किसानों को कम लागत में ज्यादा मुनाफ़ा हो और जमीन की उर्वरता क्षमता भी कम न हो, उसके लिए केंद्र व राज्य सरकारें बहुत सारी योजनाएं अभी तक लागू कर चुकी है. इन्हीं योजनाओं में से एक ‘परंपरागत कृषि विकास योजना’ (PKVY) है. यह योजना केंद्र सरकार के द्वारा पोषित हैं. गौरतलब है कि किसानों से रसायन और कीटनाशक का कम इस्तेमाल करने के लिए पीएम मोदी ने कई बार सलाह दी है. जैविक खेती (Organic Farming) को बढ़ावा देने पर उनकी सरकार लगातार जोर दे रही है. लेकिन ज्यादातर किसानों को इसे लेकर कोई ज्यादा जानकारी नहीं है कि आखिर जैविक खेती कैसे होगी.उसके लिए दस्तावेज़ कहां से मिलेगा और इसका बाजार क्या है? ऐसी खेती के लिए जरूरी चीजें कहां से मिलेंगी. इन सवालों का जवाब अब एक ही जगह मिलेगा. दरअसल सरकार ने किसानों की सुगमता के लिए जैविक खेती पोर्टल (https://www.jaivikkheti.in/) लॉन्च किया है, जिसकी मदद से किसान जैविक खेती से सबंधित सभी जानकारी हासिल कर सकते हैं. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के अनुसार केंद्र सरकार परंपरागत खेती को बढ़ावा देने के लिए 2015-16 से 2019-20 तक 1632 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं.
(क) परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई): पहली व्या्पक योजना है जिसे एक केन्द्रीय प्रायोजित कार्यक्रम (सीएसपी) के रूप में शुरू किया गया है. इस योजना का कार्यान्वयन प्रति 20 हैक्टेयर के कलस्टर आधार पर राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है. कलस्टर के अंतर्गत किसानों को अधिकतम 1 हैक्टेयर तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है और सहायता की सीमा 3 वर्षों के रूपांतरण की अवधि के दौरान प्रति हैक्टेयर 50,000 रूपये सरकार ने रखा है. 2 लाख हैक्टेयर क्षेत्र को कवर करते हुए 10,000 कलस्टरों को बढ़ावा देने का लक्ष्य है .
स्कीम के घटक
पीकेवीआई योजना के अधीन प्रमाणीकरण और भागीदारिता गारंटी प्रणाली (पीजीएस) के माध्यम से जैविक कृषि को बढ़ावा दिया जाता है. जीव विज्ञानीय नाइट्रोजन के उत्पादन के लिए किसानों को संगठित करने, जैविक बीजों के लिए विभिन्न उप घटकों पर कलस्टरों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है. इसमें शामिल विभिन्न घटक निम्नलिखित हैं;
(क) किसानों को संगठित करना: किसानों को प्रशिक्षण और किसानों द्वारा दौरा भ्रमण.
(ख) गुणवत्ताक नियंत्रण: मृदा नमूना विश्लेषण, प्रक्रिया दस्तावेजीकरण, कलस्टर सदस्यों के खेतों का निरीक्षण, अवशेष विश्लेषण, प्रमाणीकरण के लिए प्रमाणीकरण प्रभार और प्रशासनिक व्यय.
(ग) रूपांतरण पद्धतियां: जैविक कृषि के लिए चालू पद्धतियों से अंतरण जिसमें जैविक आदान, जैविक बीज और परम्परागत जैविक आदान उत्पादन यूनिट और जीव विज्ञानीय नाईट्रोजन, फसल रोपण आदि की खरीद शामिल है.
(घ) समेकित खाद प्रबंधन : तरल जैव उर्वरक कन्सोर्टिया/जैव कीट नाशी, नीम केक, फोस्फेट युक्त जैव खाद एवं वर्मी कम्पोस्ट की खरीद.
(ड.) कस्ट्म हायरिंग केंद्र प्रभार: एसएमएएम दिशानिर्देशों के अनुसार कृषि उपकरणों को भाड़े पर लेना.
(च) लेबलिंग और पैकेजिंग सहायता एवं परिवहन सहायता.
(छ) जैविक मेलों के माध्यम से विपणन.
(ख) पूर्वोत्तोर क्षेत्र के लिए जैविक मूल्य श्रृंखला विकास मिशन
देश के पूर्वोत्तपर क्षेत्र में जैविक कृषि की संभावना को पहचानते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 2015-16 से 2017-18 के दौरान अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम व त्रिपुरा में कार्यान्व यन के लिए केंद्रीय क्षेत्र योजना – ‘पूर्वोत्तर क्षेत्र हेतु जैविक मूल्य श्रृंखला विकास मिशन’ की शुरूआत की है. इस स्की्म का लक्ष्य मूल्य श्रृंखला मोड में प्रमाणित जैविक उत्पादन का विकास करना है ताकि किसानों को उपभोक्ताओं से जोड़ा जा सके और इनपुट, बीज प्रमाणीकरण से लेकर संकलन, समुच्चयन, प्रसंस्करण, विपणन व ब्रांड निर्माण पहल तक संपूर्ण मूल्य श्रृंखला के विकास में सहायता की जा सके. तीन वर्षों के लिए 400 करोड़ रुपये के परिव्यय से स्कीम का अनुमोदन किया गया.
पोर्टल पर कुल रजिस्ट्रेशन:
देश में 14.5 करोड़ किसान हैं, लेकिन जैविक खेती पोर्टल पर सिर्फ 2,10,327 ने रजिस्ट्रेशन करवाया है. इसके अलावा 7100 लोकल ग्रुप, 73 इनपुट सप्लायर, 889 जैविक प्रोडक्ट खरीदार और 2123 प्रोडक्ट रजिस्टर्ड हैं.
कैसे मिलता है जैविक खेती का सर्टिफिकेट
जैविक खेती प्रमाण पत्र लेने की एक प्रक्रिया है. इसके लिए आवेदन करना होता है. फीस देनी होती है. प्रमाण पत्र लेने से पहले मिट्टी, खाद, बीज, बुवाई, सिंचाई, कीटनाशक, कटाई, पैकिंग और भंडारण सहित हर कदम पर जैविक सामग्री जरूरी है. यह साबित करने के लिए इस्तेमाल की गई सामग्री का रिकॉर्ड रखना होता है. इस रिकॉर्ड के प्रमाणिकता की जांच होती है. उसके बाद ही खेत व उपज को जैविक होने का सर्टिफिकेट मिलता है. इसे हासिल करने के बाद ही किसी उत्पाद को ‘जैविक उत्पाद’ की औपचारिक घोषणा के साथ बेचा जा सकता है. एपिडा ने आर्गेनिक फूड की सैंपलिंग और एनालिसिस के लिए एपिडा ने 19 एजेंसियों को मान्यता दी है.
आर्गेनिक स्टेट
सिक्किम ने खुद को जनवरी 2016 में ही 100 फीसदी एग्रीकल्चर स्टेट घोषित कर दिया था. उसने रासायनिक खादों और कीटनाशकों को चरणबद्ध तरीके से हटा दिया. एपीडा (APEDA) के मुताबिक पूर्वोत्तर के इस छोटे से प्रदेश ने अपनी 76 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि को प्रमाणिक तौर पर जैविक कृषि क्षेत्र में बदल दिया है.
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