बसंत के जाते ही बढ़ते तापमान के साथ ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है. जिसका बागों में की जाने वाले कृषि क्रियाओं पर प्रभाव पड़ता हैं. इन दिनों जहां सदाबहार फल वृक्षों जैसे- आम, अमरूद, नींबू वर्गी फलों के नए बाग स्थापित करने की शुरुआत होती है. वहीं आम की अगेती किस्मों के पके फलों को बाजार भेजने की तैयारी भी करनी होती है.
अमरूद
यह महीने अमरूद के फलों के विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं. गर्मियों के समय में वातावरण शुष्क हो जाता है जिससे मृदा में पानी की कमी होने लगती है. अतः उचित समय पर सिंचाई नहीं होने पर फलों की वृद्धि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. जिसके परिणामस्वरूप फल छोटे रह जाते हैं. इसलिए 8.10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. मई में यदि बगीचों में फल मक्खी अथवा अन्य कीटों का प्रकोप हो तो क्विनोल्फॉस 25 ईसी का 2 मिली प्रति लीटर या मेलाथियान 50 ईसी का 1 मिली प्रति लीटर या मोनॉक्रोटोफॉस 36 डब्ल्यूएससी 2 मिली प्रति लीटर की दर से या 3 प्रतिशत नीम के तेल का छिड़काव करें. छिड़काव प्रातः काल या देर शाम में 21 दिनों के अंतराल पर कम से कम 4 बार करना चाहिए.
जून में नए अमरूद के बागों की स्थापना के लिए खेत को भली-भांति तैयार किया जाता है. पौधे लगाने के लिए गड्ढों को 3-3 मीटर दूरी पर खोदा जाता है. प्रत्येक गड्ढे को 10 किग्रा गोबर की सड़ी खाद, 1 किग्रा नीम की खली, 50 ग्राम क्लोरपाइरीफॉस की धूल एवं ऊपरी मिट्टी के साथ मिलाकर भरा जाना चाहिए. पौधों में जिंक की कमी हो जाने पर पत्तियां छोटी एवं पीली हो जाती हैं. इसके नियंत्रण के लिए आधा किग्रा जिंक सल्फेट और आधा किग्रा बुझे हुए चूने का घोल 100 लीटर पानी में बनाकर इसका छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर 2.3 बार करना चाहिए.
आम
मानसून के आगमन से पूर्व नए बाग लगाने के लिए मई में उचित दूरी पर बाग का रेखांकन; निशान लगाने के बाद गड्ढे खोदने का कार्य पूरा कर लेना चाहिए. नर्सरी में बीज पौधों की आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए एवं खरपतवार निकाल देने चाहिए. पके हुए फलों का चिड़ियों आदि से बचाव करना चाहिए. फलों की आंतरिक सड़न रोकने लिए बोरेक्स 4 किग्रा 100 लीटर का छिड़काव करना चाहिए.
जून में नीचे गिरे फलों को इकट्ठा कर इन्हें स्थानीय बाजारों में भेजने की व्यवस्था करनी चाहिए. पेड़ों के नीचे की जमीन साफ-सुथरी होनी चाहिए. यदि अगेती किस्म के फल पक गए हैं, तो ऐसी स्थिति में उन्हें तोड़कर बाजार भेजने की उचित व्यवस्था कर लेनी चाहिए.
अनार
उत्तर-पश्चिमी भारत के शुष्क क्षेत्रों में जहां सिंचाई के सीमित संसाधन उपलब्ध हैं. उन क्षेत्रों में मृग बहार पसंद की जाती है. महाराष्ट्र के सिंचित क्षेत्रों में अम्बे बहार को पसंद किया जाता है. मृग बहार वाले क्षेत्रों में अप्रैल-मई से ही खेतों में सिंचाई रोक दी जाती है. सिंचाई रोकने के 45 दिनों के बाद पौधों की हल्की छंटाई करनी चाहिए. छंटाई के तुरंत पश्चात उर्वरकों संस्तुत खुराक और सिंचाई शुरू कर देनी चाहिए. सामान्यतः अनार के पौधों में 10.15 किग्रा गोबर की सड़ी खाद, 250 ग्राम नाइट्रोजन, 125 ग्राम फॉस्फोरस एवं 125 ग्राम पोटेशियम प्रतिवर्ष प्रतिवृक्ष डालनी चाहिए. खाद एवं उर्वरकों को पौधों के छत्रक के नीचे चारों ओर 8.10 सेमी गहरी खाई बनाकर देना चाहिए. यह पुष्पन और फलन की अभिवृद्धि करता है. वैकल्पिक रूप से सिंचाई रोकने के 45 दिनों बाद पत्तियों को गिराने के लिए एथरेल 1000 पीपीएमए प्रोफेनोफॉस 2 मिली प्रति लीटर मेटासिड 2 मिली प्रति लीटर, यूरिया 3 ग्राम प्रति लीटर या यूरिया फॉस्फेट 5 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव करते हैं. तेलिया रोग से संक्रमित क्षेत्रों में मृग बहार नहीं लिया जाना चाहिए. मई के तीसरे सप्ताह से जून आखिरी सप्ताह एवं इसके बाद भी रासायनिक जैवनाशियों का प्रति सप्ताह प्रयोग करना चाहिए.
