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Updated on: 17 October, 2019 11:42 AM IST
Wheat Variety

गेहूं हिमाचल प्रदेश की एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है. हिमाचल प्रदेश के निचले मध्य व ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी खेती रबी मौसम व वहुत ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में खरीफ मौसम में की जाती है. वर्ष 2018 -19 में इसकी खेती 3.19 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में की गई जिससे 5.68 लाख टन उत्पादन हुआ. तथा उत्पादकता 17.74 क्विटल/हेक्टेयर रही.

प्रदेश में प्राप्त गेहूं की उत्पादकता हमारे पड़ोसी राज्यों की उत्पादकता (पंजाब 45.96 क्विटल/हेक्टेयर तथा हरियाणा 44.07 क्विटल/हेक्टेयर ) तथा राष्ट्रीय औसत (30.93 क्विटल/हेक्टेयर) से काफी कम है तथा इसे बढ़ाने की असीम संभावनाए है. गेहूं की अधिक पैदवार लेने के लिए किसान भाई निम्न सिफारिशो को अपनाए.

अगेती बुवाई:-यह किस्मे मक्की की कटाई के बाद भूमि में बची नमी का सदुपयोग करने के लिए उपयुक्त है. जिनकी मध्य अक्टूबर तक बुवाई कर देनी चाहिए.

वी.एल 829- यह किस्म प्रदेश के निचले तथा मध्यवर्ती क्षेत्रों की असिंचित भूमि में अगेती बुवाई के लिए अनुमादित की गई है तथा यह किस्म वी एल 616 किस्म का विकल्प है. यह किस्म पीला व भूरा रतुआ के लिए मध्यम प्रतिरोधी है. इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा 11.4 प्रतिशत तक होती है. इसके दाने शरबती व अर्ध कठोर होते है. यह किस्म लगभग 30.2 क्विटल/हेक्टेयर औसत पैदावार देती है.

हिम पालम गेहूं 1 : यह गेहूं की नई किस्म है जो पीला एवं  भूरा रतुआ के लिए प्रतिरोधी है. यह किस्म औसतन 25-33 क्विटल/हेक्टेयर के लगभग उपज देती है. इसके दाने मध्यम मोटे और सफेद सुनहरे रंग के होते है तथा इसकी चपाती की गुणवता अच्छी है.

एच एस 542: यह किस्म उतर पर्वतीय क्षेत्रों में वी.एल 829 का विकल्प है. यह किस्म भूरे रतुए का सहन करने की क्षमता रखती है. इसके दाने शरबती व अर्थ कठोर होते है और यह चपाती के लिए उत्तम है. यह किस्म लगभग 28.33 क्विटल/हेक्टेयर की औसत पैदावर देती है.

समय पर बुवाई (20 अक्टूबर से 20 नवम्वर)

एच.पी डब्लू 155: यह किस्म ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में असिंचित  भूमि में तथा प्रदेश के निचले तथा मध्यवर्ती क्षेत्रों  की सिचित व असिचित भूमि में समय पर बुवाई के लिए उपयुक्त है. यह किस्म पीला तथा भूरा रतुआ को प्रतिरोधी है. इसके पौधे गहरे हरे रंग के होते है एवं  दाने शरबती मोटे तथा कठोर होते है. यह किस्म अधिक उर्वरको को सहने की क्षमता रखती है. यह किस्म सिचित एव बरानी परिस्थितियों में कमश 37-40 क्विटल/हेक्टेयर तथा 28-30 क्विटल/हेक्टेयर औसत पैदावार देती है.

एच.पी डब्लू 236: यह किस्म ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में असिंचित एवं  मध्यवर्ती निचले क्षेत्रों के लिए अनुमोदित की गई है. यह किस्म करनाल बंट़,पीला, रतुआ तथा भूरा रतुआ रोगों के लिए प्रतिरेाधी है इसके दाने शरबती, मोटे तथा अर्ध कठोर होते है. यह किस्म बरानी क्षेत्रों में 33 क्विटल/हेक्टेयर के लगभग औसत उपज देती है.

एच.पी डब्लू 211: यह किस्म का अनुमोदन खण्ड-1 के सिचित क्षेत्रों के लिए किया गया है. यह किस्म करनाल बंट पीले एवम भूरे रतुए तथा चूर्णिलासिता के लिए रोग प्रतिरोधी है. यह उर्वरकों को सहने की क्षमता रखती है. इसके दाने शरबती एवं  कठोर होते है. इसकी चपाती की गुणवत्ता भी बहुत अच्छी होती है. इसकी औसत उपज लगभग 35.40 क्विटल/हेक्टेयर है.    

