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Updated on: 21 May, 2020 1:28 PM IST

आने वाले वर्षों में, खाद्य पदार्थों की आपूर्ति में मदद करने के लिए किसानों को अधिक से अधिक फसल उत्पादन लेना होगा; लेकिन ऐसा करने के लिए उपलब्ध खेत में प्रति एकड़ उत्पादन को बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है। इससे जुड़ी एक गंभीर चिंता का विषय है अनुचित मात्रा में उर्वरकों और कीड़ानाशी का उपयोग!

यह प्रकृति का सरल नियम है कि जो कुछ भी जरूरत से अधिक होगा, उसका दुष्परिणाम पर्यावरण पर दिखाई देगा, जिससे प्रदूषित हवा, पानी और मिट्टी; इसके परिणामस्वरूप, मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की संख्या कम हो गई है और इसका जैविक गुण विकृत हो गया है। खेत के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों के नुकसान से अत्यधिक हानि होगी। यह वर्तमान समय का सबसे चिंताजनक पहलू है क्योंकि रसायनों के अत्यधिक इस्तेमाल से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है और उच्च स्तर के अवशिष्टों के साथ फसल उत्पादन होता है।

एक ही खेत में प्रति वर्ष दो से अधिक फसलों की खेती की जाती हैं क्योंकि प्रति व्यक्ति भू-जोत का आकार दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप उपलब्ध खेत का अत्यधिक इस्तेमाल किया जा रहा है, मिट्टी में पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए किसान अधिक से अधिक रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह मिट्टी पर पौधों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराने के लिए बहुत अधिक दबाव डाल रहा है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए विभिन्न प्रकार के जैव-उर्वरक जैसे वर्मीकम्पोस्टिंग मिट्टी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए वरदान साबित होंगे।

क्या आप प्राकृतिक जुताई के बारे में अधिक जानना चाहते हैं?

केंचुआ मिट्टी को आलोड़ने वाला सर्वश्रेष्ठ प्राकृतिक जुताई का साधन हैं। जी हाँ, मिट्टी की परत में जो छोटे कीड़े आप देखते हैं, वे ही प्राकृतिक जुताई में हमारी मदद करते हैं। केचुएँ का जीवन काल तीन चरणों में बंटा हैं: अंडा, कीट और व्यस्क। अंडे की अवधि 4 से 7 दिनों की होती हैं, जो मौसम की स्थिति पर निर्भर करता है। कशेरुकी की स्थिति दो से तीन महीने तक रहती है और सामान्य रूप से एक व्यस्क केचुएं का जीवनकाल 3 से 6 वर्षों का होता है। इन सभी चरणों के लिए नम मिट्टी की आवश्यकता होती है और इसका जीवन काल मुख्य रूप से इसकी संतति पर निर्भर करता है। यदि आप केचुएँ को खरीद रहे हैं तो एक किलोग्राम में अक्सर एक हजार पूर्ण विकसित केचुएँ होंगे। इन 1000 केचुओं से, अनुकूल वातावरण में, एक वर्ष के भीतर एक लाख केंचुओं का उत्पादन किया जा सकता है। विभिन्न प्रयोगों और अनुसंधानों से स्पष्ट हुआ हैं कि एक सौ किलोग्राम व्यस्क केचुओं से एक माह में एक टन केचुओं का उत्पादन किया जा सकता है।

केचुएँ मिट्टी में पाएं जाने वाले जीव हैं और केचुओं की कुछ प्रजातियाँ मिट्टी की उपरी सतह के ठीक नीचे पाई जाते हैं। केचुओं की कुछ प्रजातियाँ मिट्टी में एक मीटर की गहराई तक निवास करती हैं; जो कार्बनिक पदार्थ और मिट्टी का भक्षण करते हैं; केचुओं की कुछ प्रजातियाँ मिट्टी में तीन या अधिक मीटर की गहराई में निवास करते पाए गए हैं। मिट्टी का कार्बनिक पदार्थ खाने के बाद, वह मल के रूप में मिट्टी का उत्सर्जन करते हैं, जिसे कीट खाद या वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं। केचुएँ जितना खाते हैं उसका केवल 5% ही खुद के लिए इस्तेमाल करते हैं जबकि शेष 90% को उत्सर्जित कर देते हैं। केचुओं की प्राकृतिक प्रक्रिया के कारण, पौधों के विकास के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थ जैसे पोषक तत्व, हार्मोन, उपयोगी सूक्षमजीव आदि की आपूर्ति होती है। इसका लाभ यह है कि मिट्टी में बैक्टीरिया की संख्या बढ़ती हैं और विभिन्न प्रकार पोषक तत्वों और हार्मोन की आपूर्ति के कारण पौधों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है।

क्या आप वर्मीकम्पोस्ट के लाभों के बारे में जानते हैं?