मानसून के दौरान अनार के नए बाग लगाने हेतु रेखांकन एवं गड्ढे खोदने का कार्य भी मई-जून में ही पूर्ण कर लेना चाहिए. सामान्यतः 4.5 मीटर की दूरी पर अनार का रोपण किया जाता है. पौध रोपण के एक माह पूर्व 60-60-60 सेंमी आकार के गड्ढे खोदकर 15 दिनों के लिए खुले छोड़ देने चाहिए. इसके बाद गड्ढे की ऊपरी मिट्टी में 10.15 किग्रा गोबर की सड़ी खाद, 1 किग्रा सिंगल सुपर फॉस्फेट, 50 ग्राम क्लोरोपायरीफॉस चूर्ण मिट्टी में मिलाकर गड्ढों को सतह से 15 सेंमी ऊंचाई तक भर देते हैं. गड्ढे भरने के बाद सिंचाई करते हैं. ताकि खेत की मिट्टी भली-भांति बैठ जाए.
खजूर
नए बाग लगाने के लिए गड्ढे जून में खोदते हैं. गड्ढे की दूरी किस्म के अनुसार 6.8 मीटर रखते हैं. फल सेट होने के बाद मई माह में गुच्छों के मुख्य डंठल को नीचे की ओर मोड़ देते हैं. ताकि ये बिना पत्तियों के मध्य शिरा को हुए नीचे लटकती रहे. इससे बढ़ते फलों के वजन से डंठल के टूटने का खतरा कम हो जाता है. साथ ही पत्तियों के मध्य शिरा की रगड़ से फलों को होने वाला नुकसान भी कम होता है.
मई के अंतिम सप्ताह से जून के प्रथम सप्ताह तक फलों के विरलीकरण का कार्य भी पूरा कर लेना चाहिए. यह आमतौर पर या तो एक गुच्छे पर लगे फलों की संख्या को कम कर या कुछ गुच्छों को हटाने के द्वारा पूरा किया जाता है. पौधे की उम्र तथा किस्म के आधार पर प्रति पौध 5 से 10 गुच्छों या 1300 और 1600 फलों को बनाए रखने में सक्षम होनी चाहिए. इसके बाद प्रत्येक गुच्छे के केंद्र से एक-तिहाई फलों की लड़ियों को काटकर अलग कर देना चाहिए, जिससे फल जल्दी पकते हैं तथा उनकी गुणवत्ता में भी सुधार हो सके.
फलों की छंटाई अथवा विरलीकरण की तीव्रता खद्रावी किस्म में 40.50 प्रतिशत, जैदी और बरही में 50.60 प्रतिशत तथा हलावी किस्म में 50.55 प्रतिशत तक होनी चाहिए. मई-जून के दौरान बागों में सिंचाई की नियमित रूप से व्यवस्था होनी चाहिए. जून के अंत से फल ढोका अवस्था में आने लगते हैं. अतः उन्हें जैव निम्नीकरणीय प्लास्टिक की चादरों से ढक देना चाहिए. ताकि संभावित वर्षा से होने वाले नुकसान से फलों को बचाया जा सके. पक्षियों से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए फलों को लोहे की जालियों से भी ढकते हैं. जून के तीसरे से चौथे सप्ताह में अगेती प्रजातियों जैसे मस्कटए तायर सायर हलावी खूनैजी में तुड़ाई प्रारंभ कर सकते हैं. इनमें अधिकांशतः फल डोका अवस्था में पहुंच जाते हैं. इन फलों को ताजे फलों के रूप में या प्रसंस्करण के बाद छुहारा बनाने में प्रयोग में लाया जा सकता है.
