फरवरी का मध्य समय आते-आते तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि होती है. यह समय केला एवं पपीता जैसी उष्णकटिबंधीय फसलों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. सर्दियों के दौरान 10 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर इन फसलों की वृद्धि प्रभावित होती है, जिससे उनकी उत्पादन क्षमता भी प्रभावित हो सकती है. अब जब ठंड समाप्त हो रही है, तो यह आवश्यक हो जाता है कि कुछ आवश्यक कृषि कार्य किए जाएं, ताकि पौधों की वृद्धि तेज हो, फसल की गुणवत्ता बनी रहे, और रोगों से बचाव किया जा सके.
केला में आवश्यक प्रबंधन
1. खाद एवं उर्वरक प्रबंधन:
केला के ऊतक संवर्धन (टिशू कल्चर) से विकसित पौधे इस समय 7-8 महीने के हो चुके होंगे. इस समय निम्नलिखित उर्वरकों का प्रयोग करना आवश्यक है:
- 200 ग्राम यूरिया प्रति पौधा
- 200 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति पौधा
- 100 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट प्रति पौधा
इन उर्वरकों को मिट्टी में मिलाकर हल्की जुताई कर दें, जिससे पौधे को आवश्यक पोषक तत्व मिल सकें. इसके बाद मिट्टी चढ़ा देने से नमी संरक्षित रहती है और जड़ प्रणाली मजबूत होती है.
2. रोगग्रस्त पत्तियों की छंटाई एवं प्रकाश प्रबंधन:
केले के पौधों में सूखी एवं रोगग्रस्त पत्तियां समय-समय पर तेज चाकू से काटकर हटा देनी चाहिए. इससे न केवल रोगजनकों का संकेंद्रण कम होगा, बल्कि हवा और प्रकाश का संचार भी बेहतर होगा, जिससे कीटों की संख्या कम होगी.
3. जल प्रबंधन:
गर्मियों की शुरुआत में नमी की कमी होने लगती है, इसलिए हल्की-हल्की सिंचाई आवश्यकतानुसार करें. अधिकतम उत्पादन के लिए पौधों पर 13-15 स्वस्थ पत्तियों का बने रहना जरूरी होता है.
पपीता में आवश्यक प्रबंधन
1. खाद एवं उर्वरक प्रबंधन:
जो पपीते के पौधे अक्टूबर में लगाए गए थे, उनमें सर्दी के कारण वृद्धि धीमी हो सकती है. इस स्थिति में निम्नलिखित उर्वरकों का प्रयोग करना आवश्यक है:
- 100 ग्राम यूरिया प्रति पौधा
- 50 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति पौधा
- 100 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट प्रति पौधा
इन उर्वरकों को मिट्टी में मिलाने के बाद हल्की सिंचाई करें, जिससे पौधों को आवश्यक पोषण मिल सके.
2. रोग प्रबंधन:
पपीता का सबसे आम और घातक रोग पपाया रिंग स्पॉट वायरस है. इससे बचाव के लिए:
- 2% नीम तेल का छिड़काव करें.
- इसमें 5 मिली/लीटर स्टीकर मिलाकर एक महीने के अंतराल पर छिड़काव करें.
- यह प्रक्रिया आठ महीने तक जारी रखें, ताकि पौधे को निरंतर सुरक्षा मिलती रहे.
3. सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधन:
पपीते की गुणवत्ता सुधारने और रोग प्रतिरोधकता बढ़ाने के लिए निम्नलिखित घोल का छिड़काव करें:
- यूरिया @ 10 ग्राम + जिंक सल्फेट 6 ग्राम + बोरान 6 ग्राम/लीटर पानी
- यह छिड़काव एक महीने के अंतराल पर आठ महीने तक करें.
ध्यान दें कि बोरान और जिंक सल्फेट के घोल अलग-अलग बनाएं, क्योंकि दोनों को एक साथ मिलाने पर घोल जम जाता है.
4. जड़ गलन रोग प्रबंधन:
बिहार में पपीते की सबसे घातक बीमारी जड़ गलन (Root Rot) है. इसके नियंत्रण के लिए:
- हेक्साकोनाजोल @ 2 मिली/लीटर पानी में घोल बनाकर मिट्टी को भिगो दें.
- यह प्रक्रिया प्रत्येक महीने दोहराएं और इसे आठ महीने तक जारी रखें.
- एक बड़े पौधे को भिगाने के लिए 5-6 लीटर दवा घोल की आवश्यकता होगी.
मार्च में पपीता रोपण की तैयारी
बिहार में पपीता लगाने का सर्वोत्तम समय मार्च माह है. इसलिए, फरवरी में ही पपीता की नर्सरी तैयार कर लेनी चाहिए, ताकि स्वस्थ पौधों को मार्च में उचित स्थान पर रोपा जा सके.