Banana Farming: खेतों में लगातार बढ़ते रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरकता घटती जा रही है. किसान इस समय हरी खाद का उपयोग करके अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाया जा सकता है. इस समय गेहूं की फसल की कटाई चल रही है और ऐसे में किसान केला की फसल लगाने से पहले हरी खाद को तैयार कर सकते है. यदि आप भी केले की खेती करना चाहते हैं, तो ऐसे में आपको अभी से ही तैयारी शुरू कर देना चाहिए.
खेत में हरी खाद का उपयोग
रवि फसलों की कटाई के बाद, केले की फसल लगाने का हमें कुल 90 से 100 दिनों का समय मिल जाता है. इस समय का उपयोग आप मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए कर सकते हैं, क्योकि हमें पता है की केले की खेती में बहुत ज्यादा पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने का अच्छा तरीका है, खेत में हरी खाद का प्रयोग. हरी खाद उस सहायक फसल को कहते हैं, जिसकी खेती मिट्टी में पोषक तत्वों को बढ़ाने और उसमें जैविक पदाथों की पूर्ति करने के लिए की जाती है. इससे उत्पादकता तो बढ़ती ही है, साथ ही यह जमीन के नुकसान को भी रोकती है.
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हरी खाद से होने वाले फायदे
हरी खाद खेत को नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम, जस्ता, तांबा, मैगनीज, लोहा और मोलिब्डेनम वगैरह तत्त्व भी मुहैया कराती है. यह खेत में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ा कर उस की भौतिक दशा में सुधार करती है. हरी खाद को अच्छी उत्पादक फसलों की तरह हर प्रकार की भूमि में जीवांश की मात्रा बढ़ाने में इस्तेमाल कर सकते हैं, जिस से भूमि की सेहत ठीक बनी रह सकेगी.
खेत में लगाएं ढैंचा
इसी क्रम में आवश्यक है की मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए आपको अप्रैल मई माह मे सनई, ढैंचा, मूंग, लोबिया में से किसी की बुवाई करे. बेहतर होगा की, ढैंचा लगाये क्योकि इसकी बढ़वार इस समय बहुत अच्छी होती है. मिट्टी का पी.एच. लेवल 8.0 के ऊपर जा रहा हो, उस मिट्टी के लिए ढैंच एक उपयुक्त खाद है यह मिट्टी की क्षारीयता को भी कम करता है. जिन खेतों में मृदा सुधारक रसायन यथा जिप्सम या पायराईट का प्रयोग हो चुका है और लवण निच्छालन की क्रिया सम्पन्न हो चुकी हो वहां ढैंचा की हरी खाद लगाना चाहिये.
मिट्टी में दबाएं ढैंचा
हरी खाद के अन्दर वायुमंडलीय नत्रजन को मृदा में स्थिर करने की छमता होती है एवं मिट्टी में रसायनिक, भौतिक, एवं जैविक क्रियाशीलता में वृद्धि के साथ-साथ केला की उत्पादकता फलों की गुणवत्ता एवं अधिक उपज प्राप्त करने में भी सहायक होता है. अप्रैल- मई माह मे खाली खेत मे पर्याप्त नमी हेतु हल्की सिचाई करके 45-50 किलोग्राम ढैंचा के बीज की बुवाई करते है, एवं फसल जब लगभग 45-60 दिन (फूल आने से पूर्व) की हो जाती है तब ढैंचा को मिट्टी पलटने वाले हल से मिट्टी मे दबा देते है. इससे केला की रोपाई से पूर्व एक अच्छी हरी खाद तैयार हो जाती है. इसे मिट्टी मे दबाने के बाद 1 किग्रा यूरिया प्रति बिस्वा (1360 वर्ग फीट) की दर से छिडकाव करने से एक सप्ताह के अन्दर ढैंचा खूब अच्छी तरह से सड़ कर मिट्टी में मिल जाता है. इस प्रकार से खेत केला की रोपाई के लिए तैयार हो जाता है.
उम्दा और सस्ती जीवांश खाद
ढैंचा के अन्दर कम उपजाऊ भूमि में भी खूब अच्छी तरह से उगने की शक्ति होती. ढैंचा के पौधे भूमि को पत्तियों एवं तनों से ढक लेते है, जिससे मिट्टी का क्षरण कम होता है. इस तरह से मिट्टी में कार्बनिक एवं जैविक पदार्थों की अच्छी मात्रा खेत में एकत्र हो जाती है. राइजोबियम जीवाणु की मौजूदगी में ढैंचे की फसल से लगभग 80-150 किग्रा० नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर स्थिर होती है. हरी खाद से मिट्टी के भौतिक एवं रासायनिक गुणों में प्रभावी परिवर्तन होता है जिससे सूक्ष्म जीवों की क्रियाशीलता एवं आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि होती है. हरी खाद मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए उम्दा और सस्ती जीवांश खाद है. हरी खाद का अर्थ उन पत्तीदार फसलों से है, जिन की बढ़वार जल्दी व ज्यादा होती है. ऐसी फसलों को फल आने से पहले जोत कर मिट्टी में दबा दिया जाता है. ऐसी फसलों का इस्तेमाल में आना ही हरी खाद देना कहलाता है.