फालसा
फालसे के फलों की उचित बढ़वार के लिए 15 दिनों के अंतराल पर नियमित रूप से सिंचाई करते रहना चाहिए. फालसे में फलों का अच्छे से पकना अप्रैल के अंतिम सप्ताह में ही शुरू हो जाता है. जो कि जून माह के प्रथम सप्ताह तक जारी रहता है. इसके फल अत्यंत नाजुक होते हैं. अतरू इनकी तुड़ाई सुबह या शाम को ही करनी चाहिए और तुरंत बाद फलों को बाजार में भेजने की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए.
फलों की समाप्ति के बाद पौधों की काट-छांट अवश्य करें. इसे जून के अंतिम सप्ताह तक समाप्त कर लेना चाहिए. उचित काट-छांट से फालसे के पौधे का आकार अच्छा रहता है व अगले वर्ष इसमें फसलें अच्छी व नियमित रूप से आती हैं.
आंवला
पौध रोपण के लिए गड्ढे जून में खोदते हैं तथा गड्ढे की दूरी किस्म के अनुसार 8.10 मीटर रखते हैं. जून में 1-1-1 मीटर आकार के गड्ढे खोद कर तैयार कर लेने चाहिए. इन्हें 15 दिनों के बाद 10 किग्रा गोबर की सड़ी खाद, 1 किग्रा नीम की खली, 50 ग्राम क्लोरपाइरीफॉस की धूल एवं ऊपरी मृदा के साथ मिलाकर भरना चाहिए. आंवले में स्वयं बंध्यता पाई जाती है. अतः कम से कम दो किस्में अवश्य लगाते हैं. जो एक दूसरे के लिए परागणकर्ता का कार्य करती हैं.
आंवला एक पर्णपाती वृक्ष है. इसके पेड़-फल लगने के बाद गर्मियों के मौसम में सुषुप्तावस्था में प्रवेश कर जाते हैं. यह मानसून के आगमन तक उसी अवस्था में रहते हैं. इसलिए पौधों को गर्मियों के दौरान अन्य फसलों की तुलना में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. हालांकि 10.15 दिनों के अंतराल पर हल्की सिंचाई लाभकारी होती है. एकांतरित दिनों पर ड्रिप से सिंचाई फलों के विकास और आंवला की उपज की बढ़ोतरी के लिए उपयोगी पाई गई है. इसके अतिरिक्त इससे खरपतवार भी कम उगते हैं.
मई-जून की गर्मियों में मृदा में नमी संरक्षण के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों जैसे धान के भूसे स्थानीय घास केले के पत्ते या गन्ने के कचरे को पलवार के रूप में 20 किग्रा प्रति वृक्ष की दर से थालों में बिछा सकते हैं. इस पलवार को 10.15 सेमी मोटाई तक एकरूप ढंग से वितरित किया जाना चाहिए. यदि पॉलीथीन का पलवार उपयोग करना हो तो 100 माइक्रॉन मोटी फिल्म का प्रयोग कर सकते हैं.
नींबू वर्गीय फल
नए बाग लगाने के लिए मई महीने में बाग का रेखांकन करके गड्ढे खोद कर उसे तैयार कर लेने चाहिए. पौधशाला के पौधों की नियमित सिंचाई, गुड़ाई और निराई करते रहना चाहिए. बाग में 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. मौसम में अधिक तापमान व बढ़ती गर्मी के कारण फलों की बढ़ोतरी रुक जाती है एवं फलों का गिरना एक प्रमुख समस्या बन जाता है. अतः 2- 4 डी ;10 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी मेंद का छिड़काव करना काफी लाभदायक रहता है.
जून के अंत में खोदे गए गड्ढों में गोबर की खाद उर्वरक और मिट्टी की बराबर मात्रा मिलाकर भर देनी चाहिए. मिट्टी भरने के पश्चात सिंचाई अवश्य करनी चाहिए ताकि मिट्टी बैठ जाए. जल निकास नालियों को साफ कर देना चाहिए. फलदार पौधों में नाइट्रोजन एवं पोटाश की दूसरी मात्रा को इसी माह में देना बेहद लाभदायक रहता है.
नीबू में एक वर्ष के पौधे में 25 ग्राम नाइट्रोजन व 25 ग्राम पोटाश; जो क्रमशः बढ़कर 10 वर्ष या उससे अधिक आयु के पौधे के लिए 250 ग्राम नाइट्रोजन व 250 ग्राम पोटाश हो जाएगी, इसका प्रयोग इस माह या फल लगने के दो माह बाद करें. जस्ते की कमी दूर करने के लिए 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट या आवश्यकतानुसार अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव करें.
1विश्वविजय रघुवंशी, शोध छात्र, पादप रोग विज्ञान,
2रजत सिंह, शोध छात्र, सब्जी विज्ञान,
1आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या
2चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कानपुर