एच.पी डब्लू 249:  यह किस्म प्रदेश के मध्यवर्ती क्षेत्रों में सिचित एवं  असिचित क्षेत्रों में खेती के लिए अनुमादित है. यह किस्म पीले व भूर रतुए एवं  चूर्णिलासिता रोगो के लिए प्रतिरेाधी है. यह बारानी एवं सिंचित क्षेत्रों में कमशः 25-26 क्विटल व 48-49 क्विटल/हेक्टेयर उपज देने की क्षमता रखती है.

एच एस 507: यह किस्म प्रदेश में निचले एव मध्यवर्ती क्षेत्रों में सिचित एवं  असिचित भूमि के लिए उपयुक्त है. यह किस्म पीले व भूर रतुए तथा झुलसा एवं करनाल बंट रोगो के लिए प्रतिरोधक है. इसके दाने शरबती अर्थ कठोर एव मध्यम मोटे होते है. यह किस्म 165 दिनों में पककर तैयार होती है. और बरानी एवं  सिचित क्षेत्रों में क्रमशः 25 क्विटल व 47 क्विटल हेक्टेयर के लगभग औसत उपज देती है.

वी.एल गेहूं 907 : ये किस्म प्रदेश के निचले तथा मध्यवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों में सिचित एवं  असिचित क्षेत्रों भूमि पर बुवाई के लिए उपयुक्त है. यह किस्म पीले व भूर रतुए के लिए रेाग प्रतिरेाधी है. यह एक मध्यम ऊचाई वाली किस्म है. जिसके दाने शरबती एवं  कठोर है. जिसमें बहुत अच्छी चपाती बनती है. यह किस्म 165 से 180 दिनों  में पक कर तैयार हो जाती है. यह असिंचित एवं  सिचित क्षेत्रों में क्रमशः 25-26 क्विटल व 40-50 क्विटल/हेक्टेयर  औसत उपज देती है.

एच.पी डव्लू 349: यह किस्म पीला एवं  भूरा रतुआ बीमारियों के लिए प्रतिरोधी है जिसे उतर भारत के पर्वतीय क्षेत्रों  में सिचित एवं  बरानी परिस्थितियों में बुवाई के लिए अनुमादित किया गया है. यह सिचित व बरानी क्षेत्रेा में क्रमशः 45.48 क्विटल व 22.29 क्विटल /हेक्टेयर उपज देने की क्षमता रखती है. इसके दाने आकार में बडे ठोस व सुनहरे रंग के तथा यह चपाती ब्रेड बनाने के लिए उपयुक्त है. इस किस्म की मुख्य पहचान फसल की वढोतरी वाली अवस्था में पत्तियों के सिरे पर पीलेपन से की जा सकती है.

हिम पालम गेहूं 2 :  यह किस्म पीला एवं  भूरा रतुआ बीमारियों के लिए प्रतिरोधी है. जिसे मध्यम एवं निचले पर्वतीय क्षेत्रों में बरानी एवं सिंचित परिस्थितियों के लिए अनुमादित किया गया है इसकी पैदवार बरानी एवं  सिचित क्षेत्रों में क्रमशः 26-31 क्विटल व 40-45 क्विटल /हेक्टेयर इस किस्म के दाने आकर में बड़े अर्ध ठोस व सुनहरे रंग के तथा चपाती बनाने के लिए बहुत अच्छे हे.

एच एस 562: यह एक नवीनतम किस्म है जैसे- प्रदेश के निचले मध्यवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों के सिंचित व असिंचित  दोनों परिस्थितियों के लिए अनुमोदित किया गया है. यह किस्म पीला भूरा रतुआ के लिए प्रतिरोधी है तथा इसमें ब्रेड या चपाती बनाने की अच्छी गुणवत्ता है. इस किस्म की औसत उत्पादकता बरानी व सिचित क्षेत्रों में कमशः 36 क्विटल तथा 50-55 क्विटल /हेक्टेयर है.

पछेती बुवाई/देरी से बुवाई  

वी.एल.गेहूं 892:  यह किस्म निचले एवं  मध्यवर्ती क्षेत्रों में सीमीत सिचाई के लिए अनुमोदित की गई है. यह मघ्यम ऊंचाई वाली किस्म 140-145 दिनों में पक कर तैयार हो जाता है. यह पीले एवं  भूरे रतुए रेाग की प्रतिरोधी है. इसके दाने शरवती व कठोर है और इनके अच्छी चपाती बनती है इस किस्म कि औसत उपज 30-35 क्विटल/हेक्टेयर.

