केंद्र सरकार के द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और केंद्र शासित प्रदेश बने लद्दाख के किसानों की स्थिति अब फूलों के सहारे सुधरेंगी. दरअसल लेह- लद्दाख में केसर सहित दमस्क, गुलाब, कैमोइल, जंगली गेंदा, रोजमेरी, लैवेंडर और डेक्रोसेफेलम फूलों की खेती होगी. इसके लिए सीएसआईआर और आईएचबीटी पालमपुर सुगंधित फसलों की खेती को करने का कार्य करेगा. इन फूलों के लिए वहां की जमीन और जलवायु बेहतर पाई जाती है. लेह और लद्दाख में सुगंधित फूलों की खेती के लिए सीएसआईआर ने लेह और लद्दाख फार्मर्स एंडप्रोडयूसर्स कोऑपरेटिव लिमिटेड लद्दाख के सात समझौता किया है, सिंचाई सुविधाओं से वंचित इस इलाके की उपयोगिता को बढ़ाने के लिए कार्य किया जा रहा है.
क्षेत्र की तस्वीर बदल जाएगी
भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में स्थित लद्दाख का क्षेत्र इस समय करीब 59.14 वर्ग किलोमीटर है. अगर प्रयोग अगर सफल रहा तो आने वाले दिनों में इन क्षेत्रों की तकदीर बदल जाएगी. साथ ही खेती को तेजी से बढ़ावा देने के लिए अगस्त के महीने में गांव में जागरूकता और प्रशिक्षण किसानों को दिया जा चुका है. यह देखकर वहां के किसानों ने सुगंधित फसलों के लिए अपनी इच्छा जाहिर की है.
सुगंधित फसलों की खेती
लेह में किसानों को जंगली गेंदा, कैमोमाइल, और केसर के बीज के साथ ही कृषि प्रौद्योगिकी की पूरी जानकारी के पैकेज भी प्रदान किए जाएंगे. यहां संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ राकेश बताते है कि लेह क्षेत्र में उच्च मूल्य की सुगंधित फसलों की खेती के लिए बहुत ज्यादा उपयुक्त है.
कई जगह होता फूलों का उपयोग
यहां पर आईएचबीटी के निदेशक संजय कुमार ने बताया कि सुगंधित फसलों को बढ़ावा देने के लिए अरोमा मिशन कार्यक्रम के तहत 5500 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र लाने में निर्णय किया है. सुगंधित पौधों के मूल्य संवर्धन के लिए प्रसंस्करण ईकाई भी अनिवार्य होती है. लेह में इस सुविधा की स्थापना से लेह जिले के स्थानीय किसानों को काफी लाभ होने की उम्मीद है. यहां पर सुगंधित फसल और फूलों से बनने वाले तेल का उपयोग कृषि, खाद्य स्वाद, दवाओं और इत्र जैसी चीजों में ही होता है.