इस समय लीची की खेती करने वाले बागों का बागवान विशेष ध्यान दें. ऐसा इसलिए क्योंकि यूं तो लीची के पेड़ों में पूरे साल कीटों और रोगों का प्रकोप छाया हुआ होता है, लेकिन इस समय अगर ध्यान नहीं दिया गया, तो भारी नुकसान हो सकता है. जी हां, लीची के पेड़ों में फल आने की अवस्था आ चुकी है इसलिए यह और भी ध्यान देने वाली बात हो जाती है. लीची में कई तरह के रोग और कीट लगते हैं. इन सभी कीटों और रोगों के प्रकोप से बागवानों को उत्पादन और फल की गुणवत्ता में कमी मिल सकती है. ऐसे में इन कीटों और उनसे होने वाले रोगों की जानकारी होना बहुत जरूरी है. आज हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे हैं कि आप कैसे इनसे निजात पा सकते हैं.
फल भेदक कीट
यह एक बहुभक्षी कीट है जो फलन के समय लीची की फसल को ज़्यादा प्रभावित करता है. जब लीची के फल लौंग के दाने के बराबर हो जाते हैं तो मादा कीट लीची के डंठलों पर अंडे देती है. इसके बाद दो-तीन दिन में लार्वा (larva) तैयार हो जाते हैं और फलों में प्रवेश कर बीजों को खाने लगते हैं. इससे फल गिरने लगते हैं. वहीं जब फल तैयार होकर पकने की अवस्था में आते हैं, तो लगभग 15 दिन पहले यानी करीब मई की शुरुआत तक, लार्वा डंठल के पास से फलों में प्रवेश कर उनके बीज और छिलके खाते हैं.
रोकथाम
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बागवान मार्च में ही बौर निकलने के बाद ट्राइकोग्रामा चिलोनिस और फेरोमोनट्रैप 15 प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल कर सकते हैं.
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बौर निकलने और फूल खिलने से पहले निम्बीसीडीन 5 प्रतिशत/नीम तेल/निम्बिन 4 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल या वर्मीवाश 5 प्रतिशत का छिड़काव बागवान कर सकते हैं.
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मटर के दाने के बराबर की फल अवस्था में कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति लीटर (1 प्रतिशत) का इस्तेमाल करें.
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पत्ती भेदक कीट (सूंडी)
यह कीट चांदी के रंग की तरह चमकदार दिखता है. यह देखने में बड़े आकर का भी होता है. यह कीट पत्तियों के बाहरी किनारे को खाता है, जिससे पत्तियां दोनों किनारे से कटी हुई दिखाई देती हैं.
रोकथाम
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बागवान छोटे पौधों या टहनियों को हिलाएं क्योंकि इससे कीट झड़ जाते हैं.
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बागवान नए बागों की जुताई बारिश के बाद जरूर करें.
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अगर अधिक नुकसान हो रहा है तो कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी 0 ग्राम प्रति लीटर या नुवान 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल के साथ छिड़कें.
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नीम से बने रसायनों या नीम बीज अर्क का इस्तेमाल बागवान कर सकते हैं.
छाल खाने वाला कीट
ये कीट लीची के पेड़ों की छाल पर ही जीवित रहते हैं. ये कीट पेड़ों की शाखाओं में छेदकर दिन में छिपे रहते हैं, तो शाम होते ही बाहर निकलना शुरू कर देते हैं. इस कीट की वजह से पेड़ों की टहनियां कमजोर होने लगती हैं और बाद में टूटकर गिरने लगती हैं.
रोकथाम
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बागवान इनके द्वारा बनाये गए छेद को नष्ट कर कीट और लार्वा को खत्म कर सकते हैं.
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छेद के अंदर बागवान मिट्टी का तेल, फिनाइल, पेट्रोल या नुवान 0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल को कपास की मदद से डालकर कीटों को नष्ट कर सकते हैं.
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कीटों से बचाव के लिए लीची के बगीचे को साफ-सुथरा रखें.
लीची मकड़ी
यह मकड़ी बेलनाकार और सफेद चमकीले रंग की होती है. यह कोमल पत्तियों की निचली सतह, टहनी का रस चूसकर उन्हें नुकसान पहुंचाती है. बाद में पत्तियां सिकुड़ जाती हैं. इससे फलन पर भी प्रभाव पड़ता है.
रोकथाम
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प्रभावित टहनियों को कुछ स्वस्थ हिस्से के साथ काटकर जला दें.
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बागवानों को एक महीने पहले ही डायकोफॉल या केलथेन 0 मिलीलीटर प्रति लीटर का एक छिड़काव करना चाहिए.
टहनी भेदक कीट
कीट के लार्वा पेड़ों में आ रही नई कोपलों की मुलायम टहनियों में घुसकर उसके भीतरी भाग को खा लेते हैं. इससे टहनियां कमजोर होकर सूख जाती हैं और पौधों का विकास भी वहीं से रुक जाता है.
रोकथाम
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प्रभावित टहनियों को नष्ट कर दें.
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अधिक प्रकोप होने पर कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी दो ग्राम प्रति लीटर (1 प्रतिशत) घोल को छिड़कें.