एच.एस 490: यह मध्यम ऊंचाई वाली किस्म निचले मध्यवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों में सीमीत सिचाई के लिए अनुमोदित की गई है. इसके दाने मोटे सफ़ेद शरबती एवं  अर्ध कठोर होते है. यह किस्म बिस्कुट बनाने के लिए उपयुक्त है. तथा इसकी चपाती भी अच्छी बनती है. यह किस्म 150 दिनो में पक कर तैयार हो जाती है. और इसकी औसत उपज लगभग 30 क्विटल /हेक्टेयर है.

हिम पालम गेहूं 3:  गेहूं की अधिक उपज देने वाली नई किस्म है यह पीला एवं  भूरा रतुआ प्यूजेरियम हेडब्लाईट और ध्वज कंड बीमारियों के लिए प्रतिरोधी है. इस किस्म को हिमाचल प्रदेश के मध्य निचले पर्वतीय निचले क्षेत्रों  में बरानी परिस्थितियों में पिछती बुवाई के लिए उपयुक्त पाया गया है. हिम पालम गेहूं औसतन 25-30 क्विटल हैक्टेयर उपज देती है. इसके दाने मोटे और सुनहरी रंग के होते है. तथा इसमें अच्छी चपाती बनाने की गुणवत्ता  पाई गयी है. इस पर झुकी हुई बालियों से की जा सकती है. एच.पी डब्लू 373 पूर्व अनुमादित किस्म एच.एस 490 के लिए एक बेहतर विकल्प तथा वी.एल 892 के लिए प्रतिस्थापना है.

फसल प्रबंधन

बीज की मात्रा को समय पर बुवाई के लिये 6 किलोग्राम व पछेती बुवाई के लिए 5-6 किलोग्राम बीज प्रति कनाल डाले. अगर छटटा विधि से बुवाई करनी है तो बीज की मात्रा का बढ़ाकर समय पर बुवाई के लिए 6 किलो ग्राम/कनाल कर ले तथा देरी से बुवाई के लिए 7-8 किलो ग्राम/कनाल बीज का प्रयोग करे.

सींचाईः पानी की नियमित सुविधा होने से फसल में चेंदरी जड़ें निकलते समय, कल्ले/दोजियां निकलते समय ( छिड़काव के समय), गाठे बनते समय, फूल आने पर व दानों की दूध वाली अवस्था पर अवश्य करे.

खाद एवं उर्वरक : गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए खेत की तैयारी के समय कनाल 4-5 क्विटल गली-सड़ी गोबर  की खाद डाले. इनके साथ निम्न प्रकार के रासायनिक खादों का प्रयोग करे.

सिंचित क्षेत्रः बुवाई के समय 7.5 कि.ग्रा इफको मिश्रित खाद (12:32:16) तथा 3.25 कि.ग्रा यूरिया/कनाल डाले. एक महीने की फसल में पहली सिचाई के बाद 5.2 किग्रा यूरिया/कनाल और डाले.

असिंचित क्षेत्रः बुवाई के समय 5.0 कि.ग्रा मिश्रित खाद (12:32:16) तथा 1.3 कि.ग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश/कनाल डाले. पहली वर्षा होने पर 3.5 कि.ग्रा यूरिया प्रति कनाल के हिसाब से डाले.

खरपतवार नियंत्रणः गेहूं की फसल में विभिन्न प्रकार के खरपतवार उपज को भारी नुकसान पहुचाते है. अतः समय पर  खरपतवारों का नियंत्रण अति आवश्यक है. इसके लिए बुवाई के लगभग 35-40 दिन उपरांत एक बार निराई- गुड़ाई करे. हाथों द्वारा निराई-गुड़ाई करना महंगा पड़ता है तथा इसके जड़ों का नुकसान पहुंच सकता है. अतः खरपतवारनाशियों द्वारा नियंत्रण लाभदायक रहता है. बुवाई के 35-40 दिनों के बाद खरपतवारों पर 2-3 पत्तियां आने पर तथा भूमि में उचित नमी होने पर दवाईयों का निम्न प्रकार से प्रयोग करे.
-घास जैसे खरपतवारों पर 70 ग्राम/कनाल अथवा कलोडीनाकाप प्रोपार्जिल 15 ई सी/10 ई सी 16 ग्राम/24 ग्राम/ कनाल.

 

-चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार (वथुआ, जलधऱ, कृष्णनील, खखुआ पितपापडा प्याजी इत्यादि) 2.4 -डी सोडियम लवण 80 डव्ल्यू पी (फरनोक्सान या वथुआ पाऊडर ) 40ग्राम/कनाल

घास एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारः 50 ग्राम $ 2, 4- डी सोडियम लवण 80 डब्ल्यू पी (फरनोक्सान या वथुआ पाऊडर) -25  गा्रम प्रति कनाल.

