भारत में महत्वपूर्ण सब्जी फसलों में फूलगोभी (ब्रैसिका ओलेरासिया वेर. बोट्रीटिस एल.) उत्तर भारत में पसंद की जाने वाली महत्वपूर्ण फसल है. सर्दियों की यह फसल सितंबर से अक्टूबर माह में उगाई जाना शुरू हो जाती है. फूलगोभी में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन सी, कैल्शियम और आयरन की भरपूर मात्रा पाई जाती हैं. देश में पश्चिम बंगाल लगभग 19.39 लाख टन फूलगोभी का प्रति वर्ष उत्पादन करने के साथ पहले स्थान पर आता है. आज हम आपको फूलगोभी की कुछ उन्नत किस्मों के बारे में बताने जा रहे हैं. यह किस्में किसानों को ज्यादा पैदावार के साथ में ज्यादा मुनाफा भी देती हैं.
जिनमें प्रमुख फसलें प्रारंभिक कुंवारी (पीएयू लुधियाना), अर्का कांति (आईआईएचआर, बेंगलुरु), पूसा दीपाली (आईएआरआई, नई दिल्ली), पूसा शरद आदि हैं. आज हम आपको इन किस्मों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे.
प्रारंभिक कुंवारी (पीएयू लुधियाना)
यह एक जल्दी पकने वाली फूलगोभी की किस्म है. जिसे स्थानीय किस्म से चयन करके विकसित किया गया है। यह अर्ध-गोलाकार और हल्के पीले रंग की होती है. इसकी बुआई मध्य सितंबर से अक्टूबर के बीच की जाती है. इसकी औसत उपज 100-150 क्विंटल/हेक्टेयर है।
अर्का कांति (आईआईएचआर, बेंगलुरु)
यह बेंगलुरु के हाजीपुर के स्थानीय फूलगोभी से द्वारा विकसित एक प्रारंभिक और परिपक्व किस्म है. यह एक सघन फसल है जो रोपाई के 60 दिन बाद पक जाते है. और उपज की क्षमता 220-250 क्विं/हे. से अधिक होती है.
पूसा दीपाली (आईएआरआई, नई दिल्ली)
जल्दी पकने वाली यह किस्म सघन, सफेद, मध्यम आकार और लगभग खुली हुई होती है. यह किस्म लगभग अक्टूबर के अंत तक तैयार हो जाती है. औसत पैदावार 120-150 क्विंटल/हेक्टेयर है.
पूसा हाइब्रिड 2 (आईएआरआई, नई दिल्ली)
यह किस्म जुलाई से सितंबर के बीच बोई जाती है. यह एक F1 संकर फूलगोभी है। पौधे नीले हरे पत्तों वाले आधे-खड़े होते हैं, जो डाउनी और फफूंदी रोग के प्रतिरोधी होते हैं. यह फसल 80 दिनों में तैयार हो जाती है. इसकी औसत लगभग उपज 230 क्विंटल/हेक्टेयर है.
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पूसा शरद (आईएआरआई, नई दिल्ली)
फूलगोभी के इस किस्म के पौधे भी आधे खड़े रहते हैं. इसके डंठल छोटे और पौधा खुला हुआ होता है. यह किस्म रोपाई के 85 दिनों में परिपक्व हो जाती है. आकार में यह अर्ध-गुंबद के समान होती है. इसका वजन लगभग 750-1000 ग्राम होता है. इसकी उपज क्षमता लगभग 260 क्विं/हे. होती है.