गेहूं
गेहूं कि दूसरी सिंचाई बुवाई के 40-45 दिन बाद कल्ले निकलते समय और तीसरी सिंचाई बुवाई के 60-65 दिन बाद गांठ बनने की अवस्था पर करें. गेहूं की फसल को चूहों से बचाने के लिए जिंक फॉस्फाइड से बने चारे अथवा एल्यूमिनियम फॉस्फाइड की टिकिया का प्रयोग कर सकते हैं.
जौ
जौ में दूसरी सिंचाई, बुवाई के 55-60 दिन बाद गांठ बनने की अवस्था में जरूर कर दें.
चना
चने में फूल आने से पहले एक सिचाई ज़रूर करें. फसल में उकठा रोग की रोकथाम के लिए बुवाई से पूर्व ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर 60-75 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर कर जमीन का शोधन करें.
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मटर
मटर में बुकनी रोग (पाउडरी मिल्ड्यू) जिसमें पत्तियों, तनों तथा फलियों पर सफेद चूर्ण से फैल जाता है इस रोग की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर घुलनशील गंधक 80%, 2.0 किग्रा 500-600 लीटर पानी में घोलकर 10-12 दिन के अन्तराल पर छिड़काव जरूर करना चाहिए.
राई-सरसों
राई-सरसों में दाना भरने की अवस्था में दूसरी सिंचाई करें. माहू कीट पत्ती, तना व फली पौधे से रस चूस लेता है. इसके नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर डाइमेथोएट 30% ई.सी. की 1. 0 लीटर मात्रा 650 - 750 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करें.
शीतकालीन मक्का
बुवाई के 40-45 दिन बाद खेत में दूसरी निराई-गुड़ाई करके खरपतवार को बाहर निकाल दें. मक्का में दूसरी सिंचाई बुवाई के 55-60 दिन बाद व तीसरी सिंचाई बुवाई के 75-80 दिन बाद करनी चाहिए.
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शरदकालीन गन्ना
आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए. गन्ना को विभिन्न प्रकार के तनाछेदक कीटों से बचाने के लिए प्रति हेक्टेयर 30 किग्रा कार्बोफ्युरॉन 3% सी0 जी0 का प्रयोग कर सकते हैं.
बरसीम
कटाई व सिंचाई 20-25 दिन के अन्तराल पर करें. प्रत्येक कटाई के बाद भी सिंचाई जरूर कर दें.
सब्जियों की खेती
आलू, टमाटर तथा मिर्च में झुलसा से बचाव के लिए मैंकोजेब 75% डब्ल्यू. पी. की 2 किग्रा मात्रा प्रतिहेक्टेयर 500-600 ली0 पानी में घोल कर छिड़काव करें.
मटर में फूल आते समय हल्की सिंचाई जरूरी होती है. आवश्यकतानुसार दूसरी सिंचाई फलियाँ बनते समय ही कर देनी चाहिए. गोभीवर्गीय सब्जियों की फसल में सिंचाई, गुड़ाई तथा मिट्टी चढ़ाने का कार्य करें. टमाटर की ग्रीष्मकालीन फसल के लिए रोपाई कर दें. जायद में मिर्च तथा भिण्डी की फसल के लिए खेत की तैयारी अभी से आरंभ कर दें.
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फलों की खेती
बागों की निराई-गुड़ाई एवं सफाई का कार्य करें. आम के नवरोपित एवं अमरूद, पपीता एवं लीची के बागों की सिंचाई करें. आम के भुनगा कीट से बचाव हेतु मोनोक्रोटोफास 36% एस. एल. 1.5 मिली. प्रतिलीटर पानी की दर से छिड़काव करें. आंवला के बाग में गुड़ाई करें एवं थाले बनाएं. आंवला के एक वर्ष के पौधे के लिए 10 किग्रा गोबर/कम्पोस्ट खाद, 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फेट व 75 ग्राम पोटाश देना आवश्यक होगा. 10 वर्ष या उससे ऊपर के पौधे में यह मात्रा बढ़कर 100 किग्रा गोबर/कम्पोस्ट खाद, 1 किग्रा नाइट्रोजन, 500 ग्राम फास्फेट व 750 ग्राम पोटाश हो जाएगी. उक्त मात्रा से पूरा फॉस्फोरस, आधी नाइट्रोजन व आधी पोटाश की मात्रा का प्रयोग जनवरी माह से करें.
पुष्प व सगंध पौधे
गुलाब में समय-समय पर सिंचाई एवं निराई गुड़ाई करें तथा आवश्यकतानुसार बडिंग व इसके जमीन में लगाने का कार्य कर लें. मेंथा के सकर्स की रोपाई कर दें. एक हेक्टेयर के लिए 2.5-5.0 कुन्टल सकर्स आवश्यक होगा.
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पशुपालन/दुग्ध विकास
पशुओं को ठंड से बचाएं. उन्हें टाट/बोरे से ढकें. पशुशाला में जलती आग न छोड़ें. पशुशाला में बिछाली को सूखा रखें. पशुओं के भोजन में दाने की मात्रा बढ़ा दें. पशुओं में लीवर फ्लूक नियंत्रण हेतु कृमिनाशक दवा पिलवायें. खुरपका, मुँहपका रोग से बचाव के लिए टीका अवश्य लगवाएं.
मुर्गीपालन
अण्डे देने वाली मुर्गियों को लेयर फीड दें. चूजों को पर्याप्त रोशनी तथा गर्मी दें.