उत्तर भारत में गेहूं की खेती मुख्यतः रबी सीजन में की जाती है, जहां सिंचाई और उर्वरकों का सही प्रबंधन फसल की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. पहली सिंचाई के बाद रोगों के प्रकोप की संभावना अधिक होती है, क्योंकि इस समय फसल में नमी और तापमान के उचित स्तर पर रोगजनकों (जैसे कवक और बैक्टीरिया) की वृद्धि के लिए अनुकूल वातावरण बन जाता है. रोग प्रबंधन के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं...
1. फसल का नियमित निरीक्षण करें
- पहली सिंचाई के बाद खेत का नियमित निरीक्षण करें और पौधों पर किसी भी प्रकार के रोग के लक्षण, जैसे पत्ती पर धब्बे, झुलसा, या पीलेपन की पहचान करें.
- गेहूं में मुख्य रोग जैसे पीला रस्ट (स्ट्राइप रस्ट), ब्राउन रस्ट, ब्लास्ट, और पत्ती धब्बा रोग (लीफ ब्लाइट) इस समय अधिक फैल सकते हैं.
- प्रारंभिक अवस्था में रोग के लक्षण पहचानकर नियंत्रण करना आसान होता है.
2. रोगों को रोकने के लिए जल प्रबंधन
पहली सिंचाई के बाद खेत में जलभराव न होने दें, क्योंकि अत्यधिक नमी रोगजनकों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करती है. सिंचाई का समय मौसम की स्थिति और मिट्टी के प्रकार को ध्यान में रखकर तय करें. यदि पहली सिंचाई के बाद पाला (फ्रॉस्ट) पड़ने की संभावना हो, तो हल्की सिंचाई करें ताकि पौधों को ठंड से बचाया जा सके.
3. उर्वरकों का संतुलित उपयोग
अत्यधिक नाइट्रोजन उर्वरक का प्रयोग न करें, क्योंकि यह फसल में कोमल और रसीले ऊतकों को बढ़ावा देता है, जो रोगजनकों का आसान शिकार बन सकते हैं. पोटाश और फास्फोरस उर्वरक का संतुलित उपयोग पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होता है. जिंक और सल्फर जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का भी समुचित उपयोग करें.
4. रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन
बुवाई से पहले रोग प्रतिरोधी गेहूं की किस्मों का चयन करें. जैसे कि पीला रस्ट और पत्ती धब्बा रोग के प्रतिरोधी किस्में. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) और केंद्रीय एवं राज्य कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा अनुशंसित किस्मों का उपयोग करें.
5. जैविक और रासायनिक उपचार
क. जैविक उपचार
ट्राइकोडर्मा विरिडी या Pseudomonas Fluorescens जैविक कवकनाशी का उपयोग करें.
बीज उपचार: जैविक कवकनाशी 5-10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से करें.
मिट्टी उपचार: 2.5 किलोग्राम जैविक कवकनाशी को 50 किलो गोबर खाद के साथ मिलाकर खेत में डालें. खेत में रोग का प्रकोप दिखाई देने पर जैविक घोल का छिड़काव करें.
ख. रासायनिक उपचार
पीला रस्ट (स्ट्राइप रस्ट): प्रोपिकोनाज़ोल 25% EC (0.1%) या टेबुकोनाज़ोल 50% + ट्रायफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25% WG (0.1%) का छिड़काव करें.
पत्ती धब्बा रोग (लीफ ब्लाइट): मैंकोज़ेब 75% WP (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें.
ब्लास्ट रोग: स्ट्रोबिलुरिन वर्ग के फफूंदनाशकों का उपयोग करें.
6. खेत की स्वच्छता और फसल अवशेष प्रबंधन
फसल के अवशेषों को खेत से हटा दें या जैविक खाद बनाने के लिए उपयोग करें. खेत में रोगग्रस्त पौधों को तुरंत निकालकर नष्ट करें. अवशेष जलाने से बचें, क्योंकि यह मिट्टी के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है.
7. मिश्रित फसल प्रणाली अपनाएं
गेहूं के साथ सरसों, चना, या धनिया जैसी सहफसली फसलें उगाएं. ये फसलें रोगों के चक्र को तोड़ने में सहायक होती हैं. मिश्रित फसल प्रणाली से पौधों के बीच उचित वायुप्रवाह बना रहता है, जिससे नमी का स्तर नियंत्रित रहता है.
8. रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले उपाय
पहली सिंचाई के बाद पौधों पर सिलिकॉन-आधारित उत्पादों का छिड़काव करें, जो पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं. समुद्री शैवाल (सीवीड) से बने जैव उर्वरकों का छिड़काव करें, जिससे पौधों का विकास बेहतर होता है.
9. मौसम और फसल की स्थिति का ध्यान रखें
पहली सिंचाई के बाद यदि ठंड और नमी बढ़ जाती है, तो पीला रस्ट का खतरा अधिक होता है. ऐसे में रोग प्रबंधन के लिए फफूंदनाशक का समय पर छिड़काव करें. यदि तापमान अधिक हो, तो जड़ क्षेत्रों में जलवाष्प के संतुलन को बनाए रखें.
10. रोग की निगरानी और सूचना प्रणाली का उपयोग करें
क्षेत्रीय कृषि विश्वविद्यालयों या कृषि विभाग से रोग प्रबंधन के लिए सलाह लें. कृषि वैज्ञानिकों द्वारा जारी अलर्ट और सुझावों का पालन करें.