हम मुख्य रूप से उन सामग्रियों पर ध्यान केंद्रित करेंगे जिसका इस्तेमाल वर्मीकपोस्टिंग के लिए किया जा सकता है तथा इसके लाभों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। क्या आप कच्ची सामग्री और इसके लागतों के बारे में सोच रहे हैं? तब, इसका उत्तर हमारे पास है, नहीं, वर्मीकम्पोस्ट तैयार करने के लिए किसी प्रकार के कच्चे सामग्री खरीदने की जरूरत नहीं हैं। आप उपलब्ध सभी प्रकार के अवशिष्टों का इस्तेमाल अपने खेत में कर सकते हैं, जैसे

1) फसलों के अवशेष: पत्ते, डंठल, फल, फली, खोल, पुआल आदि।

2) रसोई के बगीचे से प्राप्त अपशिष्ट: पत्तियां, डंठल, फल आदि।

3) हरी खाद वाली फसलें: सनई, ढैंचा, ग्लिसराइडिया और अन्य हरी खाद वाली फसलें

4) पशु अपशिष्ट: पशु मूत्र और गोबर, बकरी कूड़े, पोल्ट्री मल, आदि।

5) रसोई अपशिष्ट: सब्जी अवशेष, फल, मूंगफली आदि।

यह प्राकृतिक पुनर्चक्रण की विधि हैं जिसके माध्यम से हम कार्बनिक तत्वों का फिर से इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अनेक लाभ हैं जो हमें यह समझाता हैं कि यह मिट्टी और फसल की स्थितियों को बेहतर बनाने में कैसे मददगार साबित हो रहा है:

केंचुआ खाद / वर्मीकम्पोस्ट के लाभ:

1.केंचुआ मिट्टी की प्राकृतिक तरीके से जुताई करता है, जो मिट्टी को अधिक रंध्र युक्त बनाता है।

2.मिट्टी की अधिक रंध्र युक्त प्रकृति पानी और हवा की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति करने में मदद करती है। पर्याप्त स्थान उपलब्ध होने के कारण पौधों की जड़ें भूमि के भीतर अच्छी तरह से विकसित होती हैं।

3.मिट्टी की अधिक रंध्र युक्त प्रकृति न केवल पानी को आसानी से निकलने में मदद करती है, बल्कि पानी को धारण करने की क्षमता में भी मदद करती है।

4.वर्षा कम होनी की स्थिति में फसल को मिट्टी में जमा नमी का लाभ देती है तथा नमी की स्थिति के दौरान इससे कोई नुकसान नहीं होता है।

5.वर्मीकम्पोस्ट की संरचना दानेदार होती है, इसलिए यह मिट्टी के कणों को जोर से पकड़ कर रखने में मदद करता है, यह मिट्टी के अपरदन के नुकसान को कम करने में सहायक है।

6.चूंकि वर्मीकम्पोस्ट में मुख्य और सूक्ष्म पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं, इसलिए इन्हें फसलों द्वारा आसानी से अवशोषित किया जा सकता है।

7.इसमें पोषक तत्व अपने आयनिक रूपों में मौजूद होते हैं जो पौधे की जड़ों के माध्यम से आसानी से अवशोषित हो जाते हैं।

8.केंचुए के पाचन तंत्र में अनेक प्रकार के सूक्ष्मजीव पाए जाते हैं, जिसमें एक्टिनोमाइसेट्स, स्ट्रेप्टोमाइसिन, एज़्टोबैक्टर और विभिन्न कवक उपभेद जैसे बैक्टीरिया शामिल हैं।

9.ये सूक्ष्मजीव विभिन्न प्रकार के बीमारियों के विरूद्ध पौधों के जड़ क्षेत्र में प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में मदद करते हैं।

10.केंचुआ जैविक सामग्री का भक्षण करता है और यह जैविक खाद में बदल जाता है। अधिकांश किसान अपशिष्ट पदार्थों को जला देते हैं; जिसे बहुमूल्य वर्मीकम्पोस्ट में परिवर्तित किया जा सकता है।

11.वर्मीकम्पोस्ट एक जैव-संसाधन है जो कचरे से प्राप्त होता है; इसलिए प्रत्येक किसान अपनी जरूरत के मुताबिक अपने खेत के अपशिष्ट पदार्थ से अपना वर्मीकम्पोस्ट बना सकता है।

12.यह उत्पादन लागत को कम करके, लाभ को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है।

13.यदि वर्मीकम्पोस्ट का बिस्तर बनाया जाता है, तो वर्मीवाश को आसानी से जमा और संग्रहीत किया जा सकता है। वर्मीवाश का उपयोग अधिकांश फसलों में कीट प्रकोप के विरूद्ध छिड़काव करने के लिए किया जा सकता है।

संदर्भ :

1) http://agritech.tnau.ac.in/org_farm/orgfarm_vermicompost.html

2) https://en.wikipedia.org/wiki/Vermicompost

लेखक:

1) श्री. आशिष अग्रवाल, प्रमुख, कृषि विभाग, बजाज अलियान्झ जनरल इंश्योरेंस कंपनी लि. येरवडा, पुणे, महाराष्ट्र।

2) श्रीमती. प्राजक्ता पाटील, कृषिविशेषज्ञ, फार्ममित्र टीम, कृषि विभाग, बजाज अलियान्झ जनरल इंश्योरेंस कंपनी लि. येरवडा, पुणे, महाराष्ट्र।

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English Summary: Vermicompost: a boon to increase soil productivity
Published on: 21 May 2020, 01:36 PM IST

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