फसल सुरक्षा: हिमाचल प्रदेश में पीला व भूरा रतुआ, खुली,  कगियारी, चूर्णी फफूंद व करनाल बंट प्रमुख रोग है.  इनसे कंगियारी व करनाल बंट बीज उत्पन्न होते है. जबकि रतुआ चूर्णी फफूंद व झुलसा रोग हवा में उपस्थित बीजाणुओं से फसल पर आते है. दीमक व तेला भी गेहूं की फसल को काफी नुकसान पहुंचाते है.

रतुआः पीला रतुआ प्रभावित पौधो कि पत्तियों पर पीले रंग के धवे व पीला पाऊडर कतारों में तथा भूरे रतुऐ के गोल व बिखरे हुए धब्बे पत्तियों पर नजर आते है.

नियंत्रण:  गेहूं के खेतो का दिसंबर अंत से नियिमत निरीक्षण शुरू करें तथा फसल पर रतुआ के लक्षण दिखते ही  पा्रॅपीकोनाजोल (टिल्ट या शाइन 25 इे सी या टेवुकोनाजोल (फॉलिक 25 इे सी ) या बैलिटान 25 डब्लू पी का 0.1 प्रतिशत घोल अर्थात 30  मिलीलीटर अथवा 30 ग्राम दवाई / 30 लीटर पानी में घेाल/कनाल छिड़काव करे और इसे 15 दिन बाद दोहराये.

खुली कंगियारीः इस रेाग से प्रभावित पौधो से काले रंग के पाऊडर वाली बालियां निकलती है.

नियंत्रण: बुवाई से पहले बीज का रैक्सिल (1 ग्राम प्रति कि.ग्रा बीज) या वीटावैक्स /वैविस्टिन ( 2.0 ग्राम /कि.ग्रा  बीज) से उपचार करे.

करनाल बंट: गेहूं के दाने आंशिक रूप से काले चूर्ण में परिवर्तित हो जाते है. जिनसे मछली के सड़ने जैसी दुर्गन्ध आती है. 

नियंत्रण: फसल पर 0.1 प्रतिशत प्रोपिकोनाजोल ( टिल्ट 25 ई सी 30मि ली /30 ली पानी ) का घोल बनाकर सबसे ऊपरी पता निकलने तथा 25 प्रतिशत बालियां निकलने के समय प्रति कनाल के हिसाब से छिड़काव करे और इसे 15 दिन के अन्तराल पर दोहराये. बाविस्टिन उपचारित बीज (2.0 ग्राम /कि.गा्र) के प्रयोग से रोग का प्रकोप कम हो जाता है.

दीमक: निचले पर्वतीय क्षेत्रों के असिंचित इलाकों में अकुरित पौधों को हानि पहुँचाती है. यह पौधों की जडों व भूमि  के अन्दर के तने के भाग को खा जाती है.

नियंत्रण: प्रकोप वाले क्षेत्रों में क्लोरोपाईफॉस 20 ई सी से उपचारित बीज (4 मि.ली/कि गा्र बीज) का उपयेाग करे. बुवाई के समय खेत में 80 मि.ली क्लोरोपाईफॉस 20 ई सी को 1.10 कि.ग्रा सुखी रेत में अच्छी तरह मिलाकर/ कनाल बिखेरे.

तेलाः कीट हरे भूरे रंग का होता है. तथा पत्तियों व जड़ों से रस चूसकर फसल पैदावर कम करता है.

नियंत्रण: फसल पर 30 मी ली डाईमिथोएट( रेागर 30 ई सी) दवाई को 30 लीटर पानी में घोलकर/कनाल छिड़काव करे.

सारांश में गेहूं की अधिक पैदावार लेने के लिए निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए-

केवल शुद्ध प्रमाणित एवं अनुमोदित किस्मो के बीज की बिजाई करे.

बुवाई से पूर्व उपयुक्त बीजोपचार अवश्य करे.

क्षेत्र व बुवाई के समय के अनुकूल सुधरी व रेागरोधी किस्मों का इस्तेमाल करे.

3 या 4 वर्ष बाद बीज बदल लें.

अनुमोदित मात्रा में ही बीज खाद व विभिन्न दवाईयां का प्रयोग करे.

खरपतवारनाशियो का छिड़काव प्लैट फैन अथाव फलड जैट नोजल से ही करे.

रतुआ रेागों के लक्षण दिखते ही यही दवाई का यही मात्रा में छिड़काव करे.

English Summary: Wheat variety :Cultivate the latest advanced wheat variety along with modern methods
Published on: 17 October 2019, 12:08 PM IST

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