो पत्तों से रस चूसकर फसल को नुकसान पहुंचाते है. ये छोटे पौधों की बढ़वार को रोक देते है. ग्रसित पौधों के पत्तों पर पीले रंग के निशान पड़ जाते हैं. ये कीट फसल को अप्रैल से जुलाई तक नुकसान पहुंचाते है.
3) हरा तेला (Green Leaf Hopper)
ये हरे रंग के कीट होते है. इसके शिशु व प्रौढ़ पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते रहते है. ये भी अप्रैल से जुलाई तक फसल को नुकसान पहुंचाते है.
रोकथाम
चुरड़ा और हरा तेला की रोकथाम के लिए 250 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. को 250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.
खेत में व खेत के आसपास उगे खरपतवारों को नष्ट कर देना चाहिए.
4) सैनिक कीट (Soldier insect)
फसल को नुकसान सूण्डियों द्वारा छोटा हैं छोटी सूण्डियाँ गोभ के पत्तों को खा जाती हैं और बड़ी होकर दूसरें पत्तों को भी छलनी कर देती हैं ये कीट फसल में रात को नुकसान करते हैं प्रकोपित पौधों में प्रायः इस कीट कामल देखा जाता हैं ये कीट फसल को सितम्बर - अक्तूबर में ज्यादा नुकसान पहुचाते है.
5) टिड्डा (Grasshopper)
इसे फुदका या फडका भी बोलते है. क्योंकि ये फुदक फुदक कर चलते हैं ये कीट भूरे मटमैले से रंग के होते है. जब पौधें छोटी अवस्था में होते है तब इसका नुकसान फसल में ज्यादा होता है.
रोकथाम
सैनिक कीट और फुदका की रोकथाम के लिए 10 कि.ग्रा. मिथाईल पैराथियान 2 प्रतिशत घूड़ा प्रति एकड़ के हिसाब से धूड़ें.
6) बालों वाली सूंडिया (कातरा)
फसल को नुकसान सूण्डियों द्वारा होता हैं जब ये सूण्डियां छोटी अवस्था में होती है तो पत्तियों की निचली सतह पर इकट्ठी रहती है. तथा पत्तों को छलनी कर देती हैं. जब ये बड़ी अवस्था में होती हैं ये सारे खेत में इधर उधर घूमती रहती है. और पत्तों को खाकर नुकसान पहुंचाती है.
रोकथाम
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फसलों का निरिक्षण अच्छी तरह से करना चाहिए तथा कातरे के अण्ड़ समूहों को नष्ट कर दें.
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आक्रमण के शुरु-शुरु में छोटी सूण्ड़ियां कुछ पत्तों पर अधिक संख्या में होती है. इसलिए ऐसे पत्तों को सूण्ड़ियों के समेत तोड़कर जमीन में गहरा दबा दें या फिर मिट्टी के तेल के घोल में ड़ालकर नष्ट कर दें.
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कातरा की बड़ी सूण्ड़ियों को भी इकट्ठा कर जमीन में गहरा दबा दें या मिट्टी के तेल में ड़ालकर नष्ट कर दें.
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खेत में व खेत के आसपास खरपतवार को नष्ट कर देना चाहिए.,
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खेतों में खरीफ फसलों को काटने के बाद गहरी जुताई करें जिससे जमीन में छुपे हुए प्यूपे बाहर आ जाते है और पक्षियों द्वारा खा लिए जातें हैं.
बड़ी सूण्ड़ियों की रोकथाम के लिए 250 मि.ली. मोनोक्रोटोफ्रास (न्यूवाक्रान) 36 एस.एल. या 200 मि.ली. डाईक्लोर्वास (न्यूवान) 76 ई.सी. या फिर 500 मि.ली. क्विनलफास (एकालक्स) 25 ई.सी. को 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़कें.
रूमी रावल एवं कृष्णा रोलानियाँ, कीट विज्ञान विभाग,
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार.